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कोरोना के इस घातक दौर में इस खतरनाक दवा को क्यों बताया जा रहा रामबाण, जिसका नहीं कोई वैज्ञानिक आधार

Prema Negi
25 April 2020 10:17 AM IST
कोरोना के इस घातक दौर में इस खतरनाक दवा को क्यों बताया जा रहा रामबाण, जिसका नहीं कोई वैज्ञानिक आधार
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उठने लगे हैं सवाल कि दरियादिली में कहीं भारत दुनिया में मौत का सामान तो नहीं भेज रहा, क्योंकि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से कोरोना पॉजिटिव कई मरीजों के मरने की दुनियाभर में हो चुकी है पुष्टि...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। दुनिया में आज के दौर के शासक निरंकुश हैं, दक्षिणपंथी हैं, कट्टरवादी हैं, छद्म-राष्ट्रवादी हैं, जनता से दूर हैं, और सबसे बड़े बेवकूफ भी हैं – इसका उदाहरण अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से अच्छा मिलाना कठिन है। दुनिया का इतिहाल अगर आगे लिखा जाएगा तो उसमें आज के दौर के शासकों की बेवकूफियों पर जरूर एक अध्याय होगा।

भारत के प्रधानमंत्री तो केवल प्राचीन ग्रंथों में विज्ञान खोजते हैं और बादलों में रडार को विफल करते हैं, डोनाल्ड ट्रम्प तो रोज कोविड 19 की दवा खोज लाते हैं। पहले मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, फिर एंटी-वायरल दवा रेम्देसेविर, फिर पराबैगनी किरणे और अब तो डिसइन्फेक्टैंट पीने की सलाह भी देने लगे हैं। अब तो अमेरिका के बड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी कहने लगे हैं कि ट्रम्प अपनी प्रेस ब्रीफिंग से जनता के स्वास्थ्य से सक्रिय खिलवाड़ करने लगे हैं।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोविड 19 के मरीजों पर किये गए एक बड़े प्रयोग में रेम्देसेविर अप्रभावी साबित हो गई है। इसे एक अमेरिकी कंपनी ने बनाया था और यह कुछ वायरस को मारने में सक्षम है। पर एबोला वायरस के संक्रमण के दौर में भी यह दवा अफ्रीका में बेअसर थी। कोविड 19 के 237 मरीजों के साथ किया गए प्रयोगों में 158 रोगियों को यह दवा दी गई और शेष 79 का उपचार बिना इस दवा के किया गया। जिन्हें रेम्देसेविर दी गयी थी, उसमें 14 प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु हो गई जबकि जिन्हें यह दवा नहीं दी गई थी उसमें मृत्य दर 13 प्रतिशत ही रही। रेम्देसेविर लेने वाले मरीजों में इस दवा के कुछ गंभीर दुष्परिणाम भी देखे गए।

कुछ समय पहले तक अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प के अनुसार मलेरिया की दवाएं ही कोविड 19 का एकमात्र इलाज थीं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मना करने के बाद भी भारत को धमका कर उन्होंने ये दवाएं हासिल कीं। अब तक अमेरिका में कुछ मौतें केवल मलेरिया की दवाओं से उपचार के कारण दर्ज की गयी हैं। ट्रम्प की धमकी के बाद भारत सरकार ने आनन-फानन में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की टैबलेट बड़ी संख्या में अमेरिका भेज दीं।

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सके बाद ब्राज़ील समेत लगभग 55 देशों में भारत सरकार मलेरिया की यह दवा भेज चुकी है, पर सवाल यह है की कोविड 19 के इस घातक दौर में एक ऐसी दवा दुनियाभर में क्यों भेज रही है, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और फिर यदि इससे मौतें होतीं हैं तो क्या हमारी सरकार इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार है?

बसे पहले फ्रांस के डोक्टरों ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का परीक्षण कोविड 19 के मरीजों पर किया था। इसमें वैज्ञानिकों के अनुसार इससे फायदा नजर आया था, पर बाद में जब प्रयोग का विस्तृत विश्लेषण किया गया तब पता चला कि इस प्रयोग में बहुत सारी गलतियां की गयीं थीं, और इसे प्रयोग और निष्कर्ष को दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने सिरे से खारिज कर दिया।

पर, डोनाल्ड ट्रम्प को कोविड 19 से लड़ने का एक यही तरीका समझ आया। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लगातार विरोध के बाद भी ट्रम्प इसे रामबाण बताते रहे। अमेरिका में एनबीसी न्यूज़ के अनुसार न्यूयॉर्क में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन देने के बाद एक महिला की मृत्यु हो गई। अमेरिका में कोविड 19 से ग्रस्त 368 बुजुर्गों पर किये गए एक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन लेने वाले मरीजों में मृत्यु दर अधिक रहती है। ब्राज़ील में 81 मरीजों पर किये गए अध्ययन के भी यही नतीजे मिले।

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चीन में 150 मरीजों पर किये गए अध्ययन का नतीजा था, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन देने के बाद मरीजों की हालत में सुधार के कोई साक्ष्य नहीं हैं। न्यूयॉर्क स्थित मेयो क्लिनिक के कार्डियोलोजिस्ट माइकल एकरमैंन के अनुसार क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के प्रभाव से कुछ समय तक दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है, इसे मेडिकल की शब्दावली में अर्रीथीमा कहा जाता है।

कोविड 19 से जूझते मरीज की सामान्य अवस्था में भी दिल की धड़कन असामान्य रहती है, ऐसे में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के असर से उसकी धड़कन भी रुक सकती है। अब तक किसी भी बड़े पैमाने के प्रयोग में कोविड 19 के मरीजों को किसी भी फायदे की खबर नहीं आयी है, अलबत्ता इससे नुकसान तो बहुत देखे गए।

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से जुड़ी दूसरी चिंता भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों को है। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को अक्सर एंटीबायोटिक अज़िथ्रोमाइसिन के साथ दिया जा रहा है और इसके बेवजह उपयोग से एंटीबायोटिक प्रतिरोधक बैक्टीरिया उत्पन्न होंगे। इससे दूसरी गंभीर समस्याएं पैदा होंगी। इन सबके बीच सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है, भारत कहीं दरियादिली में दुनिया में मौत का सामान तो नहीं भेज रहा है?

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