स्वास्थ्यकर्मियों की न सुरक्षा न इज्जत, सेलरी के भी लाले, फिर पुष्पवर्षा का दिखावा क्यों मोदी जी

Update: 2020-05-02 14:32 GMT

क्या ये पुष्पवर्षा उन दर्जनों डॉक्टरों और नर्सों को पुनर्जीवन दे पाएगा जो पीपीई किट के अभाव में संक्रमित हो गए और अपनी जान गंवा बैठे, भूख से बिलबिलाते हुए बच्चों को ब्रेड बटर के हसीन सपने कब तक दिखाएंगी सरकारें, कब तक मौत के मातम पर जलसे आयोजित होते रहेंगे...

संजयदीप कुशवाहा की टिप्पणी

जनज्वार। लगभग 40 दिनों से कोरोना की भयावहता के बीच देश लॉकडाउन है। इस बीच 12 से भी ज्यादा लोगों की कोरोना के चलते मौत हो गयी है और कई की हालत गंभीर बनी हुई है। मरने वालों में कई डॉक्टर भी शामिल हैं, जो पीपीई किट के अभाव में अपनी जान कोरोना मरीजों का इलाज करते हुए गंवा बैठे।

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ब 40 दिनों से शांत भारत की फिजां में वायुसेना के जहाजों की गड़गड़ाहट गूजेंगी, श्रीनगर से तिरुअनंतपुरम तक और डिब्रुगढ़ से कच्छ तक वायु सेना के जहाज फ्लाई पास्ट करेंगे। उड़नखटोलों द्वारा चिकित्सालयों पर फूलों की बारिश की जाएगी, सेना बहुत सारे हॉस्पिटलों के सामने माउंटेन बैंड बजाएगी और इस तरह से कार्यक्रम होगा कोरोना वारियर्स के प्रति आभार जताने का।

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कुछ ऐसी ही तैयारी है भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की, जिसे वो सफलीभूत कर ही लेंगे। सवाल उठता है क्या ये सही समय है? क्या इससे उन कोरोना वारियर्स की निष्ठा और समर्पण की भावना के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाएगा? क्या इन फूलों की बारिश पर किया गया व्यय भारत के उन करोड़ों गरीबों, मजदूरों, किसानों, बेसहारों और दबे-कुचले लोगों के घावों पर मरहम लगाने में सक्षम हो पाएगा?

क्या इन फूलों की सुगंध उन घरों को महका पाएगी, जिनके घरों के चूल्हे नहीं जल पा रहे हैं। क्या ये हवाई यात्रा उस विनोद तिवारी को पुनर्जीवित कर पायेगी, जो दिल्ली से अपने घर की पदयात्रा में असमय ही काल कवलित हो गया? और क्या ये सम्मान उन अनेकानेक डॉक्टरों और नर्सों को पुनर्जीवन दे पाएगा जो पीपीई किट के अभाव में संक्रमित हो गए और कर्तव्य पथ पर जीवन को अलविदा कह गए? भूख से बिलबिलाते हुए बच्चों को ब्रेड बटर के हसीन सपने कब तक दिखाएंगी सरकारें? कब तक मौत के मातम पर जलसे आयोजित होते रहेंगे? आखिर कब तक?

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कोरोना संकट ने हमारी अर्थव्यवस्था की पोल खोल के रख दी है। स्वास्थ्य के मुद्दे पर हमारी लाचारगी किसी से छिपी नहीं है। इस पूरे दौर में जबकि हमें मास्क और सेनेटाइजर जैसी चीजों के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ा है। टेस्टिंग किट और पीपीई किट के लिए दूसरे देशों द्वारा किस प्रकार से हमारा भयादोहन किया गया है सभी जानते हैं।

खबारों में बगैर सुरक्षा उपकरणों के कोरोना से लड़ते हुए हमारे डॉक्टरों और नर्सों की तस्वीरें छपती रही हैं, देश का एक बड़ा प्रान्त स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में अपने ही जिगर के टुकड़ों को अपने यहां वापस ला पाने में अपनी असमर्थता जता रहा है। ऐसे में क्या हासिल होगा पुष्पवर्षा जैसे सांकेतिक कार्यक्रमों से। क्या हमें अभी भी अपनी प्राथमिकताएं तय नहीं कर लेनी चाहिए।

