एम्स के डॉक्टरों की पीएम मोदी से अपील, इलाज का सामान मांगने पर मिल रही हैं धमकियां

Update: 2020-04-09 07:53 GMT

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी ने कहा सुरक्षा उपकरणों की कमी के बारे में बताने पर 10 डॉक्टरों को या तो पुलिस ने धमकी दी है, या फिर उनका तबादला कर दिया गया है, या इस्तीफ़ा देने पर मजबूर किया गया है....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

पूरी दुनिया में कट्टरपंथी और तथाकथित राष्ट्रवादी सरकारें इस महामारी के दौर में भी अपनी ताकतें बढाने में लगीं हैं। उनके लिए महामारी भाषणों और आश्वासनों से अधिक कुछ भी नहीं है। इस दौर में भी, ये नेता केवल खबरें दबा कर अपने चमत्कार को साधने में लगे हैं।

मारे प्रधानमंत्री को तो बार-बार टीवी के परदे पर अवतरित होने का एक नायाब मौका मिल गया है, कोरोना वायरस से सम्बंधित पहले राष्ट्रीय संबोधन में उन्होंने पांच मिनट के लिए महामारी में भी जरूरी सेवायें देने वाले लोगों को धन्यवाद देने के लिए थाली बजाने का हुक्म दिया था। लोगों ने भी जी भर के थालियाँ बजा डालीं, पर जिनके लिए थालियाँ बजाई गयीं, वही स्वास्थ्य कर्मी इस महामारी के दौर में सबसे उपेक्षित हैं और उनकी सुध लेने का समय प्रधानमंत्री के पास भी नहीं है।

स सरकार का यह रवैया कोई नया नहीं है। याद कीजिये नोटबंदी का दौर, जब काम के बोझ से अनेक बैंककर्मी बीमार पड़ गए थे, कुछ मर भी गए थे, कुछ ने नौकरी छोड़ दी थी, और कुछ ने आवाज उठाई तो उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया था। अब वही दौर वापस आ गया है, इस बार परेशान बैंककर्मी नहीं बल्कि स्वास्थ्यकर्मी हैं।

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मेनस्ट्रीम मीडिया दिनभर पाकिस्तान की समस्याएं तो बता देता है, पर खबरों पर सरकारी नियंत्रण का ऐसा असर है कि यहाँ के स्वास्थ्य कर्मियों की समस्याएं कभी बताई नहीं जातीं। देश में जनता तो भूख, प्यास, बेरोजगारी, और रोग से मर ही रही है, अब तो डॉक्टर, नर्सें और दूसरे स्वास्थ्यकर्मीं भी सुरक्षा उपकरण के अभाव में कोरोना की चपेट में आकर मर रहे हैं।

केरल स्थित यूनाइटेड नर्सेज एसोसिएशन, जिसके देशभर में 3.8 लाख सदस्य हैं, ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी मांगों को लेकर याचिका दायर की है। याचिका के अनुसार केंद्र सरकार ने कोविड 19 से निपटने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों के लिए कोई भी राष्ट्रीय प्रबंधन मसविदा (national management protocol for COVID 19) नहीं तैयार किया है, जबकि देशभर के स्वास्थ्यकर्मी लगातार अत्यधिक खतरे में काम कर रहे हैं।

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विशेषकर नर्सों को संक्रमण के खतरे के साथ ही, लम्बे समय तक काम, मानसिक तनाव, थकान, पेशेगत परेशानियां, सामाजिक भेदभाव और शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। इस याचिका में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की अनुपलब्धता या फिर मानक से नीचे के उपकरण, कोविड 19 की जांच के उपकरण की कमी, संक्रमण वाले रोगों की रोकथाम के लिए प्रशिक्षण का अभाव, आइसोलेशन वार्ड में बुनियादी सुविधाओं की कमी के बारे में भी कहा गया है।

याचिका के अनुसार नर्सों को कोई ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं मिलती, ओवरटाइम के लिए भेदभाव किया जाता है, कम्पंसेटरी छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है, यानि लगातार सामान्य समय से अधिक ड्यूटी करने के बाद भी छुट्टियों के पैसे काटे जाते हैं और इस दौर में गर्भवती या नवजात शिशुओं वाली नर्स को भी लगातार ड्यूटी करनी पड़ रही है।

