बिहार के बक्सर में बाढ़ से किसानों की हजारों एकड़ फसल बर्बाद, लेकिन सरकार की ओर से नहीं है कोई पूछनहार

Update: 2019-10-03 13:59 GMT

बाढ़ पीड़ित गरीब किसान अमरजीत कहते हैं, सरकार के तमाम दावों और वादों के बावजूद न तो हमें अभी तक इंदिरा आवास के तरफ से पक्का मकान मिला है और न ही बाढ़ से बचाव के लिए फौरी तौर पर ग्राम पंचायत की तरफ से कोई राहत, हम सड़क किनारे झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर हैं...

बक्सर से मनीष भारद्वाज की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार। पिछले सप्ताहभर बारिश ने पूरे उत्तर भारत में भारी तबाही मचायी, लेकिन बिहार में आई बाढ़ से मची तबाही की चर्चा अन्य जगहों से ज्यादा थी। नीतीश सरकार और नगर निगम की व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो जाने का प्रमाण इससे ज्यादा कुछ नहीं हो सकता था कि पूरे पटना का 80 फीसद इलाका जलमग्न हुआ पड़ा था।

टना जोकि बिहार की राजधानी है, वहां के सरकारी अस्पताल, मॉल, दुकान सबकुछ बाढ़ के पानी में डूबा पड़ा था। सबसे ज्यादा मीडिया कवरेज भी वहीं पर था, पर इसके अलावा भी बिहार के कई जिलों के सैकड़ों गांव पूरी तरह से बाढ़ में तबाह हो गये। ये गांव पास के बाजारों, अस्पतालों या जिला मुख्यालय से पूरी तरह आज भी कटे हुए हैं।

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बिहार के पश्चिम भाग में गंगा नदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक जिला बक्सर भी एक ऐसा जिला है, जो बाढ़ के कारण तबाह हआ है। यहां की जनसंख्या लगभग पौने 18 लाख के करीब है, जिला मुख्यालय से लेकर जिले के तमाम गांव कई दिनों से जलमग्न है। लचर शासन—प्रशासन व्यवस्था का आलम तो यह है कि जिसको जहां मर्जी, वहां मिट्टी भरकर जल निकासी को अवरुद्ध कर देता है। इस अतिक्रमण को लेकर ग्राम पंचायत से लेकर प्रशासन तक सभी मौन रहते हैं।

Full View के ब्रह्मपुर प्रखंड के अंतर्गत लगभग 106 गांव आते हैं। मुख्यतः जो गांव सबसे ज्यादा बाढ़ से प्रभावित हुए हैं उनमें मुख्य तौर पर पांडेपुर, निमेज, गायघाट, गायघाट पुचरी, एकड़ाध, नैनिजोर, पचपेड़वा, चक्की, उधुरा, चंद्रपुर, चकनी, उड़ाई शामिल हैं। यह प्रखंड के वह इलाके हैं, जो लगभग हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। गंगा के किनारे यह इलाका होने के बावजूद इस साल बाढ़ ने यहां बहुत ज्यादा तबाही मचाई है।

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न गांवों को देखने के बाद आसानी से समझ जाएंगे कि यह इलाका विकास के दौर में अभी भी कितना पिछड़ा हुआ है। रिपोर्टिंग के दौरान बाढ़ से जलमग्न हुए कुछ और गांवों की तरफ बढ़ते हैं तो उसी दौरान रोड के किनारे अपनी गृहस्थी बचाए हुए अमरजीत से बातचीत हुई। अमरजीत दलित डोम बिरादरी से आते हैं। चकनी गांव के अंतर्गत एक छोटा सा टोला मनिपुर जो पूरी तरह बाढ़ में जलमग्न हो चुका है, वही इनका गांव है।

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मरजीत अपना दर्द बताते हैं कि सरकार के तमाम दावों और वादों के बावजूद न तो हमें अभी तक इंदिरा आवास के तरफ से पक्का मकान मिला है और न ही बाढ़ से बचाव के लिए फौरी तौर पर ग्राम पंचायत की तरफ से कोई राहत।

किसी भी तरह अमरजीत रोड के किनारे झोपड़ीनुमा टैंट लगाकर गांव में पानी कम होने का इंतजार कर रहे हैं कि कब पानी कम हो तो इन्हें कुछ राहत मिले। पिछले कई दिनों से अमरजीत रोड के किनारे हैं। इनके कई मवेशी गाड़ी से धक्का लग कर मर चुके हैं। ये लोग किसी भी तरह रोड के किनारे अपना गुजर—बसर करने को मजबूर हैं।

हीं दूसरी तरफ इलाके के किसानों की अपनी समस्या है। घुरहुपुर गांव के तारकेश्वर राय बताते हैं कि लगभग इलाके की 1000 एकड़ में लगे मक्के की फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी है। किसानों की लगभग दस दस बीघा के आसपास फसल बर्बाद हो चुकी है।

हजारों मवेशी फंसे हुए हैं बाढ़ में, किसान औने—पौने दामों में बेचने को मजबूर

मरजीत से यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार की तरफ से उन्हें फसल क्षतिपूर्ति के लिए कोई मुआवजा मिला, तो उनका कहना है कि जो फॉर्म भरा जा रहा था उसकी डेट खत्म हो गयी है, न ही वीडियो साहब और ना ही सीओ साहब हम लोगों की सुध लेने आए। बाकी जनप्रतिनिधियों की तरफ से भी हम किसानों और बाढ़ पीड़ितों को निराशा ही हाथ लगी।

बाढ़ पीड़ित किसानों के सामने अपने परिवार के साथ—साथ मवेशियों की भी चिंता सताने लगी है कि किस तरह उनके लिए चारे—पाने का प्रबंध किया जाये। पीड़ित किसान औने-पौने दामों पर किसान अपनी मवेशियों को बेच रहे हैं, क्योंकि खिलाने को उनके पास अब चारा तक भी नहीं बचा है।

थाकथित विकास की भले ही कितनी सीढ़ियां देश क्यों न चढ़ ले, जब तक विकास की धारा इन लोगों तक नहीं पहुंचेगी, तब तक हम असमानता की खाई को पाट नहीं सकते। हर साल करोड़ों—अरबों की योजनाएं भी इन इलाकों तक आते-आते दम तोड़ देती हैं यह बात और है कि इनमें राहत और पुनर्वास से संबंधित अधिकारी, ठेकेदार और जनप्रतिनिधि दिन दूनी रात चौगुनी चौमुखी विकास के सोपान पर चढ़ते जा रहे हैं और इन्हें चिढ़ा भी रहे हैं कि तुम ऐसे ही रहो, ताकि हम तुम्हारे नाम की मलाई हर साल खाने को मिलती रहे।

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