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विमर्श

निजीकरण ही एकमात्र सहारा जिसकी नैया पर सवार हो सरकार बचायेगी डूबती अर्थव्यवस्था?

Janjwar Team
1 Feb 2020 3:26 AM GMT
निजीकरण ही एकमात्र सहारा जिसकी नैया पर सवार हो सरकार बचायेगी डूबती अर्थव्यवस्था?
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पहले ही सरकार खुदरा और कोयला क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की घोषणा कर चुकी है और एयर इंडिया की बोली लगवाने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है, इसलिए निजीकरण और विनिवेश की प्रक्रिया को और आगे ले जाने सम्बन्धी घोषणाएं भी इस बजट में हो सकती हैं...

पीयूष पंत का बजट पूर्व विश्लेषण

जनज्वार। गिरती जीडीपी और बढ़ती महंगाई के साये में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण आज 1 फरवरी को 11 बजे मोदी सरकार की दूसरी पारी का दूसरा बजट पेश करेंगी। सही कहा जाए तो दूसरी पारी का पहला पूर्ण बजट पेश करेंगी, क्योंकि जुलाई 2019 में पेश किया गया बजट वित्त वर्ष 2019—20 के बचे हुए महीनों के लिए ही था। इस बजट से न केवल बेकारी और महंगाई की मार झेल रहे आम लोगों को बल्कि अर्थव्यवस्था के सभी सेग्मेंट्स से जुड़े लोगों को काफी उम्मीद है।

देखा जाये तो मोदी सरकार के लिए ये एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इस समय अर्थव्यवस्था बेहाल है। कहा तो यह भी जा रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था थम सी गयी है, बल्कि लगातार गिरावट की और अग्रसर है। उपलब्ध आंकड़े भी कुछ यही बता रहे हैं।

रकारी आंकड़े बता रहे हैं कि लगातार पिछली छह तिमाहियों से हर तिमाही में विकास की दर गिरावट की ओर बढ़ रही है। एनएसओ के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019—20 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितम्बर) में जीडीपी मात्र 4.5 फीसदी ही रही। वित्तीय वर्ष 2012—13 से लेकर ये अब तक की सबसे कम दर है, तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर में भी इसके इसी स्तर पर रहने के अनुमान की बात कही गयी है।

पूरे वित्तीय वर्ष के लिए जीडीपी विकास दर 5 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद की गयी है। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने भी आर्थिक सुस्ती को देखते हुए अपने पूर्व के 6.1 फीसदी विकास दर के अनुमान में कटौती कर इसे 5 फीसदी कर दिया है। यह दर पिछले छह सालों में सबसे कम है।

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सके विपरीत खुदरा मुद्रास्फीति की दर लगातार बढ़ी है। दिसंबर 2019 में खुदरा मुद्रास्फीति की दर 7.35 फीसदी पहुँच गयी, जबकि नवम्बर महीने में ये 5.54 फीसदी थी और दिसंबर 2018 में 2.11 फीसदी थी। मुद्रास्फीति का ये स्तर पांच सालों में सबसे अधिक था।

जनवरी माह में ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की विकास दर के मार्च में खत्म हो रहे वित्तीय वर्ष के लिए भारत की विकास दर को घटा कर 4.8 फीसदी कर दिया और आगामी वित्त वर्ष के लिए विकास की दर 5.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है।

तो क्या वित्त वर्ष 2020—21 के लिए सीतारमण द्वारा पेश किये जाने वाला आम बजट अर्थव्यवस्था को संकट के इस दौर से बाहर निकाल पायेगा? बजट से पूर्व 31 जनवरी को वित्तमंत्री द्वारा पेश किया गया आर्थिक सर्वेक्षण एक उम्मीद तो अवश्य जगाता है।

समें चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि दर 5 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई है। वहीं अगले वित्त वर्ष यानी 2020-21 के दौरान आर्थिक वृद्धि दर 6 से 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। साथ ही आर्थिक वृद्धि को तेज करने के लिये चालू वित्त वर्ष के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में ढील देने की बात भी कही गयी है। आर्थिक सर्वेक्षण में देश में व्यवसाय करने को आसान बनाने के लिए पहले से ज़्यादा सुधार करने का आह्वान किया गया है और यह भी कहा गया है कि सरकार आम चुनाव में मिले जनादेश का इस्तेमाल करते हुए आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाये।

