विश्व बाज़ार में कच्चे तेल में भारी गिरावट सऊदी अरेबिया और रूस के बीच तेल के दामों को गिराने की लगी होड़ के चलते देखी जा रही है...
राजनीतिक विश्लेषक पीयूष पंत की टिप्पणी
जनज्वार। लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाकई भाग्यशाली हैं। एक बार फिर विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम गिरने लगे हैं। अकेले 9 मार्च को ही विश्व बाज़ार में कच्चे तेल के दाम 31 फीसदी गिर गए। ये 1999 के बाद एक दिन में हुयी सबसे बड़ी गिरावट थी। दिसंबर अंत में 65 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर ब्रेंट ऑयल के दाम आज 35 डॉलर प्रति बैरल हो गए हैं। हालाँकि 2016 के शुरुआत में भी कच्चे तेल के दाम इस स्तर गिर गए थे। आज जब भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस के अलावा कमज़ोर मांग के चलते मंदी के दौर में पहुँच चुकी है, कच्चे तेल के दामों में भारी गिरावट मोदी सरकार के लिए संकटमोचक बन कर आई है।
चूंकि भारत तेल की अपनी खपत का 83 फीसद आयात करता हैं और 2018-2019 में इसे आयात पर 87 बिलियन डॉलर खर्च करना पड़ा था, तेल के दामों में भारी गिरावट निश्चित रूप से भारत सरकार के खजाने के लिए फायदेमंद रहेगी। ना केवल ये रुपये को मजबूत बनाएगी बल्कि भारत के बढ़ते चालू खाते घाटे को भी कम करेगी। 20 डॉलर प्रति बैरल गिरावट से ही भारत को 30 बिलियन डॉलर सालाना बचत हो जाती है।
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गौरतलब है कि विश्व बाज़ार में कच्चे तेल में भारी गिरावट सऊदी अरेबिया और रूस के बीच तेल के दामों को गिराने की लगी होड़ के चलते देखी जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के गिरते दामों के चलते भारत की तेल मार्केटिंग कंपनियों ने भी 10 मार्च को पेट्रोल और डीज़ल के दाम में 2 रुपये से ज़्यादा की कटौती कर डाली।
लेकिन ये कमी उस हिसाब से बहुत कम है जिस हिसाब से कच्चे तेल के दाम में गिरावट आई है। इस हिसाब से पेट्रोल और डीज़ल के दामों में 10 से 12 रुपये की कटौती होनी चाहिए थी। दरअसल हमारे देश में सरकार उपभोक्ता को तेल के दाम में गिरावट का बहुत कम फायदा ही पहुंचा पाती है।
2016 में भी जब विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम लगभग 50 डॉलर प्रति बैरल पहुँच गए थे तब भी मोदी सरकार ने फायदा उपभोक्ता को नहीं पहुंचाया था। कहा गया था कि बचत संकट के समय काम आएगी। लेकिन गहराते आर्थिक संकट ने वो बचत भी हजम कर ली। अब जब एक बार फिर तेल के दामों में गिरावट आई है तो इसका फायदा क्या उपभोक्ताओं को मिल पायेगा?
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साथ ही उपभोक्ताओं को तेल के दामों में गिरावट का फायदा इसलिए भी नहीं मिल पाता क्योंकि तेल मार्केटिंग कम्पनियां 15 दिनों के औसत के आधार पर पेट्रोल और डीज़ल के अपने रेट में बदलाव लाती हैं। इस हिसाब से अगर 9 मार्च जैसी गिरावट लगातार 10-12 दिनों बनी रहती है तो दो हफ्ते बाद उपभोक्ताओं को पेट्रोल-डीज़ल सस्ता मिल सकता है, बशर्ते केंद्र और राज्य सरकारें अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा कर इस राहत को पलट ना दें।