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कोरोना के नाम पर फैलाए जा रहे अंधविश्वासों के खिलाफ 400 वैज्ञानिकों ने लिया मोर्चा
धर्मगुरुओं और ज्योतिषियों के चंगुल में फंसे भारतीय समाज के लिए यह अच्छी बात है कि अब वैज्ञानिक भी सीधे तौर पर वैज्ञानिक तथ्यों के साथ समाज से जुड़ रहे हैं...
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
जनज्वार, दिल्ली। कोविड 19 के विस्तार की दर से अधिक तेज इससे सम्बंधित अफवाहें फ़ैल रहीं हैं। ऐसा पूरी दुनिया में हो रहा है, पर हमारे देश में तो यह सरकारी स्तर पर और मीडिया स्तर पर भी प्रचारित किया जाता है। इन अफवाहों में इनसे जुडी दवाएं, योग के आसन, राम-नाम, मच्छर-मक्खी, गौमूत्र, गोबर का लेप, खानपान, ग्रह-नक्षत्र, बत्ती—मोमबत्ती सभी जुड़े हैं। इसकी उत्पत्ति पर भी खूब अफवाह और फेक न्यूज़ आती रहीं।
एक तरफ तो जनता बीमारी के डर और लॉकडाउन (Lockdown) से परेशान है तो दूसरी तरफ ये अफवाहें और भ्रामक खबरें उसे और डरा रहीं हैं। ऐसे में देश के विभिन्न प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थानों से जुड़े लगभग 400 वैज्ञानिकों ने इन अफवाहों और झूठी खबरों के तार्किक उत्तर देने का बीड़ा उठाया है।
400 से भी अधिक वैज्ञानिकों ने “इंडियन साइंटिस्ट्स रिस्पोंस टू कोविड 19” (Indian scientist response to COVID-19) यानि ISRC नामक समूह तैयार किया है। यह समूह विभिन्न माध्यमों से कोविड 19, यानि कोरोना वायरस को लेकर जनता के बीच फ़ैली या फैलाई जा रही भ्रांतियों के निवारण का प्रयास कर रहा है।
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प्रायः वैज्ञानिकों के समुदाय की भाषा अंग्रेजी (English) रहती है, पर इस समुदाय ने देश की बड़ी आबादी तक पहुँचने के लिए अंग्रेजी के साथ 14 अन्य भारतीय भाषाओं में भी अपनी सामग्री उपलब्ध कराई है। इस समुदाय ने अभी तक लगभग 19 पोस्टरों के माध्यम से चुनिन्दा अफवाहों या झूठी खबरों का तार्किक और वैज्ञानिक पक्ष उजागर किया है।
हरेक पोस्टर को तीन खण्डों – दावा, निर्णय और क्यों खण्डों में विभाजित किया गया है। उदाहरण के लिए, एक पोस्टर में दावा है, ज्योतिषियों ने कोविड 19 बीमारी को समझने में मदद के लिए महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी हैं। आईएसआरसी का निर्णय है – असत्य/झूठ और फिर “क्यों” में बताया गया है कि “खगोलीय मंडलों की गति और स्थान से मानव जीवन और विषाणुओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस कारण ज्योतिषीय भविष्यवाणियाँ भी उपयोगी नहीं हैं। कोरोना विषाणु के बारे में हमारी सभी जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान से प्राप्त की गई है।”
इसी तरह के दावों पर आधारित अन्य पोस्टर भी हैं। दूसरे पोस्टर में एक प्रचलित दावे, गोमूत्र या गोबर मुझे इस विषाणु से बचाएगा, की पड़ताल की गई है। निर्णय है, असत्य/झूठ और इसके कारण में बताया गया है, “इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि गोमूत्र या गोबर कोरोना विषाणु को नष्ट कर सकता है। इसके अतिरिक्त गाय के मूत्र या गोबर का उपयोग अथवा सेवन खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे स्वास्थ्य संबंधी अन्य परेशानियां हो सकतीं हैं।”
आईएसआरसी (ISRC) की वेबसाइट https://indscicov.in/busting-hoaxes/ पर ये सभी पोस्टर और अन्य उपयोगी जानकारियाँ उपलब्ध हैं। पत्रकारों और संपादकों के लिए 4 अप्रैल को जारी विज्ञप्ति में भी अनेक भ्रांतियों का निवारण किया गया है। जैसे, कोविड 19 मच्छर या मक्खियों से नहीं फैलता, यह पालतू जानवरों से नहीं फैलता, ताली बजाने से विषाणु नहीं मरते।
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इसी तरह ज्योतिषियों और धर्मगुरुओं के दावों के बाद भी तथ्य यह है कि ग्रहण, नक्षत्रों और राहू-केतु का मानव जीवन या विषाणुओं पर कोई असर नहीं पड़ता। ज्योतिष मान्यताओं और किसी महामारी के पनपने या इसके विस्तार में कोई सम्बन्ध नहीं है।
लगातार धर्मगुरुओं और ज्योतिषियों के चंगुल में फंसे भारतीय समाज के लिए यह अच्छी बात है कि अब वैज्ञानिक भी सीधे तौर पर वैज्ञानिक तथ्यों के साथ समाज से जुड़ रहे हैं और धर्म के आडम्बर से लिपटी मान्यताओं को ध्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं।
आईएसआरसी के एक समन्वयक, चेन्नई स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैथेमेटीकल साइंस के वैज्ञानिक आर. रामानुजम के अनुसार इस समूह में पहले महज 10 वैज्ञानिक थे, पर अब 400 से अधिक वैज्ञानिक, समाज विज्ञानी और पत्रकार इसके सदस्य है और इसमें से 60 से अधिक सदस्य लगातार सक्रिय सहयोग देते रहते हैं।
मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च की वैज्ञानिक संध्या कौशिक के अनुसार वे कोविड 19 से जुड़ी भ्रांतियों और अफवाहों का निवारण सामान्य जन के लिए उन्ही की भाषा में करना चाहती थीं, इसलिए इस वैज्ञानिक समुदाय में काम करते हुए उन्हें खुशी हो रही है।
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आईआईएसईआर कोलकाता के वैज्ञानिक दिब्येंदु नंदी ने बताया कि आईएसआरसी अंग्रेजी के साथ-साथ 14 अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं में अपनी सामग्री तैयार करता है। आईएसआरसी की तरफ से रिपोर्ट ड्राफ्ट करने से लेकर अनुवाद और फिर समय से जानकारियाँ उपलब्ध कराने के महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन के डॉ अनिकेत सुले के अनुसार इस समूह से विदेशों से भी अनेक वैज्ञानिक जुड़े हैं।
वैज्ञानिकों का इस तरीके से विज्ञान और प्रोद्योगिकी की विचारधारा को आम जनता तक पहुंचाने की पहल सराहनीय है। संभव है आने वाले वर्षों में जनता एक वैज्ञानिक सोच विकसित कर लेगी और तब थालियाँ पीटकर या फिर मोमबत्ती जलाकर किसी विषाणु को नहीं भगायेगी।