Climate change : लोग अभी से क्यों सोचने लगे बच्चे पैदा करें या नहीं, ये है हकीकत
21वीं सदी के अंत तक धरती पर भयानक आपदा आने की संभावनाएं है। दुनियाभर के साइंटिस्ट इस बात को लेकर परेशान हैं। समय ज्यादा नहीं है, इंसान ने अपनी जरूरतें और जीवनशैली नहीं बदली तो प्रलय को आने से कोई नहीं रोक सकता।
Climate Change : विज्ञान की रिपोर्ट पब्लिश करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी मैगजीन नेचर जर्नल ने पिछले महीने क्लाइमेट रिपोर्ट को बनाने वाले 233 वैज्ञानिकों को लेकर एक सर्वे किया। सर्वे में 92 वैज्ञानिकों ने शामिल हुए नेचर जर्नल के सवालों के जवाब दिए। इस समूह के 40 फीसदी वैज्ञानिकों ने स्पष्ट तौर पर कहा कि साल 2100 तक धरती पर इतनी तरह की समस्याएं आएंगी कि कई देश तो उसी में तबाह हो जाएंगे। बेमौसम बारिश, अचानक बादलों का फटना, सुनामी, तापमान ज्यादा होना. बाढ़, सूखा जैसी समस्याओं से इंसान परेशान हो जाएगा।
3 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की आशंका
सर्वें में शामिल वैज्ञानिकों में से 60 फीसदी ने यह माना कि इस सदी के अंत तक धरती का औसत तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। यह पेरिस समझौते द्वारा तय किए गए 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तापमान से कहीं ज्यादा है। 88 फीसदी वैज्ञानिकों ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से प्रलय जैसी आपदाएं आएंगी। जलवायु परिवर्तन कई पीढ़ियों को परेशान करेगा। इनमें से आधे वैज्ञानिकों ने क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अपनी जीवनशैली ही बदल ली है।
अहम सवाल
वैज्ञानिकों के मुताबिक जीवनशैली बदलने के मामले में सबसे बड़ा सवाल ये आया है कि बच्चे पैदा करें या नहीं। क्योंकि हम अपने बच्चों को अच्छा भविष्य नहीं दे सकते तो उन्हें इस बर्बाद होती दुनिया में लाने की क्या जरूरत है। जवाब देने वाले वैज्ञानिकों में से 60 फीसदी ने कहा कि उन्हें बेचैनी, दुख और तनाव महसूस होता है, जब वो जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचते हैं।
वैज्ञानिक पाओला एरियास कहती हैं कि वेनेजुएला जैसे राजनीतिक तौर पर अस्थिर देशों में तो स्थिति और बिगड़ेगी। वहां खाने और रहने की बड़ी समस्या हो रही है। ऐसे ही उन देशों का सोचिए जहां पर आए दिन कोई न कोई बीमारी फैलती रहती है। अगर प्रकृति साथ न दे तो स्थिति और भयावह हो सकती है। अमेरिका, चीन, यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का वादा किया है लेकिन क्या वो कर पाएंगे? खास बात यह है कि दुनिया अभी मानसिक और आर्थिक तौर पर संभावित स्थिति से निपटने के लिए तैयार नहीं है।
सिर्फ ग्रीन वादे कर रही हैं दुनिया की सरकारें
इसी तरह अफ्रीकन इंस्टीट्यूट फॉर मैथेमेटिकल साइंस के क्लाइमेट मॉडलर और आईपीसी रिपोर्ट में शामिल साइंटिस्ट मोउहमादोउ बाम्बा सिला ने कहा कि इस समय दुनियाभर की सरकारें सिर्फ ग्रीन वादें कर रही हैं। कोई एक्शन लेता हुआ नहीं दिख रहा है। अमीर हों या विकासशील देश, सभी इसी लाइन पर काम कर रहे हैं। गरीब देशों से तो ग्रीन वादों पर अमल की आप बात ही नहीं कर सकते। जमीन पर क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर कोई काम होता हुआ नहीं दिख रहा है।
नहीं बदली जीवन शैली तो इंसान का जीना होगा मुश्किल
आईपीसीसी की रिपोर्ट बनाने में शामिल वैज्ञानिकों में से एक साइंटिस्ट और कोलंबिया के मेडेलिन में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एंटीकोइया की रिसर्चर पाओला एरियास ने कहा कि जितनी तेजी से दुनिया बदल रही है, उनकी जरूरतें बदल रही हैं, संसाधनों का दोहन हो रहा है, प्रदूषण और गर्मी बढ़ रही है, उस हिसाब से आगामी दशकों में इंसान का जीना मुश्किल होने वाला है। लगातार बदल रहे बारिश के पैटर्न से पानी की किल्लत हो भी रही है, आगे चलकर और भयावह स्थिति हो जाएगी। कई अन्य वैज्ञानिकों ने भी पाओला एरियास की बात से सहमति जताई।
वैज्ञानिक पाओला ने ग्लोबल कम्युनिटी को चेताते हुए कहा कि जिस तरह से ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है, उस हिसाब से समुद्री जलस्तर भी बढ़ रहा है। मुझे लग नहीं रहा कि अंतरराष्ट्रीय लीडर्स ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर बहुत ज्यादा सक्रिय हैं। वो धीमी गति से काम कर रहे हैं। इस गति से धरती को बचाया नहीं जा सकता। प्राकृतिक आपदाओं के चलते सामूहिक स्तर पर लोग विस्थापित हो रहे हैं।
कहीं मंगल ग्रह की तरह न हो जाए धरती
पाओला का कहना है कि IPCC की क्लाइमेट रिपोर्ट 2022 में जो बातें कही गई हैं उसके हिसाब से इंसानों के पास धरती को बचाने के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। धरती कहीं मंगल ग्रह की तरह न हो जाए। ज्यादा तापमान में तो समुद्र सूख जाएंगे या फिर जमीन डूब जाएगी।
क्या है आईपीसीसी
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की निकाय है। आईपीसीसी जलवायु संकट के मुद्दे पर काम कर रही है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो पूरी धरती के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। आईपीसीसी की रिपोर्ट सरकार, कारोबारी नेताओं और यहां तक कि युवा प्रदर्शनकारियों को भी प्रभावित करती है। इससे जुड़े वैज्ञानिक तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के मौजूदा प्रभाव और इसकी वजह से भविष्य में आने वाले खतरों की समीक्षा करते हैं। साथ ही, इससे होने वाले नुकसान को कम करने और दुनिया के तापमान को स्थिर रखने के विकल्पों के बारे में बताते हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 1988 में आईपीसीसी को स्थापित किया था। यह संगठन जलवायु के बारे में मूल्यांकन करके कुछ सालों के अंतराल पर रिपोर्ट जारी करता है।
2022 में आएगी आईपीसीसी रिपोर्ट
जुलाई 2021 के अंत में, लगभग 200 देशों ने जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट दुनिया के 234 साइंटिस्ट ने तैयार कर लिया है। ग्लासगो में संपन्न संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में इसके कुछ पहलुओं पर गौर फरमाया गया है। पीएम मोदी भी इसमें शामिल होकर एक दिन पहले दिल्ली लौअ आए हैं। आईपीसीसी की पूरी रिपोर्ट 2022 में जारी होगी। फिलहाल, जो संभावनाएं जताई गई हैं वो डराने वाली हैं। यही वजह है कि ग्लासगो में दुनिया के ताकतवर नेताओं के बीच इस पर मतभेद उभरकर सामने आए हैं।