भगत सिंह के आदर्श लेनिन के विचारों की आज के दौर में प्रासंगिकता

Update: 2018-04-20 14:11 GMT

जनज्वार, रामनगर। 22 अप्रैल को मजदूर, किसानों, गरीबों के महान नेता माने जाने वाले लेनिन का जन्मदिन है। इस अवसर पर समाजवादी लोकमंच द्वारा रामनगर के अशफाक बिस्मिल भवन, पायते वाली रामलीला स्टेट बैंक के सामने 'भगत सिंह के आदर्श लेनिन के विचारों की प्रासंगिकता आज के दौर में' विषय पर एक जनसभा का आयोजन किया जा रहा है।

देश में लेनिन की मूर्ति गिराए जाने के बाद जनता में उनको जानने की जिज्ञासा पैदा हुयी है। लेनिन के जन्मदिन और आम जनता में लेनिन की पहचान और उनके बारे में और ज्यादा जानकारी देने के मकसद से इस जनसभा का आयोजन किया जा रहा है।

कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर सचिन निर्मल नारायण और पत्रकार अजय प्रकाश शामिल होंगे। यह जानकारी समाजवादी लोक मंच के संयोजक कैसर राना की तरफ से साझा की गई है।

गौरतलब है कि देश की आजादी में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाने वाले शहीद भगत सिंह के नाम से सभी देशवासी भली-भांति परिचित हैं, परन्तु उनकी विचारधारा के बारे में देशवासी बहुत कम जानते हैं कि भगत सिंह साम्यवादी थे तथा दुनिया के मजदूर-मेहनतकशों के नेता ब्लादीमीर इलीच लेनिन को अपना आदर्श मानते थे।

शहीद भगत सिंह सोवियत रूस के समाजवादी राज्य से बेहद प्रभावित थे। वे पूंजीपति परस्त कांग्रेस के मुकाबले भारत में भी मजदूर-किसानों का राज स्थापित करना चाहते थे। 21 जनवरी, 1930 को लेनिन की मृत्यु वार्षिकी के दिन लाहौर षडयंत्र केस में भगत सिंह समेत सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश किया गया।

उस दिन सभी अभियुक्त लाल रुमाल बांधकर उपस्थित हुए। जैसे ही जज ने आसन ग्रहण किया, क्रांतिकारियों के नारे से अदालत गूंजने लगी- समाजवादी क्रांति जिन्दाबाद!, लेनिन का नाम अमर रहेगा!, साम्राज्यवाद का नाश हो!, कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जिंदाबाद!

भगत सिंह ने अदालत में तार का मजमून पढ़कर सुनाया तथा अदालत से इसे तीसरे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल को भिजवाने का आग्रह किया। तार का मजमून इस प्रकार था, ‘लेनिन दिवस के अवसर पर हम उन सभी को हार्दिक अभिनन्दन भेजते हैं, जो महान लेनिन के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी कर रहे हैं। हम रूस द्वारा किए जा रहे महान प्रयोग की सफलता की कामना करते हैं, सर्वहारा विजयी होगा। साम्राज्यवाद की मौत हो।’

1917 में रूस की बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में मजदूर-किसानों ने वहां के राजा जार व पूंजीपतियों की सत्ता को उखाड़कर फेंक दिया था तथा लेनिन के नेतृत्व में समाजवाद कायम किया था। रुस की इस समाजवादी क्रांति ने जनता को वास्तविक रूप से स्वतंत्रता व समानता का अधिकार दिया। प्रत्येक नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास की गारंटी दी गयी। जंमीदारों-पूजीपतियों की सम्पत्ति को जब्त कर इस पर मजदूर, किसानों का मालिकाना कायम किया गया। लेनिन के नेतृत्व में हुयी समाजवादी क्रांति ने रुस जैसे बेहद पिछड़े देश को विकसित मुल्कों से भी आगे की कतारों में ला खड़ा किया।

रूस के इस समाजवादी राज्य से समूची दुनिया के शोषित-उत्पीड़ित राष्ट्रों व मेहनतकश जनता के संघर्षों को जहां एक नई रोशनी मिली, वहीं दुनिया के पूंजीपति व साम्राज्यवादी बेहद भयभीत हो गये। लेनिन और समाजवादी क्रांति का भूत आज भी दुनिया के पूंजीपतियों व साम्राज्यवादियों को डराता है। वे अपने प्रचार माध्यमों से लेनिन की छवि एक तानाशाह के रुप में स्थपित करने की कोशिश कर रहे हैं।

पिछले मार्च माह में त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में भाजपा की विजय के बाद लेनिन की मूर्तियों को तोड़ा जाना इसी की एक कड़ी थी। देश में मूर्तियों तोड़ा जाना लेनिन तक ही नहीं रुका, उन्मादी लोगों ने जातिवाद व पोंगापंथ पर करारे प्रहार करने वाले पेरियार और अम्बेडर की मूर्तियां को भी कई स्थानों पर तोड़ डाला।

हमारे देश के संविधान में दर्ज स्वतंत्रता, समानता, समाजवाद व धर्मनिरपेक्षता जैसी बातें कागजों तक ही सीमित होकर रह गयी हैं। सत्ता पर काबिज भाजपा, तथा विपक्षी कांग्रेस, सपा, बसपा व अन्य पूंजीवादी दलों के पास देश के मजदूर, किसानों समेत आम आदमी की रोजमर्रा की समस्याओं को हल करने का कोई भी रास्ता नहीं है। कांग्रेस को हटाकर भाजपा को चुन लेने से केवल सरकार बदलती है, व्यवस्था नहीं। देश के मजदूर, किसानों व आम भारतीय का जीवन भगत सिंह व लेनिन के बताए क्रांतिकारी रास्तें पर चल कर ही बदल सकता है व खुशहाल बन सकता है।

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