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दुनिया गवाह है पुष्पवर्षा और आभार ज्ञापन जैसे कार्यक्रम विजयोपरांत सम्पन्न होते रहे हैं, युद्धकाल में कभी सैनिकों पर पुष्प वर्षा करने का कोई उदाहरण नहीं मिलता। क्या हमने कोरोना से जंग जीत ली है, क्या कोरोना से होने वाली मौतों का सिलसिला अब थम गया है? क्या हम यह कहने की हालत में हैं कि हम आवश्यकता से अधिक कोरोना जांच कर पा रहे हैं? क्या अब हमें कोरोना से निश्चिंत हो जाना चाहिए और क्या अब हममें विजयी भाव आना चाहिए।

म जिन कोरोना वारियर्स के प्रति सम्मान के लिए आयोजित मंचन पर पेट्रोल और पुष्प को धुएं में उड़ाना चाहते हैं, क्या इससे उनके प्रति वास्तविक सम्मान प्रदर्शित होता है। क्या इस प्रकार के कार्यक्रमों से हम डॉक्टरों और नर्सों के मात्र व्यावसायिक प्रतिबद्धता को अलंकृत नहीं कर रहे हैं। क्या हमारा ऐसा किया जाना मानवता के प्रति उनके समर्पण की भावना का परिहास नही करता है। क्या ऐसी कोई भी पुष्पवर्षा उनके पीपीई किट की जरूरत को पूरा कर सकती है।

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क तरफ अर्थव्यवस्था की कमजोरी की आड़ में कर्मचारियों-अधिकारियों और सभी प्रकार के वेतनभोगियों के वेतन में भारी कमी की जा रही है, न जाने कितने सालों तक इसी के नाम पर नौकरियों में भर्तियां रोक दी जाएंगी, कोरोना जैसी आपत्ति के समय में भी आवश्यक जांच की प्रक्रिया सरकार निःशुल्क नहीं कर पाती है, ऐसे समय में ऐसे बेकार के उत्सवों का मंचन कुछ चंद सिरफिरों के लिए घोटाले या सैर का माध्यम हो सकता है किसी के सम्मान का पर्याय नहीं।

भारतीय संस्कृति इस बात की गवाही देती है कि चिकित्सकीय प्रक्रिया में लगे हुए लोग खुद को मानव धर्म का सेवार्थी मानते हैं, दुनिया का कोई भी धन, सम्मान, पद या प्रतिष्ठा उनके किए गए कर्म के सामने फीकी होती है। इस पेशे में लगे हुए लोग तो शत्रु और मित्र, अपना या पराया या जय अथवा पराजय का भी कभी ध्यान नही रखते, कुछ पाने की उनकी कोई प्रत्याशा नहीं होती अगर होती है तो बस मानवता की रक्षा की अभिलाषा।

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ये लोग सृजन और संहार के बीच खड़े होते हैं, जीवन और मृत्य के बीच दीवार बनकर खड़े रहते हैं। यमराज को पराजित कर जीवन देने का इनका लक्ष्य होता है। इतनी बड़ी सेवा के बदले शासकीय धन के बंदरबांट के लिए इस प्रकार के उत्सव कभी भी आयोजित नहीं होने चाहिए।

कोरोना काल में भी ये वारियर्स कोरोना संकट में देवदूतों की तरह हमारे जीवन को संरक्षा दे रहे हैं, देश के राजनेताओं और प्रशासको! कोरोना वारियर्स की सेवाभावना और समर्पण को अपने रक्तरंजित चश्मे से मत देखो, तुम्हारे हाथ इतने पवित्र नहीं कि उनसे निकले हुए पुष्प इनको सम्मानित कर सकें। मितव्ययता के इस कालखंड में शासकीय धन पर हाथ साफ करने के बहाने मत ढूंढो। ये वारियर्स तुम्हारे किसी सम्मान के तलबगार नहीं, इन्हें सम्पूर्ण मानवता ने कलयुग के भगवान की संज्ञा पहले ही दे दी है।

(संजयदीप कुशवाहा राष्ट्रीय समानता दल के प्रदेश अध्यक्ष हैं।)

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