विदेशी कंपनियों को भी यह महसूस हो चुका है कि अगर भारत में कारोबार करना है तो अडानी समूह के साथ ज्वाइंट वेंचर करके आसानी से प्रवेश किया जा सकता है...
वरिष्ठ पत्रकार एस. राजू की टिप्पणी
स्वदेशी का वादा करके सत्ता हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी गाहे-बगाहे यह दावा करती है कि देश में देशी उद्योगों को अनुकूल माहौल दिया जा रहा है और उन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है। बल्कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने खूब प्रचार किया कि विदेशी कंपनियों की नकेल कसी जा रही है।
विदेशी कंपनियों की वजह से भारतीय कारोबारियों को प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा। इससे पिछले कार्यकाल में तो बकायदा 'मेक इन इंडिया' मुहिम तक चलाई गई, लेकिन यह भी जुमला साबित हुआ। बेशक कुछ भारतीय कंपनियों को फायदा हो रहा है, लेकिन ये कंपनियां सरकार की चहेती कंपनियां हैं, जिनके माध्यम से विदेशी कंपनियों की साझेदारी में अपना कारोबार चमका रही हैं।
ऐसे समय में जब देश में आर्थिक मंदी की वजह से उद्योग-धंधे चौपट हो रहे हैं, तब कुछ गिने-चुने उद्योग समूह खूब तरक्की कर रहे हैं। इनमें से एक है अडानी समूह। अडानी समूह ने दिसंबर 2019 में समाप्त तिमाही में चौगुनी तरक्की की है। पिछले दिनों अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) के दिसंबर 2019 को समाप्त तिमाही के नतीजों में कहा गया है कि कंपनी का शुद्ध मुनाफा चार गुना बढ़कर 382.98 करोड़ रुपये हुआ है।
एईएल ने सालभर पहले इसी तिमाही (अक्टूबर से दिसंबर 2019) में लगभग 80.09 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया था। इसी तरह अक्टूबर-दिसंबर 2019 की अवधि में कंपनी की कुल आय 11,075.32 करोड़ रुपये रही जो एक साल पहले इसी अवधि में 10,548.14 करोड़ रुपये रही थी। इस दौरान कंपनी का खर्च 10,635.16 करोड़ रुपये रहा, जबकि एक साल पहले यह 10,443.76 करोड़ रुपये रहा था।
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जब भी यह कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी सरकार केवल एक ही समूह को फायदा पहुंचा रही है तो कुछ लोग तर्क देते हैं कि कम से कम स्वदेशी कंपनी को तो फायदा पहुंचाया जा रहा है, लेकिन सच यह है कि अडानी के कंधों पर सवार होकर विदेशी कंपंनिया भारत में अपनी पैठ बना रही हैं। पिछले पांच सालों के दौरान अडानी समूह ने आधा दर्जन से अधिक विदेशी कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर किया है। इससे ऐसा लगता है कि विदेशी कंपनियों को भी यह महसूस हो चुका है कि अगर भारत में कारोबार करना है तो अडानी समूह के साथ ज्वाइंट वेंचर करके आसानी से प्रवेश किया जा सकता है, जिसे सरकार का इतना समर्थन प्राप्त है कि सरकार अपनी नीतियों तक में बदलाव कर सकती है।
हालांकि 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी थी तो उसके कुछ दिन बाद ही सरकार ने घोषणा की कि 2022 तक 1 लाख मेगावाट सोलर एनर्जी का उत्पादन किया जाएगा, जबकि यूपीए सरकार ने अपनी क्षमता को समझते हुए केवल 20 हजार मेगावाट का लक्ष्य रखा था, लेकिन मोदी सरकार इसे बढ़ा कर 5 गुणा कर दिया।
