Haldwani Hindi News: वन पंचायतों को वन विभाग से आजादी की मांग सहित कई मुद्दे उठे गोष्ठी में, जंगलों पर हक़-हकूक के लिए दो दिवसीय कार्यक्रम काठगोदाम में हुआ शुरू

Haldwani Hindi News: "वन पंचायतें एवं वन अधिकार कानून" विषय पर वन पंचायत संघर्ष मोर्चा की पहल पर दो दिन का कार्यक्रम हल्द्वानी के निकट काठगोदाम में शनिवार को शुरू हुआ। पहले दिन इस गोष्ठी में जंगलों पर लोगों के हक़-हकूक बहाल किए जाने सहित कई मुद्दे चर्चा में रहे।

Update: 2022-12-10 16:30 GMT

Haldwani Hindi News: "वन पंचायतें एवं वन अधिकार कानून" विषय पर वन पंचायत संघर्ष मोर्चा की पहल पर दो दिन का कार्यक्रम हल्द्वानी के निकट काठगोदाम में शनिवार को शुरू हुआ। पहले दिन इस गोष्ठी में जंगलों पर लोगों के हक़-हकूक बहाल किए जाने सहित कई मुद्दे चर्चा में रहे। कार्यक्रम के पहले दिन धारी, रामगढ़, उखलकांडा, अल्मोड़ा, बागेश्वर, बसौली , पिन्डर, खाती, पिथौरागढ़, अस्कोट, चम्पावत, रामनगर, पौड़ी, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, उधम सिंह नगर, भवाली आदि जगहों से आए वन पंचायत संरपंचों, पंचायत प्रतिनिधियों एवं समाजिक संगठनों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का समापन कल रविवार को किया जाएगा। कार्यक्रम समापन दिवस पर वनों पर अधिकार के लिए चल रहे आंदोलनों को धार दिए जाने के मकसद से नई रणनीति की घोषणा भी की जा सकती है।


कार्यक्रम के पहले दिन सरपंच सरस्वती मेहरा की अध्यक्षता व गोपाल लोधियाल के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में शनिवार को वन पंचायत एवं वनों के मुद्दों पर तीखी चर्चा के दौरान वन पंचायतों में वन विभाग के अनावश्यक हस्तक्षेप को समाप्त कर उन्हें स्वायत्त बनाने की मांग सदन में पेश की गई। इसके साथ ही लीसा रायल्टी का पैसा तत्काल वन पंचायतों के खाते में डालने और वन कानूनों की समीक्षा कर उनमें जनपक्षीय बदलाव करने के साथ ही वनाधिकार कानून को राज्य में प्रभावी तरीके से लागू करने की मांग भी कार्यक्रम में की गई।

इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के साथ लम्बे संघर्ष के बाद अस्तित्व में आई वन पंचायतें आज भारी संकट के दौर से गुज़र रही हैं। उन्हें वन अधिनियम के अधीन लाकर ग्राम वनों में तब्दील कर दिया गया है। जिसके बाद से वह पूरी तरह से वन विभाग के नियंत्रण में हैं। वन विभाग माइक्रो प्लान निर्माण की ज़िम्मेदारी का निर्वहन करने से जानबूझकर बचता रहा है। इसके लिए सरपंच को बार-बार वन विभाग के चक्कर काटने पड़ते हैं। वन विभाग की अकर्मण्यता का आलम यह है कि पिछले 22 वर्षों में परामर्श दात्री समिति का तक गठन नहीं किया गया है।


अपनी ही वनपंचायत से चारा लाने पर हेलंग में महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यहार तक को जब सरकारी संरक्षण प्राप्त है तो इसी से वनाधिकार की लड़ाई की गंभीरता से समझा और महसूस किया जा सकता है। वन विभाग द्वारा इको सेंसेटिव जोन के नाम पर संरक्षित क्षेत्रों का दायरा लगातार बढ़ाया जा रहा है। उत्तराखंड में विकराल रूप धारण कर चुकी मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्या को कम करने में अभी तक की सरकारें नाकाम रही हैं। इस समस्या के समाधान का अभी तक सरकारों के पास कोई प्लान तक नहीं हैं, जिस वजह से हर साल बड़ी संख्या में लोगों को वन्य जीवों के हमलों में अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। वन पंचायतों को वन विभाग के नियंत्रण से मुक्त करने के साथ ही वन कानूनों में जन पक्षीय बदलाव की पुरजोर वकालत भी इस कार्यक्रम में वक्ताओं द्वारा की गई।

कार्यक्रम को वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के संयोजक तरुण जोशी, उत्तराखंड संसाधन पंचायत के ईश्वर जोशी, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी, सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष इस्लाम हुसैन, बागेश्वर से आए भुवन पाठक, भालूगाड़ वाटरफॉल समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह, सुश्री अमरावती, परवड़ा के सरपंच गंगासिंह आदि ने संबोधित किया।

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