नया बजट बढ़ायेगा अडानी-अंबानियों की संख्या, गरीबी और भुखमरी भी पहुंचेगी चरम पर
मोदी सरकार के इस बजट में पूंजीपतियों के दोनों हाथों में लड्डू हैं, एक हाथ से वे कम टैक्स चुकाकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं, उन्हें अब काला धन एकत्र करने व टैक्स चोरी करने पर जेल जाने का भय भी नहीं रहा है, वहीं दूसरे हाथ से इसी जनता के पैसे से वे सार्वजनिक सैक्टर की सम्पत्तियों को औने-पौने दामों में अपनी जेबों में डाल रहे हैं...
मुनीष कुमार, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 1 फरवरी, 2020 को जो बजट पेश किया है उसमें उन्होंने देश के पूंजीपंतियों व साम्राज्यवादियों को एक बार फिर देश की धन-सम्पदा को लूटने की खुली दे दी है। अपने बजट भाषण में पिछले वर्षों में कारपोरेट कर की दरों में की गयी कटौती व वर्तमान बजट में दी गयी छूटों को जायज बताते हुए उन्होंने कालीदास द्वारा रचित दोहे का उल्लेख करते हुए कहा कि सूर्य जल की नन्हीं बूंदों से वाष्प लेता है। यही राजा भी करता है। बदले में ये प्रचुर मात्रा में लौटाते हैं। वे लोगों के कल्याण के लिए संग्रह करते हैं।
कालीदास के दोहे को सुनाकर वित्तमंत्री जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहीं थीं कि पूंजीपति वर्ग को दी गयी टैक्स छूटों व देश की सम्पत्तियों की लूट से जो धन अम्बानी, अडानी जैसों पूंजीपतियों के पास एकत्र हो रहा है, उससे देश की जनता का कल्याण होगा।
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प्रस्तुत बजट में वित्तमंत्री ने सरकारी सम्पत्तियों को बेचकर (विनिवेश द्वारा) 2.10 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए आई.डी.बी.आई. बैंक व राष्ट्रीय बीमा निगम (एल.आई.सी) में जो सरकार के शेयर है, सरकार द्वारा बेच दिये जाएंगे। एयर इंडिया, रेलवे को भी नीलाम किया जाएगा।
वित्तमंत्री ने घोषणा की है कि देश की 150 रेलगाड़ियों को चलाने के लिए पूंजीपतियों को साझेदार बनाने की कार्यवाही शुरू कर दी गयी है। सरकार 4 रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास का कार्य भी निजी क्षेत्र को देने जा रही है। मेक इन इंडिया का ढिंढोरा पिटने वाली सरकार बंगलुरु में 18600 करोड़ बनने वाली सब अर्बन ट्रांसपोर्ट परियोजना के लिए 60 प्रतिशत विदेशी सहायता प्राप्त करेगी।
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देश के सार्वजनिक क्षेत्र की सम्पत्तियों को बेचने का दौर नया नहीं है। ये 1991 के बाद नई आर्थिक नीति के लागू किए जाने के बाद से ही जारी है। यही कारण है कि इस सवाल पर कांग्रेस व अन्य दलों की मोदी सरकार को मूक सहमति है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में विनिवेश के द्वारा सरकार 65 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक की सरकारी सम्पत्तियां नीलाम कर चुकी है। इससे पूर्व वर्ष 2018-19 में भी भाजपा सरकार 94 हजार करोड़ रुपयों की देश की बहुमूल्य सम्पत्तियां पूंजीपति वर्ग को सौंप चुकी है।
सरकार अपनी पीठ ठोंक कर कह रही है कि हमारे देश में कॉरपोरेट (निगम) कर की दर दुनिया में सबसे कम है। पिछले वर्षों में सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के नाम पर निगम कर की दर को घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया था। जो कि पिछले दशक में लगभग 38 प्रतिशत थी। निगम कर में की गयी कटौती का असर देश के राजस्व संग्रह पर भी पड़ा है।
