बिहार में फिर गरमाया आरक्षण का मुद्दा, इधर लालू-तेजस्वी ने किया ट्विट उधर राज्य के एससी-एसटी विधायकों की हुई बैठक
तेजस्वी यादव ने कहा कि कोरोना महामारी की आड़ में आरक्षण और सामाजिक न्याय के खिलाफ चल रहे षडयंत्र से राजद पूरी तरह वाकिफ और लंबी लड़ाई के लिए तैयार है...
जनज्वार, पटना। बिहार में विधानसभा चुनावों की आहट शुरू होते ही आरक्षण का मुद्दा फिर से गरमाने लगा है। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनावों की तरह आरक्षण का जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है। आरक्षण को लेकर लालू प्रसाद के अधिकृत ट्विटर हैंडल और तेजस्वी यादव द्वारा 3 जून को ट्विट किए गए थे।अब 4 जून को एससी-एसटी आरक्षण बचाने को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के आवास पर सर्वदलीय हुई, पर राजद ने इस बैठक से किनारा कर लिया।
कोरोना संकट के बीच ही सभी दलों में चुनावी सरगर्मी शुरू हो गई है। बीजेपी भी इसमें पीछे नहीं। बीजेपी ने आगामी 7 जून को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की वर्चुअल रैली प्रस्तावित की है तो राजद ने उसी दिन मजदूर अधिकार दिवस मनाने का फैसला लिया है। इस बीच लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान ने भी 3 जून को पार्टी पदाधिकारियों के साथ वर्चुअल बैठक के जुलाई माह में विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर देने की बेस्ट कह चुके हैं।
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इधर लालू प्रसाद के अधिकृत ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट कर आरक्षण को लेकर कहा गया है कि 'संविधान प्रदत्त आरक्षण आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक,प्रभावशाली, सकारात्मक और सशक्त कार्यक्रम है। जातिवादी चरित्र और संकीर्ण सोच के कुछ संगठन,पार्टी और संस्थान इसे समाप्त करना चाहते हैं।वंचितों,उपेक्षितों को अब जग ही जाना चाहिए।'
इसके बाद उनके पुत्र और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से किए गए ट्विट को रिट्वीट करते हुए कहा-'कोरोना महामारी की आड़ में आरक्षण और सामाजिक न्याय के खिलाफ चल रहे षडयंत्र से राजद पूरी तरह वाकिफ और लंबी लड़ाई के लिए तैयार है। संस्थाओं के वर्चस्ववादी चरित्र एवं शासक वर्ग की नीति और नीयत को कामयाब नहीं होने देंगे। विधायिका में और सड़क पर साझा संघर्ष होगा।'
जाहिर है इन ट्वीटों के बाद बिहार की राजनीति गरमानी ही थी और गरमाई भी। बिहार में अब इन ट्वीटों को लेकर चर्चाएं शुरू हो गईं हैं। लोग तरह-तरह के तर्क-वितर्क कर रहे हैं। हालांकि इसपर अभी किसी दूसरे राजनैतिक दल की प्रतिक्रिया नहीं आई है।
उस बैठक में राजद के भी विधायक शामिल हुए थे। पर इस बार राजद विधायकों ने बैठक से किनारा कर लिया है। यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि तकनीकी रूप से 'हम' पार्टी अभी भी महागठबंधन के हिस्सा है, पर हालिया समय मे मांझी जब-तब राजद पर निशाना साधते रहे हैं।
ट्रिपल मर्डर को लेकर जब तेजस्वी यादव ने गोपालगंज जाने की घोषणा की थी,तब भी जीतनराम मांझी ने उनपर निशाना साधते हुए कहा था कि तेजस्वी दलितों की हत्या पर उनसे मिलने नहीं जाते।जिसके बाद अगले ही दिन तेजस्वी यादव पटना के नौबतपुर में हुई दलित हत्या के पीड़ितों से मिलने पहुंच गए थे।
यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि बिहार में वर्ष 2015 में हुए विगत विधानसभा चुनाव के दौरान आरएसएस के मोहन भागवत ने एक सभा मे आरक्षण के समीक्षा की बात कह दी थी,जिसे राजद ने लपक लिया था और हर सभा मे मोहन भागवत के उस बयान को जोर शोर से उठाता था और बीजेपी को उसका बचाव करना पड़ता था।हालांकि भागवत ने उस बयान को लेकर बाद में सफाई भी दी थी पर डैमेज कंट्रोल नहीं हो पाया था।
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वर्ष 2015 में राजद-जदयू साथ मिलकर चुनाव लड़े थे और बीजेपी अलग लड़ी थी। राजद-जदयू की सरकार बनी थी पर वर्ष 2017 में जदयू ने रासज्ड से अलग होकर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। उस चुनाव में राजद 100 सीटों पर लड़ी थी और 80 सीटों पर उसे जीत मिली थी। राजद की कामयाबी में मोहन भागवत के उस बयान की बड़ी भूमिका मानी गई थी।
इधर आज हुई एससी-एसटी विधायकों की सर्वदलीय बैठक में बिखराव भी देखने को मिला। राजद के एससी-एसटी विधायक बैठक में यह कहकर शामिल नहीं हुए कि आरक्षण की लड़ाई सत्ताधारी पार्टी नहीं,बल्कि राजद ही लड़ता रहा है।वहीं मंत्री श्याम रजक ने बैठक को सफल बताया है।