स याचिका में मांग की गई है कि कोविड 19 के समय कार्यरत सभी स्वास्थ्य कर्मियों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत व्यक्तिगत दुर्घटना के दायरे में शामिल किया जाए।

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पिछले 8 अप्रैल को नई दिल्ली के एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन, जिसके 2500 से अधिक सदस्य हैं, ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अवगत कराया कि जो भी डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की कमी के बारे में बताता है, उसे प्रताड़ित किया जा रहा है।

स एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल डॉ श्रीनिवास राजकुमार के अनुसार अब तक कम से कम 10 डॉक्टरों को या तो पुलिस ने धमकी दी है, या फिर उनका तबादला कर दिया गया है, या इस्तीफ़ा देने पर मजबूर किया गया है। कोलकाता के डॉ इन्द्रनील खान ने जब सोशल मीडिया पर रेनकोट पहनकर काम करते स्वास्थ्यकर्मियों के बारे में पोस्ट किया तो स्थानीय पुलिस उनसे 16 घंटे पूछताछ करती रही।

श्मीर के हालत सबको पता हैं, पर कोई भी आधिकारिक खबर नहीं आती, क्योंकि स्थानीय प्रशासन की तरफ से सभी स्वास्थ्य कर्मियों को सख्त आदेश दिए गए हैं कि वे मीडिया या सोशल मीडिया पर किसी भी कमी को उजागर करने की जुर्रत न करें।

ब तो हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि डॉक्टर और नर्सें कोविड 19 के मरीजों की सेवा करते-करते स्वयं इस वायरस की चपेट में आ रहे हैं और मर भी रहे हैं। कुछ दिनों पहले मुंबई का वोखार्द्ट अस्पताल बंद कर दिया गया क्योंकि वहां के 26 नर्सें और 3 डॉक्टर कोविड 19 की चपेट में आ गए। 8 अप्रैल को दिल्ली सरकार के दिल्ली कैंसर इंस्टीट्यूट को भी बंद कर दिया गया, क्योंकि वहां के 2 डॉक्टर और 16 नर्सें इस महामारी का शिकार हो गयीं।

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सके अतिरिक्त दिल्ली में ही महाराज अग्रसेन अस्पताल, गंगा राम अस्पताल, एम्स और सफदरजंग अस्पतालों के 40 से अधिक स्वास्थ्य कर्मी कोविड 19 की चपेट में आ चुके हैं। इनमें से अधिकतर को संक्रमण केवल इस कारण से हुआ है कि उनके पास पर्याप्त और मानक-अनुरूप व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण नहीं थे। इन सबके बाद भी पूरा देश बड़ी शिद्दत से मोमबत्तियां जलाकर कोरोना वायरस को भगाने में व्यस्त है।

ड़ोसी देश पाकिस्तान में भी ऐसी ही स्थिति है। कुछ दिनों पहले वहां एक नर्स और एक डॉक्टर की मौत कोविड 19 से हो गई। इसके बाद से 50 से अधिक स्वास्थ्य कर्मी इसकी चपेट में आ चुके हैं। सिंध प्रांत में जब डॉक्टर व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की मांग को लेकर आन्दोलन कर रहे थे तब पुलिस ने उनपर डंडे बरसाए और 53 डॉक्टरों को जेल में बंद कर दिया।

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चुनाव और राजनीतिक भाषणों में बड़े वादे करना और जनता को गुमराह करना तो इस सरकार की आदत में शुमार है, पर अब तो बात महामारी का सामना करने की है, उसमें भी यही किया जा रहा है। बड़े-बड़े कोष बनाए जा रहे हैं, लोग करोड़ों में चंदा दे रहे हैं, सरकार भी राहत देने की बात कर रही है, पर आश्चर्य यह है कि सबसे आगे डटे स्वास्थ्यकर्मी बिना किसी बुनियादी सुविधा के ही काम कर रहे हैं। सरकार इनकी जरूरतों को पूरा करने के बदले समाचारों को रोकने पर जोर दे रही है। यही न्यू इंडिया है।

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