Dehradun News: चंद्रशेखर का शव मिलने के बाद इन आंखों में भी जागी उम्मीद की किरण, एक साथ ही शहीद हुए थे उत्तराखंड के यह दोनों सपूत

Dehradun News: 38 साल पहले साल 1984 में सियाचिन की चोटी पर गई यूनिट में कई जवानों के पार्थिव शरीर उनके घरों तक पहुंच चुके हैं। लेकिन कई शहीदों के परिवार ऐसे भी हैं, जो अपने शहीद के पार्थिव शरीर लापता होने के कारण आज तक भी अंतिम दर्शन नहीं कर पाएं हैं।

Update: 2022-08-17 13:30 GMT

Dehradun News: चंद्रशेखर का शव मिलने के बाद इन आंखों में भी जागी उम्मीद की किरण, एक साथ ही शहीद हुए थे उत्तराखंड के यह दोनों सपूत

Dehradun News: 38 साल पहले साल 1984 में सियाचिन की चोटी पर गई यूनिट में कई जवानों के पार्थिव शरीर उनके घरों तक पहुंच चुके हैं। लेकिन कई शहीदों के परिवार ऐसे भी हैं, जो अपने शहीद के पार्थिव शरीर लापता होने के कारण आज तक भी अंतिम दर्शन नहीं कर पाएं हैं। बीते सप्ताह ही शहीद चंद्रशेखर हरबोला का शव मिल जाने के बाद ऐसे ही कुमाउं के दो परिवारो की आंखों में उम्मीद की आस जगी है जो नाउम्मिदों के सहारे अपनों का इंतजार करने की अपने को ही झूठी दिलासा दे रहे थे।

शहीद लांस नायक चंद्रशेखर हर्बोला के साथ नायक दयाकिशन जोशी और सिपाही हयात सिंह भी ऐसे ही उत्तराखंड के लाल थे जो चंद्रशेखर के साथ ही शहीद हुए थे। हर्बोला के साथ सियाचिन की चोटी पर जा रही कंपनी में दयाकिशन जोशी और सिपाही हयात सिंह भी शामिल थे। 38 साल के बाद जहां चंद्रशेखर का शव बरामद कर लिया गया है तो दयाकिशन और हयात का शव अभी बरामद नहीं हुआ है। इन दोनों के ही परिवार अब अपने-अपने शहीदों का चेहरा देखने की आस छोड़ चुके थे। लेकिन चंद्रशेखर का शव मिलने के बाद अब इनकी उम्मीदें बढ़ गई हैं।

सियाचिन गई जिस यूनिट में नायक दयाकिशन जोशी शामिल थे उनकी पत्नी विमला जोशी अब हल्द्वानी के आवास विकास में रहती हैं। विमला आज भी कहती हैं कि "जब तक पार्थिव शरीर नहीं मिल जाता तब तक वह नहीं मान सकती कि वह मेरे साथ नहीं हैं।" विमला के अनुसार वर्ष 1984 में उनके पति छुट्टी पर आने वाले थे। लेकिन उनके छुट्टी पर आने की जगह घर पर टेलीग्राम पहुंचा और उनके जीवन के सबसे बड़े सुख को उनसे छीन लिया। पहाड़ में किसी भी सैनिक परिवार में टेलीग्राम आने का एक ऐसा अर्थ होता है, जिसे मुंह से कोई नहीं बोलता लेकिन समझते सब हैं। उम्मीद के मुताबिक इस टेलीग्राम में भी उनके पति नायक दयाकिशन जोशी के शहीद होने की सूचना थी।

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इस टेलीग्राम में सेना की ओर से पार्थिव शरीर न मिलने की बात कही गई थी। इसके बाद उन्होंने रानीखेत से लेकर बरेली तक के सैन्य अधिकारियों के कार्यालय छाने लेकिन कहीं से भी पति के पार्थिव शरीर मिलने की पुष्टि नहीं हुई। यह वह समय था जब बड़ा बेटा संजय जोशी तीन साल का और छोटा भास्कर जोशी एक साल का था। कोई बच्चा स्कूल नहीं जा रहा था। बड़े बेटे को स्कूल भेजने की तैयारी ही थी। अंतिम बार उन्होंने घर से जाते समय बच्चों का ख्याल रखने और उनकी पढ़ाई-लिखाई कराने की बात की थी। लेकिन फिर कभी दोबारा कभी बेटों को पिता का लाड़ ही नहीं मिल सका। विमला जोशी ने बताया कि पति के मिलने के विश्वास और उनकी बहादुरी ने उन्हें इतनी हिम्मत दी कि उन्होंने बेटे के पालन-पोषण और परवरिश पर ध्यान देना शुरू किया। वर्तमान में बड़ा पुत्र संजय 9-कुमाऊं रेजीमेंट (लखनऊ) में तैनात हैं और छोटा बेटा भास्कर आईटीआई करने के बाद निजी क्षेत्र में नौकरी कर रहा है।

विमला सरीखी कहानी हयात सिंह की पत्नी बच्ची देवी की भी है। यहां भी घर पर पहुंचे दो टेलीग्राम ने उनकी जिंदगी में अंधेरा भर दिया। बच्ची देवी को पहले टेलीग्राम में सैन्य अधिकारियों ने उनके पति समेत 20 जवानों के लापता होने की सूचना दी थी। लेकिन इसके करीब एक महीने बाद दूसरा टेलीग्राम मिला था। यह वह टेलीग्राम था जिसकी पहाड़ में किसी को प्रतिक्षा नहीं होती। दुखों का पहाड़ गिराने वाले इस रुक्के पर पति के शहीद होने लेकिन पार्थिव शरीर न मिलने की खबर थी। 1978 में भर्ती होने वाले 24 साल की उम्र में जब हयात सिंह की नौकरी को साढ़े पांच साल ही हुए थे उस समय उनका बेटा राजेंद्र तीन साल का तथा बेटी गर्भ में थी। पिता की शहादत के पांच माह बाद पुष्पा इस दुनिया में आई थी।

मूल रूप से रीठा साहिब बच्ची देवी 16 साल से हल्द्वानी के भट्ट विहार स्थित कृष्णा कॉलोनी में रह रही हैं। बच्ची देवी ने बताया कि हयात सिंह होली पर दो महीने की छुट्टी पर घर आए थे। एक महीने की छुट्टी के बाद अचानक चिट्ठी आई और छुट्टी रद्द करके उन्हें बुला लिया गया था। अब उनका 14 वर्षीय पोता हर्षित नौवीं कक्षा में पढ़ता है। 14 अगस्त को शहीद लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर मिलने के बाद हर्षित कहता है कि दादी अब तो दादा जी भी मिल जाएंगे। बच्ची देवी इस समय अपने बेटे राजेंद्र के साथ रहती हैं। बेटी पुष्पा शादी के बाद लखनऊ में रह रही हैं।

बहरहाल, शहीद के इन परिवारों ने 38 साल का लम्बा इंतजार कर लिया है। वह अपने प्रियजन के अंतिम दर्शन के प्रति पूरी तरह निराश हो चुके थे। लेकिन शहीद चंद्रशेखर का शव मिलने के बाद अब इनकी आंखों में भी उम्मीद की किरण जगी है। उम्मीद है कि देर सवेर वह भी अपने शहीद के अंतिम दर्शन कर सकेंगे।

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