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र्थव्यवस्था में आई मंदी की ज़िम्मेदारी वैश्विक हालात पर डालते हुए सर्वेक्षण कहता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो मंदी है उसका बुरा असर पड़ा है जिसके चलते इस साल की पहली दो तिमाही में आर्थिक विकास दर में गिरावट हुई है, लेकिन साल के दूसरे हिस्से यानी 2019—20 के दूसरे हिस्से में अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावना जताई गयी है। कहा गया है कि अब सुस्ती रुक जाएगी और ग्रोथ बढ़ेगी।

पांच साल में चार करोड़ नौकरियाँ पैदा करने की भी बात कही गयी है। सर्वेक्षण में नया कारोबार शुरू करने, संपत्ति के पंजीकरण, करों के भुगतान और अनुबंधों के प्रवर्तन को सुगम बनाने के लिए ज़रूरी कदम उठाने की बात भी कही गयी है। आर्थिक सर्वेक्षण इस बात पर भी जोर देता है कि सरकारी बैंकों की संचालन व्यवस्था में सुधार लाने और उस पर भरोसा कायम करने की ख़ातिर और ज़्यादा सूचनाएं सार्वजनिक रूप से प्रकाशित की जाएँ। बहरहाल ये तो हैं भविष्य के उपाय लेकिन फौरी तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को वर्तमान संकट से उबारने के लिए मोदी सरकार का बजट क्या प्रावधान कर सकता है?

जानकारों का कहना है कि अर्थव्यवस्था में वर्तमान संकट का मुख्य कारण मांग में कमी और अपेक्षित घरेलू एवं विदेशी निवेश का ना होना है। इसलिए वित्तमंत्री सीतारमण को अपने बजट में वे कदम उठाने होंगे जो अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता मांग को पैदा करे। साथ ही ढांचागत सुधार भी करने होंगे, ताकि निवेश को बढ़ावा मिले और नौकरियों का सृजन हो। विदेशी पूंजी का ज़्यादातर निवेश शेयर बाजार में हो रहा है। सरकार पहले ही शेयर बाजार में विदेशी पूंजी निवेश पर होने वाले लाभ पर से सरचार्ज हटा चुकी है।

म्मीद की जा रही है कि सरकार लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स को अगर पूरी तरह खत्म नहीं तो कम ज़रूर करेगी। निवेशकों की तरफ से इस तरह की मांग लगातार आती रही है और वित्तमंत्री भी इसका संकेत दे चुकी हैं। आर्थिक जानकारों का कहना है कि अगर इस टैक्स को खत्म कर दिया जाता है तो निवेशकों का मनोबल ऊंचा होगा और घरेलू निवेश में तेजी आएगी।

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पने देश में अगर किसी शेयर को खरीदने के एक साल के भीतर बेचा जाता है तो उसपर 15 फीसदी STCG टैक्स लगता है, जबकि अगर एक साल के बाद बेचा जाता है तो उसपर 10 फीसदी LTCG टैक्स लगता है। सरकार ऐसे शेयरों को छूट दे सकती है जो दो सालों तक ना बेचे जाते हों। अगर ऐसा होता है तो बाज़ार का बढ़त के साथ खुलना निश्चित है।

स दिशा में बजट में एक और जो बड़ा कदम उठाया जा सकता है वो है डिविडेंट डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स का खात्मा। डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स अभी 15 फीसदी हैं और साथ में सरचार्ज के रूप में एजुकेशन सेस अलग से लगता है। कुल मिलाकर कंपनियों को डिविडेंड जारी करने पर 20 फीसदी टैक्स देना पड़ता है। एक कंपनी जितना डिविडेंड जारी करना चाहती है, यह टैक्स उस रकम पर लगता है।सालाना दस लाख के ऊपर के डिविडेंट पर अतिरिक्त 10 फीसदी टैक्स देना होता है।

पभोक्ता मांग को बढ़ावा देने के लिए लोगों की बचत में इजाफा करने की दृष्टि से इस बजट में सरकार पर्सनल इनकम टैक्स रेट में कटौती कर सकती है। हालांकि राजकोषीय स्थिति इसके लिए अनुकूल नहीं है। इसके बावजूद मांग में छाई सुस्ती को दूर करने के लिए सरकार इनकम टैक्स रेट में कटौती का ऐलान कर सकती है।

वित्त वर्ष 2019—20 के लिए सरकार ने डायरेक्ट टैक्स से कमाई का लक्ष्य 13.38 लाख करोड़ रखा है। नवंबर में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, डायरेक्ट टैक्स से सरकार की कुल कमाई करीब 5.56 लाख करोड़ रुपये हुई है।