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2018-19 वित्तीय वर्ष में निगम कर से देश में कुल आय 663572 करोड़ रुपये थी, जिसे 2019-20 के बजट में बढ़ाकर 766000 करोड़ रु प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, परन्तु सरकार के खजाने में निगम कर जमा हुआ मात्र 610500 करोड़ रुपये। यानी कि पहले वर्ष के मुकाबले 53072 करोड़ रुपये कम और निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले 155000 करोड़ रुपए कम।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण के पैरा सं. 82 में कहा है कि विधानों में कार्यों के लिए आपराधिक जिम्मेदारी के बारे बहस चल रही है, जो सिविल प्रकृति का है। अतः कम्पनी अधिनियम में संशोधन करने का प्रस्ताव किया जाता है।
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पिछले दिनों वित्तमंत्री ने चेन्नई में देश को 50 खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के नाम पर कहा था कि मनी लॉड्रिंग कानून व आयकर कानून में संशोधन कर इससे सम्बन्धित अपराधों को अपराधों की श्रेणी से बाहर रखा जाएगा। अब इस कानूनी बदलाव की घोषणा भी कर दी गयी है। इस बदलाव के बाद आयकर चोरी करने वाले व गैरकानूनी श्रोतों से धन एकत्र करने वाले जेल जाने से बच जाएंगे। पकड़े जाने पर उन्हें मात्र जुर्माना ही भरना पड़ेगा।
सरकार के इन कदमों से पूंजीपतियों के दोनों हाथों में लड्डू हैं। एक हाथ से वे कम टैक्स चुकाकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं, उन्हें अब काला धन एकत्र करने व टैक्स चोरी करने पर जेल जाने का भय भी नहीं रहा है। वहीं दूसरे हाथ से इसी जनता के पैसे से वे सार्वजनिक सैक्टर की सम्पत्तियों को औने-पौने दामों में अपनी जेबों में डाल रहे हैं।
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मोदी सरकार अगले वित्तीय वर्ष में 10 प्रतिशत की विकास दर प्राप्त करने का दावा कर रही है। इस वर्ष विकास दर 5 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान है। सरकार का यह अनुमान भी सही नहीं है। जो संकेत मिल रहे हैं वे अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर शून्य अथवा इसके आसपास होने की ओर इशारा कर रहे हैं।
सरकार ने वर्ष 2019-20 के लिए कुल कर संग्रह 2461195 करोड़ रुपए अनुमानित किया था। प्रस्तुत बजट में ये अनुमान संशोधित करके 2161423 करोड़ रुपए होना बताया गया है। यानि कि 299772 करोड़ रुपये सरकार को कर राजस्व के कम प्राप्त होंगे।
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2018-19 में केन्द्र सरकार ने प्राप्त टैक्सों व राजस्व में से राज्यों को 761454 करोड़ रुपए का हिस्सा दिया था, जिसे वर्तमान वर्ष 2019-20 के लिए बढ़ाकर 809133 करोड़ रुपए देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। परन्तु राज्यों को केन्द्र द्वारा किए जाने वाले भुगतान का संशोधित अनुमान जो बजट में प्रस्तुत किया गया है, वह काफी चौंकाने वाला है।
वर्तमान वित्तीय वर्ष में केन्द्र सरकार राज्यों को उनके हिस्से के रूप में मात्र 656046 करोड़ रुपये का ही भुगतान करेगी, जो कि बजटीय अनुमान के मुकाबले 153087 करोड़ रुपए कम है तथा पिछले वित्तीय वर्ष 2018-19 के मुकाबले 105408 करोड़ रुपए कम है। इस राशि में कमी होने का असर सीधे राज्य सरकारों के बजट पर पड़ना तय है, जो कि केन्द्र और राज्यों के बीच में नये कलह-विग्रहों को जन्म देगा।
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सरकार का बजट देश की आर्थिक मंदी व देश के आर्थिक संकट की तीक्ष्ण अभिव्यक्ति है। इस मंदी से निकलने के लिए जो कदम सरकार इस बजट में उठा रही है, उससे अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की सम्भावना नहीं है।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के संयोजक हैं।)