...तो 'त्रिवेन्द्र' के बहाने आन्दोलन की गहराई नाप गई भाजपा?
राजनैतिक हलकों में केदारनाथ के इस दौरे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पांच नवंबर को प्रस्तावित दौरे के मददेनजर होने वाले संभावित विरोध की नब्ज नापने के रूप में देखा जा रहा है।
सलीम मलिक/देहरादून। धनतेरस से एक दिन पहले देवस्थानम बोर्ड के विरोध में चल रहे आंदोलन के दौरान सोमवार को बोर्ड के 'रचनाकार' पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का केदारनाथ दौरा, क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ आगमन से पूर्व भाजपा रणनीतिकारों द्वारा आंदोलन की गहराई नापने के प्रयास था? त्रिवेन्द्र सिंह रावत को इस दौरान दिखाए गए काले झंडे और जबरदस्त विरोध के बाद भी त्रिवेन्द्र ने अपने फेसबुक पर जिस प्रकार देवस्थानम बोर्ड का बचाव करते हुए इसे भविष्य की सुखद तस्वीर बताया है, उसके आलोक में इस विरोध के कई निहितार्थ तलाशने शुरू हो गए हैं।
कयास यह भी है कि दो साल से चल रहे इस आंदोलन की मौके पर विरोध की थाह नापने की रणनीति के तहत प्रधानमंत्री के आगमन से पूर्व त्रिवेन्द्र की यहां भेजा गया था।
अपने फैसले पर कायम है त्रिवेंद
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल में गठित देवस्थानम बोर्ड का चारों धामों में तीर्थ पुरोहित, पंडा समाज जहां जबरदस्त विरोध कर रहा है तो इसके उलट पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने फैसले पर कायम हैं। उनका दावा है कि कई मंदिरों की समितियां बोर्ड को लेकर प्रसन्नता जता रही है। देवस्थानम बोर्ड अब तक का सबसे बड़ा सुधारात्मक कदम है। साथ ही उन्होंने फिर दोहराया जो आज देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर रहे हैं, वही 10 साल बाद इसकी तारीफ करेंगे।
पुरोहितों और स्थानीय लोगों ने किया विरोध
एक नवंबर को त्रिवेंद्र सिंह रावत केदारनाथ धाम पहुंचे थे। इस दौरान तीर्थ पुरोहितों और स्थानीय लोगों ने उनका विरोध किया। उन्हें मंदिर में दर्शन करने तक नहीं दिए गए। हालांकि, इसके बाद त्रिवेंद्र ने फेसबुक में पोस्ट डालकर केदारनाथ मंदिर में दर्शन का दावा किया। इसके बाद वह रुद्रप्रयाग जिले में ही सोनप्रयाग के निकट प्राचीन त्रिजुगीनारायण मंदिर पहुंचे। जहां उनके दावे के अनुसार उनका जोरदार स्वागत किया गया। मंदिर के निकट ही गांव है। इसमें 250 के लगभग ग्रामीण लोग रहते हैं।
10 साल बाद लोग करेंगे तारीफ
देवस्थानम बोर्ड में त्रिजुगीनारायण मंदिर को सम्मिलित किए जाने से मंदिर के पुजारियों ने खुशी जाहिर की है। पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र का कहना है कि देवस्थानम बोर्ड अब तक का सबसे बड़ा सुधारात्मक कदम है। आज भले ही कुछ लोग जानबूझकर इसका विरोध कर रहे हों, लेकिन आने वाले 10 साल बाद सभी को इसकी अहमियत पता लगेगी। यही लोग आगे आकर इसका समर्थन करेंगे, इसकी तारीफ करेंगे। बकौल त्रिवेन्द्र सरकार का काम अपने अतिथियों को सुविधाएं देना होता है। अतिथि देवो भव: को सर्वोपरि मानते हुए ही देवस्थानम की नींव रखी गई। ताकि यहां से जाने के बाद यात्री यहां की व्यवस्थाओं का गुणगान हर जगह करें और देवभूमि में तीर्थ यात्रियों का आना जाना लगा रहे इसी उद्देश्य को लेकर की इसका गठन किया गया।
