मोदी सरकार की बेशर्मी : भाषण में जिनका नाम लिया, जिनके नाम से वोट मांगे, उन्ही मजदूरों की बदहाली का डाटा सरकार के पास नहीं

जब देश संसदभवन में ऐसे जवाब मिले कि उनके पास उन श्रमिकों का कोई लेखा जोखा नहीं है जो कोविद 19 महामारी के दौरान हुए लॉक डाउन में अपना रोजगार, अपना जिंदगी गवा दिया है। आप इस बात से यह अंदाजा लगा सकते है कि सरकार उन गरीब और मज़दूर के लिए कितना गंभीर है।

Update: 2020-09-17 08:57 GMT

जनज्वार। जब देश संसदभवन में ऐसे जवाब मिले कि उनके पास उन श्रमिकों का कोई लेखा जोखा नहीं है जो कोविद 19 महामारी के दौरान हुए लॉक डाउन में अपना रोजगार, अपना जिंदगी गवा दिया है। आप इस बात से यह अंदाजा लगा सकते है कि सरकार उन गरीब और मज़दूर के लिए कितना गंभीर है। जो हमारे समाज का हिस्सा है जिनके नाम पर आये दिन राजनीती की जाती है।

श्रम और रोजगार मंत्रालय के पास उन प्रवासी श्रमिकों का कोई डेटा नहीं है। जिन्होंने COVID-19 लॉकडाउन के दौरान अपनी नौकरी और अपना जीवन खो दिया, मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने सोमवार को लोकसभा को कई सदस्यों के सवालों के लिखित जवाब के माध्यम इस सूचना की जानकारी दिया।मंत्री ने सदन को बताया कि सरकार ने प्रवासी श्रमिकों की नौकरी के नुकसान का कोई आकलन किया था।

उस दिन संसद में ऐसे कई सवाल पूंछे गए लेकिन जिम्मेदारी के पद पर बैठे लोगो ने बस इतना कहा इसके लिए उनके पास को आकड़े नहीं है। बल्कि मंत्रालय ने प्रवासी श्रमिकों के आकड़ा जारी किया , जो तालाबंदी के दौरान अपने गृह जनपद लौटे। जिसमे बताया गया कि मार्च माह में 1,04,66,152 श्रमिक गृह जनपद लौटे 32,49,638 उत्तर प्रदेश और 15,00,612 बिहार के शामिल थे।

केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने इसके जवाब में कहा कि मृतकों की संख्या को लेकर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। मंत्रालय ने कहा कि चूंकि इस तरह का डेटा नहीं जुटाया गया था इसलिए पीड़ितों या उनके परिवारों को मुआवजे का सवाल नहीं उठता। एक अन्य सवाल प्रवासी श्रमिकों को हुई परेशानी का अनुमान लगाने में सरकार की विफलता को लेकर पूछा गया था।

श्रम और रोजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार ने कहा, "एक राष्ट्र के रूप में भारत ने केंद्र और राज्य सरकारों, लोकल बॉडीज, सेल्फ हेल्प ग्रुप्स, रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशंस, चिकित्साकर्मियों, सफाई कर्मचारियों और बड़ी संख्या में एनजीओ ने कोरोना वायरस और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से इस अभूतपूर्व मानवीय संकट के खिलाफ काम किया।"

30 मई को हिन्दुस्तान टाइम्स ने रिपोर्ट दी थी कि 9 से 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 मजदूरों की मौत हो गई थी। लाखों प्रवासी श्रमिकों को शहरों से उनके गांवों में पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की गई थी। रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स से उपलब्ध डेटा के मुताबिक जान गंवाने वालों में 4 से 85 साल की उम्र तक के लोग थे। आंकड़ों से यह भी पता चला कि कुछ मामलों में मौत दुर्घटना या अन्य किसी बीमारी की वजह से हुई।

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