कोरोना के बाद अगली चुनौती, केरल को क्यों डरा रही है खाड़ी देशों से प्रवासियों की वापसी?

Update: 2020-05-08 10:10 GMT

बड़ा सवाल यह है कि खाड़ी देशों में काम कर रहे मलयालियों की बड़ी संख्या में वापसी के चलते केरल सरकार के खजाने में आने वाली विदेशी मुद्रा में कटौती की भरपाई कैसे हो पायेगी...

वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत का विश्लेषण

देश का केरल राज्य कोरोनावायरस से तो पार पा चुका है लेकिन अब जो समस्या इसके सामने मुंह बाये खड़ी है वो है लॉकडाउन के बाद खाड़ी देशों से लौटने वाले लाखों मलयाली के पुनर्वास की। वैश्विक लॉकडाउन के चलते इनमें से बहुतों की नौकरियाँ जा चुकी हैं। लिहाज़ा उनके द्वारा घर भेजे जानी वाली रकम का भी टोटा राज्य को सहना पडेगा और इसके खजाने में खाड़ी देशों से होने वाली अच्छी-खासी आमदनी का नुक्सान भी झेलना होगा।

केरल प्रवासी सर्वे और भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार खाड़ी के छह देशों - सऊदी अरब, एमिरात, क़तर, बहरीन, ओमान और कुवैत में रहने वाले एक करोड़ भारतीयों में करीब-करीब 20 से 25 लाख अकेले मलियाली ही हैं। यानी खाड़ी देशों में रहने वाले हर चार भारतीयों में से एक मलियाली है।

कोविड-19 महामारी की वजह से लागू किये गए लॉकडाउन के चलते बहुत सारे मलयाली खाड़ी देशों में फंसे पड़े हैं। इनमें से बहुत से ऐसे हैं जो घूमने गए थे और बहुत से ऐसे भी हैं जिनकी नौकरियां चली गयी हैं तो ऐसे लोगों की तादाद भी बहुत बड़ी है जो ग़ैर-क़ानूनी तरीके से रह कर अपना श्रम बेच कर रोज़ी-रोटी कमा रहे थे। ये सभी वापिस अपने राज्य केरल लौटना चाहते हैं।

अनुमान लगाया जा रहा है कि 2 से 3 लाख मलयाली खाड़ी से वापिस लौटने के लिए बेताब हैं। यही कारण है कि केरल के मुख्यमंत्री पेन्यारी विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कई बार बातचीत कर इन्हें चार्टर्ड फ़्लाइट से देश लाने की गुजारिश की।

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भारत सरकार ने विदेश में फंसे भारतीयों को बचाने या वापिस लाने का कार्यक्रम वन्दे भारत नाम से शुरू कर दिया है। कहा जा रहा है कि विदेश में फंसे भारतीयों को वापिस लाने का कुवैत युद्ध के बाद का यह सबसे बड़ा अभियान है। 7 मई की रात को केरल के दो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर खाड़ी देशों से मलियालियों को लेकर एयर इंडिया एक्सप्रेस की उड़ाने पहुंच भी गयीं। आबू धाबी से आई पहली उड़ान से 177 यात्री और 4 नवजात शिशु तथा दुबई से आई दूसरी उड़ान से 177 यात्री और पांच नवजात शिशु केरल पहुंचे। इन सभी को क्वारेंटीन में रख दिया गया है।

गौरतलब है कि 4 लाख से भी ज़्यादा मलयालियों ने केरल लौटने के लिए पंजीकरण सरकारी वेब-साईट नोर्का-रूट्स में करवाया था यह जानकारी देते हुए कि वे क्यों वापिस लौटना चाहते हैं। साथ ही इन लोगों ने अपना पंजीकरण खाड़ी देशों के भारतीय दूतावासों में भी करा लिया था।

लेकिन ये निश्चित नहीं है कि ये सभी लोग तत्काल लौट पाएंगे। सरकार की तरफ से जिन्हें प्राथमिकता दी गयी है वे हैं- गर्भवती महिलाएं, वरिष्ठ जन, ऐसे लोग जिन्हें तुरंत इलाज की ज़रुरत है, छात्र, ऐसे लोग जो घूमने गए थे लेकिन समय रहते लौट नहीं पाए, ऐसे लोग जिनकी नौकरियां चली गयी हैं और उनके रहने का कोई ठिकाना नहीं है। ऐसे लोगों की संख्या लगभग 1 लाख 70 हज़ार मानी जा रही है।

