NRC : अजबहार अली ने डिटेंशन सेंटर में बिताए बेगुनाही के 3 साल, बाहर निकालने के लिए परिवार ने बेच डाली जमीन, गायें और दुकान
24 सितंबर 2016 के दिन हक अपने वकील से मिले और उसके बाद अपने घर लौटे तो उनकी मां बलिजान बीबी जाग रही थीं। मां से थोड़ी बातचीत की तो उसने बिस्तर पर जाने के लिए। कुछ घंटे बाद हक के भाई-बहनों में से एक ने अपनी मां को अपने बेडरूम में फंदे पर लटका पाया...
जनज्वार। उत्तर पूर्वी भारतीय राज्य असम के एक 56 वर्षीय किसान अजबहार अली को मई 2016 में जिस दिन गिरफ्तार किया गया, उन्हें वह आज भी याद है। उन्होंने अमेरिकी समाचार वेबसाइट एबीसी न्यूज को बताया कि मुझे नहीं मालूम था कि वे मुझे किस कारण या क्यों ले गए। मेरे खिलाफ दो साल पहले एक मामला था। बॉर्डर पुलिस आयी और मुझे गिरफ्तार कर लिया..मैं नहीं जानता था कि मैने क्या गलती की है।
अली बताते हैं कि उनका गांव खेलुआपारा है जहां लगभग 200 घरों की एक छोटी बस्ती है। उन्हें वहां से नजदीकी पुलिस स्टेशन ले जाया गया और फिर बोंगाईगांव शहर में ले जाया गया था। उस अली के बेटे मोइनुल हक को एक फोन कॉल आया और वह तुरंत अपने पिता को खोजने के लिए मोटरसाइकिल पर सवार हो गया।
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अली बताते हैं कि उन्हें जब घर से ले जाया गया तो वह उस समय तक नहीं जान पाए की मामला क्या हुआ है। लेकिन असम पुलिस के सीमा संगठन की ओर से उन्हें एक 'संदिग्ध अवैध अप्रवासी' के रुप में पहचाना गया। असम पुलिस के सीमा संगठन को अवैध प्रवासियों का पता लगाने का काम सौंपा गया है।
असम की विशेषज्ञ न्यायाधिकरणों (Assam Specialist Tribunals) द्वारा उन्हें पहले ही एक 'विदेशी' कर दिया गया था। भारत की राजधानी दिल्ली जहां इसी हफ्ते सीएए को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगा देखा गया। वहीं राजधानी से दूर असम में एनआरसी को एक टेस्ट केस के रुप में देखा जा रहा है। सत्तारुढ़ हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा समर्थित सीएए ने पूरे राष्ट्र को सदमा दे दिया है।
सीएए दिसंबर 2019 में पारित किया गया जो गैर मुस्लिम अवैध प्रवासियों के लिए नागरिकता का रास्ता खुला छोड़ देता है। एनआरसी जनगणना जैसी कवायद है जो यह तय करेगा कि कौन वैध नागरिक है। असम में एनआरसी अली को गिरफ्तार करने से पहले 2015 में शुरु हुआ था।
अली का दावा है कि उनके परिवार की तीन पीढ़ियां असम में रह चुकी हैं और इस बात को साबित करने के लिए उनके पास दस्तावेज भी हैं। पिछले साढ़े तीन वर्षों में उनका संयम त्रासदी से भरा रहा है।
अली को हिरासत में लिए जाने के बाद उनके परिवार ने हाथ-पैर मारकर एक वकील किया। फिर उनका केस विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेन ट्रिब्यूनल) से हाईकोर्ट चला गया और फिर सितंबर में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
केस को लड़ने के लिए उनके परिवारवालों ने अपनी जमीन, गायें और एक छोटी मोबाइल की दुकान को बेच दिया। इस दुकान में मोबाइल रिपेयरिंग का काम होता था जिसे उनका बेटा हक चलाते थे। तब उनकी दुकान से परिवार की मासिक आय 20,000 रुपये थी।
अभी भी उनके पास एक छोटा सा भूखंड था लेकिन स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि वह बचाना भी उनके लिए अग्नि परीक्षा जैसे हो गया। हक ने कहा, मैने अपनी मां से पूछा कि क्या हम जमीन गिरवी रख सकते हैं। तो उन्होंने सहमति जताई थी।
24 सितंबर 2016 के दिन शुरुआती घंटों में हक अपने वकील से मिले और उसके बाद अपने घर लौटे तो उनकी मां बलिजान बीबी जाग रही थीं। हक बताते हैं कि उनसे थोड़ी बातचीत की तो मां ने बिस्तर पर जाने को कहा। कुछ घंटे बाद हक के भाई-बहनों में से एक ने अपनी मां को अपने बेडरूम में फंदे पर लटका पाया। इसके बाद उन्हें बोंगाईगांव के नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन उन्होंने मां को बारपेटा के एक मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया। मेडिकल कॉलेज तक पहुंचने में एक घंटा का समय लगा। लेकिन बारपेटा अस्पताल से लगभग एक किलोमीटर दूर मेरी माँ का निधन हो गया।
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हिरासत में तीन साल से अधिक का समय बिताने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट की ओर से सशर्त रिहा करने का आदेश के बाद अली अब आजाद हैं। लेकिन जिस प्रक्रिया के तहत उन्हें हिरासत लिया गया था उसने उनका पूरा जीवन बदल दिया है। अली और उनके परिवार की कहानी राष्ट्रीय बहस का एक छोटा हिस्सा है।
सरकार का कहना है कि सीएए भारतीय नागरिकों को प्रभावित नहीं करता है, बल्कि इसके बजाय पूर्वजों के प्रमाण के बिना पड़ोसी देशों से गैर-मुसलमानों के लिए नागरिकता के लिए मदद करता है।