पर्यटको हमारे नैनीताल को बख्श दो, हमारा शहर बर्बाद हो जायेगा

Update: 2019-06-13 04:57 GMT

पर्यावरण और प्रकृति से भी एक-एक पाई चूस लेने की फिराक में लगी रहती है सरकार, अब हालत यह हो गई है कि पहाड़ी राज्यों के मनोरम शहरों गंदगी, भीड़ और गाड़ियों की रेलमपेल लगी हुई है, स्थानीय नागरिक नारकीय हालत में जी रहे हैं...

वरिष्ठ पत्रकार चंद्रशेखर जोशी की तल्ख टिप्पणी

सरोवर नगरी नैनीताल की सड़कें पेशाब से सन चुकी हैं। पैदल रास्तों पर नाक दबा कर चलना भी संभव न रहा। बारिश में सारी गंदगी झील में समा जाएगी, इसी पानी को शहर के लोग पीएंगे। पार्किंग फुल है, वाहन एक किलोमीटर की दूरी आधे घंटे में तय कर रहे हैं। आसपास के जंगल शराब, बियर और पानी की बोतलों से पटे हैं।

यहां पॉलीथीन कचरा इतना कि बरसाती गधेरों से बहना संभव नहीं। अभद्र लड़के-लड़कियां बात-बात पर ऐसी गाली बकते हैं कि सभ्य व्यक्ति परिवार के साथ सड़कों पर नहीं चल सकता। इनका पहनावा देखा नहीं जाता, हरकतें देख शर्म आती है।

...ये कहां से आए और किसलिए। इन्हें संस्कृति, सभ्यता की समझ नहीं। व्यापारियों ने खूबसूरत इलाके आबारगी और मौज-मस्ती के अड्डे बना दिए हैं। सरकार का जोर पर्यटन को बढ़ावा देने पर है, शहर में कोई सुविधा नहीं है। शुलभ शौचालयों में हर समय भीड़ रहती। आवारा लड़के जहां दीवार दिखे, वहीं खड़े हो जाते हैं। रात में तो इन्हें सारी हरकतें खुले में करने का शौक शुमार हो जाता है। उजाला होने पर रास्तों किनारे नजर गई तो पेट का खाना हलक पर आता है।

मैदानी इलाकों में जरा ताप बढ़ा तो हजारों लोग पहाड़ का मौसम खराब करने पहुंच जाते हैं। होटल व्यवसायी मौज-मस्ती की हर चीज उपलब्ध कराते हैं। यहां सारे अवैध काम चोरी-छिपे सुलभ रहते हैं, बाकी चीजें महंगे दामों पर खुलेआम बिकती हैं। पुलिस इनको संरक्षण देती है। यहां के रहवासी किसी से कुछ कह दें तो मेहमानों के साथ अभद्रता का जुर्म भुगतना होता है। ऐसे लोगों का सार्वजनिक स्थलों पर जाना बैन होना चाहिए।

भीड़ से पटी सरोवर नगरी का एक दृश्य यह भी

प्रकृति ने पर्वतीय समाज को कई मायनों में भिन्न बनाया है। यहां बारहों महीने लोग पूरे कपड़े पहना करते हैं। हाफ कमीज भी अटपटी लगती है। बोलचाल में विनम्र होते हैं, झगड़ा हो तब भी जुबान से गंदी गालियां नहीं निकलतीं। सभी के पक्के मकान होते हैं। घर, रास्ते और जंगल साफ रखते हैं। प्रकृति से बेहद प्रेम करते हैं। कहीं भी मकान बनाएं एक-दो पेड़ अवश्य लगाते हैं।

सुंदर स्थल देखने हों तो सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करें। मनोरम रास्ते धीरे-धीरे पूरा करें। मूल निवासियों के जीवन में खलल न डालें। जंगलों में ऐसी वस्तुएं न छोड़ें कि उनमुक्त जंगली जानवरों की जान पर बन आए। इस ताल के किनारे कुछ नहीं है। पहाड़ घूमना हो तो वर्षभर घूमें। रोज नई, सुंदर, मनोरम जगहें दिखेंगी। मन प्रसन्न, चित शांत होगा। बेहूदी हरकतों के लिए यहां कोई स्थान नहीं है।

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