कानपुर के इसरारूल हसन ने कब्रिस्तान में खुद की कब्र खोदकर जिंदा दफन होने का क्यों लिया फैसला?
भोगनीपुर तहसील का दुधनियापुर आज अचानक चर्चा का विषय बन गया। चर्चा ऐसी की जिसे सुनकर हजारों की भीड़ जमा हो गई। क्योंकि, इस गांव में एक शख्स खुद की कब्र खोदकर अपने आप को जिंदा दफन करने पर आमादा था...
जनज्वार, कानपुर देहात। योगी सरकार भले ही प्रदेश में सुशासन और न्याय व्यवस्था की लाख बातें करती हो लेकिन अधिकारियों की कार्यशैली के आगे सरकार की नीतियां व दलीलें बौनी साबित होती हैं। यही कुछ कानपुर देहात के भोगनीपुर तहसील अंतर्गत आने वाले एक गांव में देखने को मिला।
भोगनीपुर तहसील का दुधनियापुर आज अचानक चर्चा का विषय बन गया। चर्चा ऐसी की जिसे सुनकर हजारों की भीड़ जमा हो गई। क्योंकि, इस गांव में एक शख्स खुद की कब्र खोदकर अपने आप को जिंदा दफन करने पर आमादा था, जिसे देखकर पूरा गांव पशोपेश में था।
जानकारी के मुताबिक, भोगनीपुर तहसील का रहने वाला इसरारूल हसन पिछले कई दिनों से शासन प्रशासन और पुलिस के चक्कर काट रहा था और लगातार अपनी समस्या के लिए समाधान की उम्मीद भी कर रहा था। दरअसल, उसके घर के सामने इसके ही पड़ोसी से इसका आपसी विवाद चल रहा है जिसमें एक मकान के छज्जे को बनाने को लेकर दोनों ही पक्ष में आपस में विवाद हो गया।
दूसरा पक्ष ज्यादा मजबूत होने के चलते निर्माण कार्य करवा रहा था। वहीं, इजरारुल हसन लगातार भोगनीपुर एसडीएम और नजदीकी देवराहा थाने में गुहार लगा रहा था लेकिन उसकी दौड़-धूप के परिणाम में उसे निराशा ही हाथ लगी। जिसके बाद उसने ऐसा फैसला किया, जिसने अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इसरारूल हसन कहता है, 'पुलिस और प्रशासन की लापरवाही के चलते वह इतना टूट चुका है कि अब अपने आप को जिंदा जमीन में दफन करने का फैसला कर लिया है।' अगर इसे दूसरी भाषा में बोले तो एक शख्स जिंदा रहते हुए समाधि लेने का फैसला कर रहा था। इस अजीब फैसले से गांव में मजमा लग चुका था देखने वालों की निगाहें कब्रिस्तान में टिकी थीं और हर निगाह में सवाल थे।
ऐसे में एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि, अधिकारियों की लापरवाही के चलते एक पीड़ित इंसाफ से महरूम रह जाता है। आखिर अधिकारी इंसाफ के लिए पीड़ितों को उनकी चौखट पर जूतियां रगड़ने को मजबूर कर देते हैं। कानपुर देहात का यह शख्स इस कदर सरकारी महकमे की कारगुजारीयों से परेशान हो चुका था कि मौत को गले लगाना एक बेहतर विकल्प समझा।
हालांकि, इस मामले की जानकारी मिलते ही आला अधिकारियों का अमला मौके पर पहुंचा तथा इसरार को जमीन में समाधि लेने से रोक लिया। पीड़ित के साथ-साथ प्रशासन और पुलिस ने विपक्ष के लोगों को भी थाने बुलाया। इस पूरे मामले में पुलिस ने दोषी पक्ष के साथ-साथ पीड़ित पक्ष पर भी मुकदमा लिख दिया है और दोनों ही पार्टी को 14 दिन के लिए जेल भेज दिया है।
लेकिन सवाल वहीं का वहीं खड़ा है कि, पीड़ित ने गुहार भी लगाई और मुकदमा लिखवा कर जेल भी जाए यह शायद उत्तर प्रदेश के ही अधिकारियों की कार्यशैली में शुमार है। अब देखने वाली बात यह होगी कि आखिर पुलिसिया कार्यशैली को आलाधिकारी किस नजर से देखते हैं और निचले स्तर पर की गई पुलिस की कार्यवाही से पीड़ित को किस तरह न्याय दिला पाते हैं।
इनपुट : मोहित कश्यप, कानपुर देहात