वर्तमान में 5 लाख तक की सालाना आमदनी वाले करदाताओं को 12,500 हज़ार की छूट मिलती है। उम्मीद की जा रही है कि ये छूट सालाना 10 लाख रुपये तक की आमदनी वाले कर दाताओं को भी दी जा सकती है।

म्मीद तो ये भी की जा रही है कि सरकार निम्नतम छूट सीमा को भी बढ़ा दे। 3 लाख की न्यूनतम सीमा 2014—15 से नहीं बढ़ायी गयी है। यह सीमा 60 साल से नीचे वालों के लिए 2 लाख पचास हज़ार है। सरकार इस बजट में ज़्यादा क़र्ज़ लेने का ऐलान भी कर सकती है। सरकार पर खर्च में तेजी लाने का दबाव है और कमाई लगातार घट रही है। सरकार के ऊपर भारी कर्ज का बोझ पहले से ही है, लेकिन कर्ज ज्यादा लेना सरकार की मजबूरी भी दिख रही है।

निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार बजट में 'NIRVIK' स्कीम लागू करने की घोषणा कर सकती है। इस स्कीम के तहत निर्यातकों को सस्ते और आसान शर्तों पर ज़्यादा से ज़्यादा क़र्ज़ मिल सकेगा। यह स्कीम लागू होने पर उनके सामान के 60 नहीं बल्कि 90 फीसद तक का बीमा हो सकेगा। बीमा कवर में प्री और पोस्ट-शिपमेंट क्रेडिट दोनों शामिल होंगे।

रियल एस्टेट मंदी के दौर से गुजर रहा है। इसे बढ़ावा देने के लिए सरकार बजट में कुछ घोषणाएं कर सकती है। इस सेक्टर के लिए बूस्टर पैकेज की मांग लगातार हो रही है। उम्मीद की जा रही है कि स्वरोज़गार में लगे लोगों के लिए होम लोन पर ब्याज की सीमा को 2 लाख से बढ़ा कर 3 लाख रुपये कर दिया जायेगा।

टो सेक्टर के लिए GST कम करने की घोषणा हो सकती है। ऑटोमोबाइल्स पर 28 फीसदी GST लगती है। इंडस्ट्री की मांग है कि सरकार इसे घटा कर 18 फीसदी कर दे। इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार बड़े ऐलान कर सकती है। छोटे कारोबारियों को नोटबंदी और GST की मार सबसे ज़्यादा झेलनी पडी है। ऐसे में सरकार छोटे कारोबारियों के लिए क्रेडिट उपलब्धता को बढ़ाने का प्रयास कर सकती है।

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कृषि क्षेत्र सबसे ज़्यादा रोज़गार पैदा करता है और GDP में भी इसका योगदान काफी बड़ा रहता है। वर्तमान में ग्रामीण अर्थव्यवस्था लगभग ज़ीरो ग्रोथ पर पहुँच चुकी है। ऐसे में सरकार की कोशिश होगी कि ग्रामीणों की जेब में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तरीके से पैसा पहुंचाए। बजट में फसलों के समर्थन मूल्य और बीमा को लेकर भी घोषणा हो सकती है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए फ़ूड प्रोसेसिंग उद्योग को और अधिक रियायतें या इन्सेंटिव दिए जा सकते हैं।

हालाँकि आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने बैंकिंग सेक्टर के सेहतमंद होने की बात कही है, लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं। सरकारी बैंकों के परस्पर विलय और बैंक कर्मचारियों के धरने-प्रदर्शन से भी ये बात साफ़ है। इसलिए सरकार बैंकिंग और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों की बेहतरी के लिए घोषणाएं कर सकती है।

लेकिन सबसे बड़ी बात तो ये है कि इन संभावित घोषणाओं के लिए सरकार को पैसा चाहिए, ये धन आएगा कहाँ से? वैसे भी सरकार भारी क़र्ज़ में डूबी है। लाजिमी है कि सरकार निजीकरण और विनिवेश का रास्ता चुनेगी। पहले ही सरकार खुदरा और कोयला क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की घोषणा कर चुकी है और एयर इंडिया की बोली लगवाने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है, इसलिए निजीकरण और विनिवेश की प्रक्रिया को और आगे ले जाने सम्बन्धी घोषणाएं भी इस बजट में हो सकती हैं।

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