Uttarakhand News: अब "मिशन आक्रोश" बना उत्तराखण्ड में भाजपा के गले की हड्डी, जूते की माला पहनाने के संदेश हो रहे हैं सर्कुलेट

Uttarakhand News: आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता में फिर वापसी के लिए "अबकी बार-साठ पार" नारे के साथ अपने कार्यकर्ताओं को सिक्सटी प्लस का टारगेट दे चुकी भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रहीं है। हर नया होता सूर्योदय सत्ता वापसी की जद्दोजहद में जुटी दिक्कतों में इजाफा करता दिखाई देता है।

Update: 2022-01-09 15:31 GMT

Uttarakhand News: आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता में फिर वापसी के लिए "अबकी बार-साठ पार" नारे के साथ अपने कार्यकर्ताओं को सिक्सटी प्लस का टारगेट दे चुकी भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रहीं है। हर नया होता सूर्योदय सत्ता वापसी की जद्दोजहद में जुटी दिक्कतों में इजाफा करता दिखाई देता है। जिससे भाजपा की स्थिति उस नट सरीखी हो गई है जो अनगिनत गेंदों को हवा में उछालकर करतब दिखाता रहता है। भाजपा के लिए मुश्किलों की ताज़ा कड़ी में प्रदेश के पुलिसकर्मियों का आर-पार वाला असंतोष जुड़ गया है। चुनावी कार्यक्रम की घोषणा होने के बाद प्रदेश की भाजपा सरकार के सामने अब इस असंतोष को थामने की कोई सूरत भी नहीं बची है। समाज की मध्यमवर्गीय परत से जुड़े इन असंतुष्ट पुलिसकर्मियों के रोष की वजह से भाजपा को इनके परिवार के मतों के प्रभावित होने का अंदेशा सताने लगा है।

बता दें कि उत्तराखंड में 2001 बैच के पुलिस आरक्षी 4600 रुपये ग्रेड पे की मांग को लेकर लम्बे समय से आंदोलित हैं। इस मांग को लेकर पुलिसकर्मियों ने एक बार पुलिस मैस के भोजन तक का बहिष्कार कर दिया था। तब किसी तरह अधिकारियों ने उन्हें मनाया था। इसके बाद कई बार पुलिस कर्मियों के परिजनों ने इस मांग को लेकर प्रदर्शन भी किया। लेकिन सरकार इन्हें हर बार अपने चिर-परिचित ढंग से झांसा देते हुए मामले को आगे के लिए लटकाती रही। हाल ही में हुई कैबिनेट की बैठक में इस संबंध में कोई निर्णय नहीं हुआ और मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को इसके लिए अधिकृत किया गया था। लेकिन पुलिसकर्मियों की मांग न तो पूरी ही थी, न ही हुई। इस दौरान प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद सरकार द्वारा बनाया गया भृम का पर्दा भी तार-तार हो गया। हालांकि इन पुलिसकर्मियों को फुसलाने के लिए आचार संहिता से पहले उत्तराखंड सरकार ने पुलिस आरक्षियों को एकमुश्त मानदेय के रूप में दो लाख रुपये देने की घोषणा जरूर की। इस संबंध में शासनादेश जारी कर दिए गए हैं।

जिसके तहत उत्तराखंड पुलिस आरक्षियों के प्रथम बैच 2001 के प्रत्येक आरक्षी को दो लाख रुपये की धनराशि एकमुश्त मानदेय के रूप में मिलेगी। लेकिन इस आदेश के बाद पुलिसकर्मियों में एक बार फिर रोष पनप गया। अब फिर से मिशन आक्रोश देखा जा रहा है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ सोशल मीडिया में व्हाट्सएप ग्रुप में अभियान शुरू हो चुका है। एक आरक्षी का पत्र वायरल हो रहा है। इसमें दुखी होकर उसने वीआरएस देने का अनुरोध किया है। कई आरक्षियों की ओर से जारी किए गए संदेश में दो लाख की मिलने वाली इस राशि को दानराशि बताते इस राशि को उत्तराखंड सरकार और पुलिस मुख्यालय को वापस करने की घोषणा की है। साथ ही लिखा जा रहा है कि इस राशि को मौजूदा सरकार और पुलिस मुख्यालय में बैठे उच्चाधिकारियों को बराबर बांट दिया जाए। पुलिसकर्मियों में गुस्सा इस बात का है कि अगर सरकार के बस में उनकी मांग पूरा करने का दम नहीं था तो उन्हें पहले से ही झांसे में नहीं रखना था।

पुलिसकर्मी अनुशासित बल होने के नाते हालांकि खुलकर विरोध नहीं कर रहे हैं। लेकिन उनके अपने इंटरनल वाट्सअप ग्रुप में ऐसे भाजपा विरोधी संदेश धड़ल्ले से सर्कुलेट हो रहे हैं। जनज्वार को मिला एक संदेश कुछ इस प्रकार है।

"आप बीजेपी के नेताओं से अनुरोध है की भूल से भी मेरे घर के दरवाजे पर वोट मांगने ना जाए। क्योंकि ऐसा करने पर आपके साथ मेरे परिवार वालो के द्वारा कोई बदतमीजी हुई। या आपके गले में मेरे परिवार के द्वारा जूतों की माला पहनाई गई तो इसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी उस बीजेपी नेता की होगी।"


कुल मिलाकर उत्तराखण्ड में पुलिसकर्मियों का यह मिशन आक्रोश भाजपा सरकार के गले की ताजा हड्डी बन गया है। प्रभावित पुलिसकर्मियों के मध्यमवर्गीय परिवार से होने व कई अन्य लोगों को राजनैतिक तौर पर प्रभावित करने की क्षमता की वजह से भाजपा इसे अपने लिए खतरे की बड़ी घंटी के रूप में देखने लगी है। पुलिसकर्मियों की इस मांग को न मान कर भाजपा सरकार वैसे तो शुरू से ही झांसा देने का काम किया। लेकिन राज्य में चुनावी आचार संहिता लागू होने के बाद भाजपा के लिए अब इन्हें कोई झांसा देना भी सम्भव नहीं रह गया है। पार्टी के लिए बड़ी मुश्किल यही है।

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