ग्लोबल एनालिसिस 2019 रिपोर्ट के अनुसार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए कोलंबिया दुनिया का सबसे ख़तरनाक देश है, जहां पिछले वर्ष 106 कार्यकर्ताओं की हत्या की गई...
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पांडेय की टिप्पणी
दुनियाभर की सरकारें मानवाधिकार का हनन करती जा रहीं हैं। अब इस मामले में तथाकथित लोकतांत्रिक सरकारें भी तानाशाही सरकारों से टक्कर लेने लगीं हैं। आयरलैंड की गैर सरकारी संस्था 'फ्रंटलाइन डिफेंडर्स' द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट 'ग्लोबल एनालिसिस 2019' के अनुसार पिछले वर्ष दुनिया के कुल 31 देशों में 304 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई और हजारों ऐसे कार्यकर्ताओं को लगभग सभी देशों में बंदी बनाया गया, धमकी दी गई, कानूनी पचड़े में फंसाया गया या फिर प्रताड़ित किया गया।
इस रिपोर्ट को मारे गए सभी कार्यकर्ताओं को समर्पित किया गया है। 'फ्रंटलाइन डिफेंडर्स' दुनिया के सभी देशों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न से संबंधित प्रकाशित आंकड़े इकट्ठा करता है और हरेक वर्ष इससे संबंधित एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है।
मानवाधिकार हनन के लिए सबसे ख़तरनाक माने जाने वाले देशों की स्थिति भी भारत से अच्छी है। ऐसे कार्यकर्ताओं की हत्या अफ़ग़ानिस्तान में 3, चीन में 2, पाकिस्तान में 4, रूस में 2 और सीरिया में 1 हुई।
जिन कार्यकर्ताओं की हत्या की गई उनमें से 85 प्रतिशत को पहले धमकी मिल चुकी थी और 40 प्रतिशत से अधिक कार्यकर्ता पर्यावरण से जुड़े मसलों पर काम कर रहे थे। मारे गए कार्यकर्ताओं में से 13 प्रतिशत महिलाएं थीं।
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इंग्लैंड की संस्था 'ग्लोबल विटनेस' की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 के दौरान दुनिया में पर्यावरण की रक्षा करते हुए 164 लोग मारे गए थे, यानी प्रति सप्ताह औसतन तीन लोगों ने पर्यावरण को बचाने के क्रम में अपनी जान गंवाई। इस संदर्भ में भारत का स्थान 23 हत्याओं के साथ दुनिया में तीसरा था। भारत से ऊपर केवल दो देश थे - 30 हत्याओं के साथ पहले स्थान पर फिलिपींस और 24 हत्याओं के साथ कोलंबिया।
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हमारे देश में भी प्रधानमंत्री अनेक बार पर्यावरण संरक्षण की पांच हजार साल पुरानी परंपरा की दुहाई देते हैं लेकिन अदानी और दूसरे पूंजीपति जंगलों से वनवासियों को बेदखल कर कहीं भी खनन का काम करने लगते हैं या फिर जंगलों के बीच उद्योग खड़े कर देते हैं।
इतना तो तय है कि जिस पर्यावरण ने आज तक मानव जाति का अस्तित्व सहेजा है उसी पर्यावरण के कारण अब इसका अस्तित्व संकट में है। प्रदूषण और पर्यावरण विनाश आपको मार डालेगा और यदि इसके विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो सरकारें और उद्योगपति आपको मार डालेंगे - अब इन दोनों में से एक को चुनना है।