आजादी का अमृतकाल: बिजली कटौती से बेहाल उत्तर प्रदेश, कहीं तो दो दिन में एक बार 3 घंटे बिजली

Power Crisis in UP: भारत अमृतकाल को इसी तरह जीयेगा, जहां अंधेरे की पक्की गारंटी है, पर उजाले की नहीं।

Update: 2022-06-04 13:07 GMT

आजादी का अमृतकाल: बिजली कटौती से बेहाल उत्तर प्रदेश, कहीं तो दो दिन में एक बार 3 घंटे बिजली

Power Crisis in UP: उत्तरप्रदेश के लखीमपुर में 6 घंटे से बिजली नहीं है। जौनपुर 4 घंटे से अंधेरे में है। सोशल मीडिया पर इन दिनों बिजली संकट को लेकर ऐसे ही संदेश आने लगे हैं। इनके जवाब में अधिकांश लोगों की यही राय होती है कि आपके यहां तो 4-6 घंटे से ही बिजली नहीं है। इधर तो दो दिन में एक बार 3 घंटे के लिए ही आ रही है।

देश में आजादी के 75 साल पूरे होने पर केंद्र सरकार के मुताबिक 'अमृतकाल' चल रहा है। लेकिन उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में बिजली की कटौती जारी है। शहरों में कटौती का ज्यादा असर नहीं है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी 4-8 घंटे की बिजली कटौती की जा रही है।

सिर पर खड़ा है बिजली संकट

इस साल 28 अप्रैल को भारत में बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच 10.29 गीगावाट का अंतर आ गया। तब केंद्र सरकार ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं। सब ठीक है। कोविड के बाद फैक्ट्रियां पूरी गति से चल रही हैं, इसलिए बिजली की खपत ज्यादा है। फिर पता चला कि सरकार का दावा गलत है, क्योंकि देश की जीडीपी में 14.2% का हिस्सा रखने वाले उद्योग 3% से भी कम बिजली खर्च करते हैं। बाद में पता चला कि देश के 173 पावर प्लांट्स में कोयले की कमी है। इन ईकाइयों में 21 अप्रैल तक 21.93 मिलियन टन कोयले का भंडार था, जबकि होना चाहिए 66.32 मिलियन टन। फिर क्या था, रेल मंत्रालय ने आनन-फानन में सवारी गाड़ियों को निरस्त कर मालगाड़ियों के जरिए कोयले की ढुलाई शुरू कर दी। अब खबर आ रही है कि संकट इससे भी बड़ा है। कोल इंडिया ने साफ कर दिया है कि 7 जून से कोयले की सप्लाई 30% कम कर दी जाएगी और 15 जून से कटौती की मात्रा 10% और बढ़ाई जाएगी1 इस तरह कोयले की 40% सप्लाई घटने से उत्तरप्रदेश का एक बड़ा हिस्सा अंधेरे में डूब जाएगा। हालांकि, बात यहीं पर खत्म नहीं होती। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) का अनुमान है कि जुलाई और अगस्त में खरीफ सीजन के दौरान कृषि क्षेत्र में बिजली की मांग बढ़ने से संकट और गहराएगा और तब 8-10 घंटे की कटौती हो सकती है।

सरकार कोयला जुटाने में नाकाम रही

CREA का कहना है कि केंद्र की बीजेपी सरकार पावर प्लांट्स को समय पर कोयला सप्लाई करने में नाकाम रही है। उसने कोयला जुटाने का काम भी ठीक से नहीं किया। जुलाई-अगस्त के दौरान भारत में बिजली की मांग 214 गीगावाट तक हो सकती है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इसन्हीं दो महीनों में भारत में सबसे ज्यादा बारिश होती है। लिहाजा कोयले का परिवहन भी इससे प्रभावित होगा और तब संकट और गहरा सकता है।

रिकॉर्डतोड़ उत्पादन के बाद भी क्यों है कोयले की कमी ?

CREA के विश्लेषक सुनीत दाहिया बताते हैं कि 2021-22 में भारत ने 777.26 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया, जो कि 2020-21 की तुलना में 8.5% अधिक है। देश में कोयला उत्पादन की कुल क्षमता 1500 मिलियन टन के करीब है। इसका मतलब है कि भारत अपनी क्षमता से आधा कोयला निकाल रहा है। क्या यह देश में कोयले की कमी बताकर बाहर से कोयला मंगवाने की सुनियोजित साजिश नहीं है? वह भी तब, जबकि फरवरी 2020 में कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने ऐलान किया था कि भारत 2023-24 से विदेशों से कोयला मंगवाना बंद कर देगा।

राज्यों के पाले में गेंद और बिजली दरें बढ़ाने की तैयारी

केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने सभी राज्यों को चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने कोयला आयात नहीं किया तो उनके घरेलू कोयले के आवंटन में 40 फीसदी तक की कटौती की जाएगी। राज्यों के पाले में गेंद डालने का केंद्र का यह अंदाज नया नहीं है। कोविड टीकाकरण के मामले में भी केंद्र ने राज्यों के पाले में गेंद डालकर फिर यू-टर्न लिया था। अब अपनी खस्ताहाल इकोनॉमी को ताक पर रखकर राज्यों को विदेशों से कोयला आयात करना होगा। इससे बिजली भी महंगी होगी। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में बिजली की दर प्रति यूनिट 1 रुपए बढ़ जाए। फिर भी चौबीसों घंटे बिजली मिलेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। भारत इसी तरह अमृतकाल को जीयेगा, जहां अंधेरे की पक्की गारंटी है, पर उजाले की नहीं।

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