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दरअसल कच्चे तेल के दामों में भारी गिरावट से खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था को काफी धक्का लगा था। लॉकडाउन ने हालात अधिक गंभीर बना दिए। बहुत सी कंपनियों का धंधा प्रभावित हुआ तो उन्होंने मुलाजिमों की तनख्वाह में कटौती करना या फिर छंटनी करना शुरू कर दिया। इसका असर केरल से आये इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बर जैसे मज़दूरों पर भी पड़ा। इनमें से बहुत से बेरोज़गार हो चुके हैं। दूसरा, इन मज़दूरों को ना तो कोरोना टेस्टिंग की सुविधाएँ और ना ही चिकित्सा सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध थीं। कोरोना पॉज़िटिव पाये जाने के बावजूद कई भारतीयों को हस्पताल में दाखिल करने से मना कर दिया गया और उन्हें घर पर ही रह कर खुद को क्वारेंटीन करने की सलाह दी गयी। इसलिए इन लोगों में काफी असंतोष है और वे घर लौट जाना चाहते हैं।

अब सवाल ये है कि लॉकडाउन की वजह से पर्यटन और आईटी क्षेत्र के बर्बाद होने के चलते आर्थिक बदहाली के कगार पर पहुँच चुका केरल किस तरह खाड़ी देशों से वापिस आ रहे कामगारों का अपने राज्य में पुनर्वास कर पायेगा ? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि खाड़ी देशों में काम कर रहे मलयालियों की बड़ी संख्या में वापसी के चलते केरल सरकार के खजाने में आने वाली विदेशी मुद्रा में कटौती की भरपाई कैसे हो पायेगी ?

तिरुवंतपुरम में सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज़ में प्रोफ़ेसर और खाड़ी देशों की तरफ पलायन के बारे में जानकार एस इरुदया राजन कहते हैं-" यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि खाड़ी देश में रहने वाला एक मलयाली केरल में चार लोगों की मदद कर रहा होता है। इसलिए जब हम २० लाख की तादाद में श्रमशक्ति की बात करते हैं तो इसका मतलब है कि वे केरल में ८० लाख लोगों की मदद कर रहे होते हैं। इसका मतलब है कि पलायन में किसी तरह का भी बदलाव आने की वजह से राज्य की लगभग एक तिहाई आबादी सीधे-सीधे प्रभावित होगी।"

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गौरतलब है कि केरल की जीडीपी का ३६ फीसदी हिस्सा बाहर, खासकर खाड़ी देशों, से आयी विदेशी मुद्रा का होता है। राज्य के बैंकों द्वारा उपलब्ध कराये गए आंकड़ों के अनुसार खाड़ी के देशों में रहने वाले मलयाली हर साल राज्य में एक खरब से भी ज़्यादा रुपये भेजते हैं। यही कारण है कि राज्य की विकास दर हमेशा ज़्यादा रहती है। बाहर से आने वाले इसी पैसे से केरल का शहरीकरण हुआ है और चारों दिशा में विकास हुआ है। केरल अकेला ऐसा राज्य है जहां चार-चार अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं। उद्योग-धंधे तो केरल की जीडीपी का मात्र १० फीसदी ही हैं।

लेकिन प्रोफ़ेसर राजन का कहना है कि अभी साफ़ नहीं है कि खाड़ी देशों में कितने मलयालियों की नौकरी जाएगी और क्या मलयालियों द्वारा भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा का नुक्सान होगा या नहीं ? अभी तो हमारी सारी चिंता महामारी से लड़ाई तक ही सीमित है।

वे कहते हैं-"अभी तो हम बीमारी के बारे में चिंतित हैं। हम ज़िंदगी और मौत के बारे में बात कर रहे हैं। जब यह संकट समाप्त होगा तभी जीवनयापन की बात सामने आएगी। "

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