Uttarakhand News : पहाड़ की महिलाओं को 'घसियारी' कहने पर बिफरे हरदा, बोले- बीजेपी कर रही पहाड़ियों का अपमान
सरकारी सस्ते गल्ले की तर्ज पर महिलाओं को पैक्ड घास उपलब्ध कराने की 'घसियारी योजना' को सिरे से खारिज करते हुए हरीश रावत ने 'घसियारी' शब्द को उत्तराखंडियत व पहाड़ी महिलाओं का अपमान बताया है।
Uttarakhand News : प्रदेश के कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister) द्वारा सरकारी सस्ते गल्ले की तर्ज पर महिलाओं को पैक्ड घास (Packed Grass Yojna) उपलब्ध कराने की 'घसियारी योजना' को सिरे से खारिज करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) ने 'घसियारी' शब्द को उत्तराखंडियत व पहाड़ी महिलाओं का अपमान बताया है। रावत ने कहा है कि भाजपा (Uttarakhand BJP) को उत्तराखण्ड की मेहनती व कर्मठ महिलाओं के लिए केवल घसियारी शब्द सूझता है तो आम आदमी पार्टी को उत्तराखण्ड के युवाओं में चौकीदार और घरेलू नौकर ही दिखते हैं।
अपने इस दर्द को सोशल मीडिया (Social media) पर सार्वजनिक करते हुए हरीश रावत 'हरदा' ने कहा कि देश और दुनिया में उत्तराखंड के पुरुष की पहचान एक पराक्रमी पुरुषार्थी, आत्मस्वाभिमानी, देशभक्त के रूप में होती हैं। मगर आप पार्टी के प्रवक्ता कहते हैं कि दिल्ली (New Delhi) में उत्तराखंड के लोगों को घरेलू नौकर, चौकीदार ज्यादा से ज्यादा ड्राइवर के रूप में पहचाना जाता है। उनको विक्टोरिया क्रॉस से लेकर परमवीर चक्र (Paramveer Chakra) से जुड़ी हुई हमारी पहचान तक का कोई आभास नहीं है।
उन्होंने कहा, "इसी तर्ज पर अब भाजपा भी महिलाओं के लिए 'घसियारी' संबोधन पर इतरा रही है। जियारानी से लेकर तीलू रौतेली (Teelu Roteli) तक वीरांगना के रूप में और संघर्ष की प्रतीक गौरा देवी और एवरेस्ट को सरलता से चढ़ जाने वाली बछेंद्री पाल (Bachhendri Pal) के रूप में हमारी माँ-बहनों की पहचान का भाजपा को एहसास नहीं है। आज कौन सा देश का ऐसा क्षेत्र है जहां उत्तराखंड की महिलाएं अपनी प्रतिभा और साहस से अपना झंडा नहीं गाड़ रही हैं !"
रावत ने कहा कि हॉकी में खिलाड़ी वंदना कटारिया, पर्वतारोही के रुप में तांग्सी-नुंग्शी, महिला क्रिकेट टीम में एकता बिष्ट, मानसी जोशी, स्नेह राणा, श्वेता वर्मा, भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी कुहू गर्ग जैसी हमारी बेटियां ओलंपिक्स एवं सिविल सेवा आदि में अपनी प्रतिभा से देश व राज्य का नाम रोशन कर रही हैं।
मेडिकल कोर की कमांडर हो या वायु सेना के फाइटर को उड़ाने वाली हमारी बेटियां। भाजपा को इनकी पहचान दिखाई नहीं देती है। इसलिए वह हमारी माँ-बहनों को 'घसियारी' शब्द देना चाहती है।
रावत ने कहा, "मेरी माँ-बहनें भी एक सुगढ़ गृहणी रही हैं। मगर वो कभी भी घसियारी नहीं रही, समाज ने उनको कभी भी घसियारी शब्द संबोधन नहीं दिया। लेकिन भाजपा अब घसियारी शब्द का संबोधन खोज कर अपनी पीठ ठोक रही है। भाजपाइयों हमारी मां-बहनों की पहचान जियारानी व तीलू रौतेली और गौरादेवी हैं।"
इसके साथ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने भी इस योजना का विरोध करते कहा कि अंग्रेजों तक के शासनकाल में ग्रामीणों के लिए जंगल की घास मुफ्त में उपलब्ध थी। लेकिन यह सरकार घास तक का बाजारीकरण कर उसके तिनके-तिनके से मुनाफा कमाना चाहती है।
वहीं भाकपा माले के इंद्रेश मैखुरी ने इस योजना को घपले-घोटाले की आधारशिला बताते हुए कहा कि "वाह, क्या रोजगार योजना है ! घास की सरकारी दुकान ! घास की दुकान में लाइन में खड़े लोग ! सरकारी शुद्ध पौष्टिक घास की दुकान। अनुज्ञापी-धन सिंह भाई के चंगू-मंगू ! घास सप्लाई का टेंडर ! टेंडर में कमीशन ! पता चला कि घास से पालतू पशु उतने तंदुरुस्त न हुए, जितने नेता जी घास सप्लाई के कमीशन से मुटा गए !"
इंद्रेश कहते हैं कि दुकान में घास मिलने में एक और फायदा है, दिमागों में भरने के लिए घास की निर्बाध सप्लाई की जा सकती है। दिमागों में गोबर और भूसा भरने की राष्ट्रीय परियोजना चल ही रही है। अब उत्तराखंड में दिमागों में घास भरने का आउटलेट भी खोला जा सकेगा।
बहरहाल, राज्य सरकार इन आलोचनाओं का बाद भी अपनी इस महत्वाकांशी योजना को शुरू करेगी या नहीं, यह कुछ समय बाद तय होगा। लेकिन उत्तराखण्ड में चारा घोटाला, भेड़ घोटाला जैसे घोटालों को देखते हुए इस योजना को भी संशय से देखा जाने लगा है। जिन घोटालों की बात की गई है, पहले दिन वह भी इसी योजना की तरह मासूम दिख रहे थे।