सोनप्रयाग के निकट ही इस प्राचीन त्रिजुगीनारायण मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। प्राचीन काल से ही यहां अखंड धुनी जलती रहती है। इसका शिल्प भी श्रीकेदारनाथ जी की ही तरह कत्यूरी शैली का है। मंदिर के निकट ही गांव है जिसमें 250 के लगभग ग्रामीण लोग रहते हैं। जहां दावे के अनुसार ग्राम प्रधान प्रियंका तिवारी, सामाजिक कार्यकर्ता आशीष गैरोला आदि ने पूर्व सीएम का स्वागत किया। मुख्य पुजारी सूरज मोहन सेमवाल एवं अन्य पुजारियों ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को पुष्पमाला पहनाकर पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कराई। मंदिर समिति एवं ग्रामीणों का कहना था कि देवस्थानम बोर्ड में जुड़ने से मंदिर में तीर्थयात्रियों की संख्या बहुत बढ़ेगी। इससे पूरे गाँव की आय बढ़ेगी। मंदिर एवं गांव में अनेक आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध होंगी जिससे यात्रियों को भी लाभ होगा।
विरोध के बावजूद झंडा बीजेपी का ही उठेगा
इस दावे के विपरीत राजनैतिक हलकों में केदारनाथ के इस दौरे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पांच नवम्बर को प्रस्तावित दौरे के मददेनजर होने वाले संभावित विरोध की नब्ज नापने के रूप में देखा जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भटट के अनुसार त्रिवेंद्र रावत मामले में कल पंडा पुरोहितों को "टाइट" करने का खेल शुरू हुआ है। त्रिलोचन के अनुसार यह बात काफी हद तक सही है कि पंडा पुरोहित समाज कितना भी विरोध कर लें, आखिरकार डंडे-झंडे वह बीजेपी के ही उठाएगा। प्रधानमंत्री आएंगे तो आज्ञाकारी बच्चे की तरह वह उनके सामने नत-मस्तक खड़ा रहेगा।
बीजेपी को है इस बात की आशंका
दो साल से चल रहे इस आंदोलन के कारण प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान कहीं से विरोध का छोटा सा भी स्वर उठा तो इसका बड़ा असर चुनाव पर पड़ेगा। हालांकि, प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के चलते ऐसा कोई विरोध संभव नहीं है। लेकिन संघ के रणनीतिकार नहीं चाहते कि कहीं पर कोई सांकेतिक विरोध भी हो। इसीलिए त्रिवेन्द्र सहित भाजपा के तीन नेताओं को केदारनाथ भेजा गया था कि प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले यह नापा जा सके कि नाराज तीर्थ पुरोहित किस हद तक पहुंच सकते हैं। इन नेताओं के वहां पहुंचते ही पुरोहित इस ट्रेप में फंस गए। विरोध के तत्काल बाद ही आईटी सेल के माध्यम से पंडा पुरोहित समाज पर लानत मलानत भेजने का दौर शुरू हुआ। लोगों के दिमाग में यह बिठाने का सफल प्रयास हुआ कि मंदिर में किसी का विरोध नहीं होना चाहिए। जिन लोगों ने उस दौर में पत्थरों को दूध पिलाया जब संचार का कोई साधन नहीं था, तो इस दौर में ऐसी बात लोगों तक भेजना कोई बड़ी समस्या नहीं है।
रोल बैक का दबाव
बहरहाल, जिस प्रकार से देवस्थानम बोर्ड को लेकर भाजपा अभी भी येन-केन-प्रकारेण अड़ी हुई है। उससे लगता है जैसे लोगों को बढ़ती महंगाई के साथ जीने की आदत डालने की सलाह दी जा रही है, वैसे ही तीर्थ-पुरोहितों की इस बोर्ड के साथ ही तालमेल बैठाकर चलने की सलाह आती ही होगी। जबकि राज्य में दूरगामी राजनीति को ध्यान में रखकर बिसात पर कई सधी हुई चालों से अपनी एक खास छवि बना चुके दिल्ली स्थित एक बड़े नेता का खेमा पार्टी को ऊपरी स्तर पर बोर्ड के मुददे पर समझाने में सफल रहा तो देवस्थानम बोर्ड को रोल बैक भी कर दिया जाए तो कोई बड़ी बात नहीं। नई भाजपा में ऐसे चौंकाने वाले फैसले लेने का चलन तो शुरू हो ही चुका है।