थाने गए दलित युवक की हिरासत में मौत, परिजनों ने कहा पुलिस ने की हत्या

Update: 2019-04-25 08:21 GMT

थाने में पूछताछ के दौरान मरने वाले दलित युवक के परिजनों का आरोप है कि पुलिस वालों ने संजू को बुरी तरह नृशंसता की हद तक पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई...

जनज्वार। मोदी सरकार दलितों के उत्थान और समानता लाने के दावे बारम्बार करती रहती है, मगर सच क्या है यह उनके साथ होने वाली उत्पीड़न, मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं से पता चल जाता है। देशभर में दलित उत्पीड़न की तमाम खबरें रोज अखबारों की सुर्खियों में होती हैं, मगर बावजूद इसके शासन—प्रशासन की तरफ से ऐसे कड़े नियम-कानून लागू नहीं किए जाते जिससे इन पर लगाम कसी जा सके।

समाज में तो दलित उत्पीड़ित होते ही रहते हैं, शासन-प्रशासन के हाथों भी उनका जमकर उत्पीड़न किया जाता है। कई घटनाओं में उनकी मौत तक हो जाती है। ऐसी ही एक घटना सामने आई है मध्य प्रदेश के इंदौर में, जहां पुलिस थाने में एक दलित युवक की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। ताज्जुब की बात यह है कि यह खबर मेनस्ट्रीम मीडिया से गाय​ब है।

नवभारत टाइम्स में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक इंदौर के गांधीनगर क्षेत्र में एक घर में चोरी हुई थी जिसमें कुछ गहने और नकदी चोरी की गई थी। इसी चोरी के शक में पुलिस दलित युवक संजू टिपाणिया को 23 अप्रैल को पूछताछ के लिए थाने लेकर आई, जहां उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई।

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परिजनों का आरोप है कि पुलिस वालों ने संजू को बुरी तरह नृशंसता की हद तक पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई। वहीं पुलिस अपनी सफाई में कह रही है कि पूछताछ के दौरान संजू को सांस लेने में दिक्कत हुई और वह अचानक अचेत होकर गिर गया। पुलिस की पिटाई से नहीं, अचेत होकर गिरने के बाद उसकी मौत हुई।

संजू की मौत के बाद आक्रोशित दलितों ने 24 अप्रैल को थाने का घेराव कर कहा कि पुलिसवालों ने संजू की हत्या की है, और उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाय। संजू के हत्यारे पुलिसवालों के खिलाफ दलितों ने एकजुट होकर तुरंत कार्रवाई करने की मांग की थी। जानकारी के मुताबिक संजू टिपाणिया के साथ उसकी मां को भी पुलिस पूछताछ के लिए थाने ले गई थी।

संजू के घरवालों और दलितों में इस घटना के बाद बढ़ते आक्रोश के देखते हुए थाना प्रभारी समेत पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है।

गौरतलब है कि 5 सालों के मोदीराज में दलितों के साथ मारपीट और लिंचिंग की घटनाओं की जैसे बाढ़ आ गई है। मोदी राज में ही यह ठीक-ठीक अनुमान भी लग पाया है कि अगड़ी जातियों के लोग दलितों और आदिवासियों को लेकर कितनी विरोधी मानसिकता रखते हैं।

शासन का रुख भी दलितों के प्रति बहुत उदार नहीं है। अगर होता तो यह न होता कि अपने बजट में गायों के संरक्षण के लिए मोदी सरकार जहां 700 करोड़ रुपए आवंटित करती, वहीं दलित और आदिवासी महिलाओं की सुरक्षा के लिए पीसीआर और अत्याचार निवारण अधिनियम पर अमल करने हेतु सिर्फ 147 करोड़ रुपए।

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