मजदूरों को सड़कों पर पैदल चलने से रोकने सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार, अदालत ने कहा ये कैसे संभव?

Update: 2020-05-15 13:35 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवासी मजदूरों को चलने से कैसे रोक सकते हैं? इस न्यायालय के लिए यह निगरनाी करना असंभव है कि कौन चल रहा है और कौन नहीं चल रहा है?

जनज्वार ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने उस अर्जी को आज खारिज कर दिया है जिसमें पैदल चल रहे सभी प्रवासी मजदूरों की पहचान करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि निःशुल्क और गरीमापूर्ण तरीके से अपने मूल स्थान पर पहुंचें, देश के सभी जिला मजिस्ट्रेटों के लिए निर्देशों की मांग की गई थी। महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर 16 मजदूरों की मौत के मद्देजनर यह अर्जी दाखिल की गई थी।

स अर्जी को खारिज करते हुए जस्टिस एल नागेश्वर राव ने कहा, हम उन्हें चलने से कैसे रोक सकते हैं? इस न्यायालय के लिए यह निगरनाी करना असंभव है कि कौन चल रहा है और कौन नहीं चल रहा है? इस दौरान बेंच के दूसरे जज जस्टिस एसके कौल ने कहा, 'प्रत्येक वकील अचानक कुछ पढ़ता है और फिर आप चाहते हैं कि हम समाचार पत्रों के आपके ज्ञान के आधार पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मुद्दों का फैसला करेंगे?' जाओ और सरकार के निर्देशों को लागू करो! हम आपको एक विशेष पास देंगे और आप जाकर जांच करेंगे।'

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कानूनी मामलों की समाचार वेबसाइट 'लाइव लॉ' की एक रिपोर्ट के मुताबिक याचिकाकर्ता आलोक श्रीवास्तव द्वारा दायर अर्जी में कहा गया था कि 8 मई को औरंगाबाद जिला (महाराष्ट्र) के गढ़ेजलगांव में हुई दिल दहला देने वाली घटना के मद्देनज़र शीर्ष अदालत के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जिसमें सुबह 5.30 बजे पैदल चल रहे मध्यप्रदेश जा रहे कम से कम 16 प्रवासी कामगारों की ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी।

रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच को बताया, 'सरकार ने पहले से ही प्रवासी श्रमिकों की मदद करना शुरू कर दिया है। लेकिन, वे अपनी बारी का इंतजार नहीं कर रहे हैं और वे चलना शुरू कर रहे हैं। अंतरराज्यीय समझौते के अधीन होने पर, हर किसी को यात्रा करने का मौका मिलेगा। बल का उपयोग करना उल्टा पड़ सकता है। वे इसके लिए इंतजार कर सकते हैं। पैदल चलने की बजाय, रुकना चाहिए।'

Full View जनरल तुषार मेहता ने आगे कहा कि अगर लोग नाराज हो जाते हैं और परिवहन के लिए इंतजार करने के बजाय पैदल यात्रा शुरू करते हैं, तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है। सरकार केवल निवेदन कर सकती है कि लोग न चलें। इन दलीलों के मद्देनज़र बेंच ने अंतरिम अर्जी को खारिज कर दिया। अर्जी में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों का हवाला दिया गया था और यह अदालत को प्रस्तुत किया गया था कि ऐसी ही कई अन्य घटनाएं हैं, जिसमें गरीब प्रवासी मजदूरों की भूख या सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है, जो पैदल यात्रा करके अपने मूल स्थानों पर लौट रहे थे।

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ससे पहले 31 मार्च को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में बयान दिया था कि 'अपने गृहनगर / गांव तक पहुंचने का प्रयास चलने वाला अब कोई व्यक्ति सड़कों पर नहीं है। IA में यह भी प्रस्तुत किया कि, केंद्र की ओर से स्थिति की गंभीरता और उचित कार्रवाई की कमी को देखते हुए, प्रवासी मजदूरों के कीमती जीवन के नुकसान की संभावना बढ़ गई है।'

सलिए भारत के प्रत्येक जिले के जिला मजिस्ट्रेटों के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए थे कि वे अपने संबंधित जिलों में ऐसे घूमने वाले / फंसे हुए प्रवासी कामगारों की तुरंत पहचान करें, उन्हें तुरंत नजदीकी आश्रय घरों / शिविरों में शिफ्ट करें, उन्हें पर्याप्त भोजन, पानी, दवाएं, परामर्श आदि उपलब्ध कराएं और उचित चिकित्सीय परीक्षण के बाद, उन्हें अपने-अपने पैतृक गांवों में, पूरी गरिमा के साथ भेजना सुनिश्चित करें।

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