नीतीश के पास नहीं कोई अब दूसरा रास्ता

Update: 2017-07-28 15:17 GMT

भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर दिया गया इस्तीफा नीतीश की नई नौटंकी न बन जाए

धनंजय कुमार

चाहे हम जितनी भी दलील दे लें, लेकिन नीतीश कुमार जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उसे आदर्श राजनीति तो नहीं कह सकते. हालांकि यह भी सच है कि मौजूदा राजनीति जिस धुरी पर घूम रही है, उसमें आदर्श राजनीति संभव कहां है ?

देश की राजनीति आज दो पाटों के बीच पिस रही है, एक तरफ है सम्प्रदायवाद, तो दूसरी तरफ है भ्रष्टाचार. आप इस पाले में रहें या उस पाले में. आम आदमी के नजरिए से भी देखिए तो तय कर पाना मुश्किल है कि नेता किसे मानें, जिसे अपना बहुमूल्य वोट दें ?

हर किसी में कुछ न कुछ दाग है. यह समय की विडम्बना है.

आदर्श सिर्फ कागजों के लिए बचे हैं. जो जहां है, अपने मनमाफिक बिसात बिछाने में लगा है. नेताओं की बात छोड़िए, हम आप भी कहां कम हैं ! अपनी सुविधा और सहूलियत के हिसाब से अपने बचाव के लिए आदर्श और भ्रष्टाचार के उदाहरण चुन लेते हैं.

इस समय का संकट इसलिए भी और गहरा है कि बुद्धिजीवियों की जमात भी गलथेथरी में जुटी है और अपराधियों का पक्ष लेने को ही मजबूर है. बड़ी ही विभ्रम की स्थिति है. हम अपना पक्ष बचाने के लिए कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. अपने हिसाब से अच्छाई और बुराई चुन रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि हर पहलू दागदार है.
 
देश की जनता के साथ हर किसी ने धोखा किया है. और हर कोई स्वयं को बचाने और मजबूत करने का ही जुगाड़ ढूंढ रहा है. देश की चिंता और आम आदमी की परेशानियों से जुड़े होने की बात करना धोखा है.

सच यह है कि हर राजनीतिज्ञ अपनी स्थिति को बेहतर बनाने में जुटा है और जहां उसे बेहतर सेल्टर मिलता है, उस तरफ दौड़ लगा लेता है. यह अंधी दौड़ है. इस दौड़ में कोई पीछे नहीं रहना चाहता. नैतिकता और आदर्श बेमानी से शब्द भर रह गए हैं. और यह सिर्फ दूसरो को घेरने के लिए हैं.    
 
राजनीति में चालाकी जरूरी है, लेकिन वह सत्ता पाने तक सीमित हो, तब तो चल सकता है, लेकिन बात जब जनकल्याण की आती हो और नेताजी वहां भी चालाकी करने लगें तो मामला चिंताजनक है. लालू प्रसाद यादव की राजनीति पर कोई विमर्श करने का मतलब भी नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार जैसे नेता भी जब आम आदमी के साथ छल करने लगे, तो मामला विचारणीय हो जाता है.

बिहार की सत्ता में नीतीश कुमार का उदय ही इस शर्त पर हुआ था कि वह लालू-कांग्रेस किस्म की राजनीति और शासन से मुक्ति दिलाएंगे. लेकिन नीतीश कुमार ने क्या किया ? शुरुआत में बेशक उन्होंने उम्मीदें जगाईं कि बिहार की जनता की आकांक्षाओं पर वह खरे उतरेंगे, गुंडागर्दी और खस्ताहाल सड़कों से काफी हद तक मुक्ति दिलाई भी, लेकिन विकास के मोर्चे पर वह पूरी तरह नकारा साबित हुए.

शुरू के पांच वर्षों में ही नहीं, बाद के सात वर्षों में भी उन्होंने विकास के नाम पर सिर्फ लफ्फाजी की. बिहार कृषि प्रधान राज्य है, उन्होंने बार बार कृषि का रोडमैप बनाने की बात कही तो, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिससे बिहार में कृषि और किसानों की हालत बेहतर होती.

किसानों की स्थिति सुधारने के लिए जरूरी है कि बाजार में किसानों को स्टेक होल्डर बनाया जाय. और यह तबतक संभव नहीं है, जबतक फ़ूड प्रोसेसिंग प्रोडक्ट्स के निर्माण और विपणन में किसानों की सीधी भागेदारी न हो. नीतीश कुमार ने इस दिशा में प्रयास तक नहीं किया. शायद यहां तक उन्होंने सोचा भी नहीं और किसी विद्वान सलाहकार ने उन्हें सोचने के लिए कहा भी नहीं.

बिहार में दूसरा जो काम करना नितांत जरूरी था, वह था बिहार को शिक्षा हब के तौर पर विकसित करना. बिहार के बहुसंख्य लोग पहले खेती थे, आज पढ़ाई करते हैं. वह जानते हैं कि बिना पढ़े कुछ होनेवाला नहीं है, लेकिन नातीश कुमार ने क्या किया? बिहार की पूरी शिक्षा व्यवस्था आज चौपट है.

उच्च शिक्षा की बात तो छोड़िए, प्राइमरी शिक्षा के मामले में भी बिहार की हालत बाद से बदतर है. न टीचर हैं, न स्कूल और न ही सरकार की कोई व्यवस्था. टीचर के नाम पर अनपढ़ों की बहाली और व्यवस्था के नाम पर लूट है. शिक्षा व्यवस्था सिर्फ परीक्षा के वक्त कदाचार रोकने की कड़ी व्यवस्था कर देना भर नहीं है. नीतीश कुमार इस पायदान पर भी बुरी तरह फ्लॉप रहे.

अब भ्रष्टाचार की भी बात करें, जिसको लेकर लालू जी का साथ छोड़ा, तो वहां भी नीतीश कुमार का परफोर्मेंस काबिले तारीफ़ नहीं है. ये ठीक है कि भ्रष्टाचार करके उन्होंने लालू जी की तरह व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनाई, लेकिन सरकारी दफ्तरों में रिश्वतखोरी अधिकार की तरह फूल फल रही है. प्रखंड और अंचल ऑफिस भ्रष्टाचार के गढ़ हैं, अफसर, मुखिया और धूर्त आम आदमी तीनों का सिंडिकेट बना है. क्या नीतीश कुमार को यह पता नहीं है?!

बहरहाल, अब जब एक बार नीतीश कुमार ने बिहार हित की बात कर अपने कृत्य को जस्टीफाई करने की सरल कोशिश की है, बिहार हित को साकार करना होगा, वरना लालू प्रसाद यादव और उनमें कोई अन्तर नहीं.            

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