सरकार की इस जल्दबाजी की वजह से भारत के सोलर सेक्टर पर चीन का कब्जा हो गया। बहुत देर बाद सरकार को यह बात समझ में आई और तब जाकर चीन के आयात पर सरकार ने काफी हद तक पाबंदी लगा दी, लेकिन अब सरकार अडानी समूह के माध्यम से सोलर पावर का लक्ष्य हासिल करना चाह रही है। इसके लिए अडानी समूह को कई तरह की रियायतें भी दी जा रही है। जानकार बताते हैं कि इतना बड़े सेक्टर पर कब्जा करने के लिए बड़े निवेश की जरूरत है, इसलिए अडानी समूह को टोटल से ज्वाइंट वेंचर करना पड़ा। इस ज्वाइंट वेंचर के लिए टोटल ने 51 करोड़ डॉलर का निवेश करने का ऐलान किया है।
इसी कंपनी (टोटल) के साथ अडानी ने कुछ समय पहले पेट्रोल पम्प सेक्टर में उतरने के लिए ज्वाइंट वेंचर किया था। अडानी समूह अगले 10 साल में 1,500 पेट्रोल पंप खोलना चाहता है। दरअसल, टोटल दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी प्राइवेट एलएनजी कंपनी है। इसका कारोबार 100 साल पुराना है और दुनिया के कई देशों में है। इस जॉइंट वेंचर के तहत हाइवे और इंटरसिटी कनेक्शंस पर पेट्रोल पंप खोले जाएंगे।
भारत में यह क्षेत्र सालाना 4 पर्सेंट की रफ्तार से बढ़ रहा है। इन पंपों पर टोटल के ल्यूब्रिकेंट्स सहित सारे फ्यूल मिलेंगे। अब तक इस क्षेत्र में इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम के पंप हैं और मोदी सरकार के कई फैसलों की वजह से इन कंपनियों की हालत खस्ता हो रही है। ऐसे में, अचरज नहीं होना चाहिए कि अगले 10 साल में इन कंपनियों की वजह से अडानी के पेट्रोल पंप दिखाई दें।
मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में एक बड़ा काम यह किया था कि रक्षा क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोल दिया गया था, जबकि 2015 में ही अडानी समूह ने डिफेंस और एयरोस्पेस सेक्टर में एंट्री की थी। इसके बाद अडानी समूह ने रक्षा क्षेत्र में काम कर रही दुनिया की अलग-अलग कंपनियों से ज्वांइट वेंचर किया। दिसंबर 2018 में अडानी समूह तथा इज़राइल की कंपनी एल्बिट सिस्टम्स द्वारा संयुक्त रूप से भारत की पहली निजी मानव रहित विमान (यूएवी) निर्माण फैक्ट्री हैदराबाद में शुरू की गई। यह देश में पहला ऐसा कारखाना है, जहां निजी कम्पनियों द्वारा मानव रहित यान बनाए जाएंगे।
अडानी ने जब डिफेंस सेक्टर में एंट्री की तो अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड से समझौता किया। भारत की इस कंपनी के पास मजबूत ऑर्डर बुक था और इसके भारत को हथियारों की सप्लाई करने वाली रूस और इजरायल की बड़ी कंपनियों के साथ टाई-अप हैं। इसके बाद अडानी ने खुद भी विदेशी कंपनियों के साथ टाइअप करना शुरू कर दिया।
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अडानी समूह की फूड इंडस्ट्री पर भी बड़ी मजबूत पकड़ है। फॉर्च्यून के नाम से अडानी समूह के कई तरह के प्रोडक्ट बनाता है, लेकिन इस सेक्टर में भी अडानी ने विदेशी कंपनी का साथ लिया हुआ है। अडानी समूह फूड सेक्टर में अडानी विल्मर के नाम से काम करता है। विल्मर के मतलब है विल्मर इंटरनेशनल, जिसका मुख्यालय सिंगापुर में है और एशिया में इसका बड़ा बिजनेस है।
अडानी विल्मर में विल्मर इंटरनेशनल की भागीदारी 50:50 की है। यानी कि भारत के तेल बाजार से होने वाली कमाई में अडानी समूह को 50 फीसदी ही हिस्सा मिलेगा, शेष आधी कमाई विल्मर इंटरनेशनल के पास पहुंच जाएगी। हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून CAA का विरोध करने पर भारत सरकार ने मलेशिया से सस्ता पॉम ऑयल खरीदने पर पाबंदी लगा दी और इसका सीधा फायदा अडानी और विल्मर को होने वाला है।