17 आदिवासियों के नरसंहार के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पर मुकदमा दर्ज कराने पर अड़े हिमांशु कुमार

Update: 2019-12-06 12:06 GMT

कमला काका और गांव के 100 से ज्यादा आदिवासी बासागुड़ा थाने में एफआईआर कराने आए थे जिसके बाद एफआईआर में पुलिस अधिकारियों के अलावा तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह का नाम शामिल होने के कारण पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से कर दिया था मना ...

जनज्वार, छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा गांव में 28 जून 2012 की रात सुरक्षाबलों ने 17 आदिवासी ग्रामीणों को माओवादी बताकर गोलियों से भून डाला था। इस दौरान गांववालों की ओर से किसी प्रकार की गोलीबारी नहीं की गई थी। ग्रामीणों के मुताबिक मारे गए लोग नक्सली नहीं थे, वे अपना पारंपरिक त्योहार बीज पंडुम मना रहे थे। मारे गए लोग नक्सली ही थे इस बात के सबूत सुरक्षाबल नहीं दे सके।

न मौतों को लेकर तत्कालीन राज्य सरकार ने एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था। इस एक सदस्यीय जांच आयोग के अध्यक्ष जस्टिस विजय कुमार अग्रवाल बनाए गए। करीब सात साल की सुनवाई के बाद 17 अक्टूबर को यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सौंपी गई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक मारे गए लोग नक्सली नहीं, बेकसूर ग्रामीण आदिवासी थे।

मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार पुलिस के खिलाफ आदिवासियों के साथ आंदोलन में बैठ गए हैं। आंदोलन में बैठे जाने के कारण पर हिमांशु कुमार ने जनज्वार को बताया कि 'छत्तीसगढ़ के सारकेगुड़ा में 17 आदिवासियों की पुलिस ने हत्या कर दी थी मामले को लेकर एक हफ्ते पहले जांच आयोग की रिपोर्ट आई है, जिसमें बताया गया है कि पुलिस ने निर्दोष आदिवासियों की हत्या कर दी थी। जिसके बाद आज मैं, सोनी सोरी, कमला काका और गांव के 100 से ज्यादा आदिवासी बासागुड़ा थाने में एफआईआर कराने आए थे। जिसके बाद एफआईआर में पुलिस अधिकारियों के अलावा तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह का नाम शामिल होने के कारण पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया था। जिस कारण आज से मैने बासागुंडा थाने में आदिवासियों के साथ अनशन शुरू कर दिया है।'

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हिमांशु कुमार आगे कहते हैं, 'भाजपा सरकार ने सारकेगुड़ा को पूरी तरह से उजाड़ दिया था, जैसे-तैसे हमने इस गांव को बसाया, लेकिन जल्द ही इस गांव के 17 बेकसूर आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया। अब जबकि न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सामने आ गई है, तब साफ-साफ दिख रहा है कि इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, तत्कालीन खुफिया चीफ मुकेश गुप्ता, बस्तर के आईजी टीजे लांगकुमेर, बीजापुर के पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल सहित अन्य कमांडिंग अफसर संलिप्त थे।

साथ ही हिमांशु कुमार ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, खुफिया चीफ मुकेश गुप्ता सहित अन्य सभी जिम्मेदार लोगों पर एफआईआर दर्ज होनी ही चाहिए। अगर ग्रामीण चाहेंगे कि सभी दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो तो वे ग्रामीणों के साथ प्राथमिकी दर्ज करवाने थाने अवश्य जाएंगे।

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पूरे देश में हलचल मचा देने वाली यह घटना तब हुई थीं तब सत्ता में डॉक्टर रमन सिंह की सरकार काबिज थीं, लेकिन तब नक्सल मामलों की पूरी कमान स्पेशल इंटेलिजेंस ब्यूरो मुकेश गुप्ता के हाथ में थी। इसके अलावा बस्तर आईजी टीजे लांग कुमेर और बीजापुर एसपी प्रशांत अग्रवाल को भी नक्सल मामलों को एक्सपर्ट माना जाता था।

धर न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट के आने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता, आईजी टीजे लांग कुमेर, प्रशांत अग्रवाल और घटना के दिन सुरक्षाबलों का नेतृत्व कर रहे डीआईजी एस इंलगो, डिप्टी कमांडर मनीष बरमोला निर्दोष आदिवासियों की मौत के लिए जिम्मेदार नहीं है ? अगर है तो क्या इन अफसरों पर कोई सरकार कार्रवाई सुनिश्चित कर पाएगी।

 

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