चिन्मयानंद की जमानत के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
चिन्मयानंद को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन फरवरी को जमानत दी थी, अब जमानत को पीड़ित छात्रा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। दुराचार के मामले में वह यूपी की शाहजहांपुर जिला जेल में बंद थे। दो माह पहले मामले की सुनवाई हुई थी, तब कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था...
शाहजहांपुर से जे.पी.सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में लॉ छात्रा से दुष्कर्म के मामले में आरोपी भाजपा के पूर्व सांसद स्वामी चिन्मयानंद की जमानत को उच्चतम न्यायालय में पीड़िता ने चुनौती दी है। पीड़िता की इस याचिका पर उच्चतम न्यायालय सोमवार (24 फरवरी) को सुनवाई करेगा। लॉ छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी पूर्व भाजपा सांसद चिन्मयानंद को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन फरवरी को जमानत दी थी। अब इस मामले पर चीफ जस्टिस (CJI) एसए बोबडे की पीठ सुनवाई करेगी।
जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्वेस ने बताया कि चिन्मयानंद को इस महीने की शुरुआत में उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देने के आदेश को इस याचिका में चुनौती दी गई है। पीठ ने कहा कि याचिका को सूचीबद्ध करने के बारे में वह अगले हफ्ते विचार करेगी।
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पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता चिन्मयानंद को जमानत देने के क्रम में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने असामान्य टिप्पणियां की हैं, जो उसके खिलाफ यौन शोषण मामले में आपराधिक मुकदमे में मेरिट सरीखी हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्वामी चिन्मयानंद के जमानत आदेश की विधि क्षेत्रों में कड़ी आलोचना हुई थी क्योकि कोर्ट ने केस की मेरिट पर अपना फैसला लिखा है और टिप्पणी की है कि दोनों ही पक्षों ने अपनी मर्यादा लांघी हैं, ऐसे में यह निर्णय करना बहुत मुश्किल है कि किसने किसका शोषण किया, वास्तव में दोनों ने एक-दूसरे का इस्तेमाल किया है।जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने छात्रा के यौन शोषण के मामले में सोमवार को चिन्मयानंद को सशर्त जमानत दी थी।इससे पूर्व शिकायतकर्ता के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति चतुर्वेदी ने 16 नवंबर, 2019 को चिन्मयानंद की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
विधि विशेषज्ञों का कहना है कि हाईकोर्ट का जमानत आदेश उच्चतम न्यायालय के समक्ष कानूनी रूप से ठहर पाना बहुत मुश्किल है। यह जमानत आदेश लगभग 25 पेज लम्बा है। दरअसल इस मामले में अलग अलग क्राईम नम्बर के दो मामले है,एक पीडिता द्वारा यौन उत्पीडन का मामला है और दूसरा पीडिता द्वारा स्वामी को ब्लैकमेल मामला। जमानत आदेश में हाईकोर्ट ने ब्लैकमेल मामले को भी अपने आदेश को न्यायोचित ठहराने के लिए घुसा दिया है।
हाईकोर्ट ने भी भी अपने आदेश में इस अंतर को स्वीकार किया है और पी. चिदंबरम बनाम सीबीआई मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गयी एहतियात का उल्लेख किया है जहां उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि जमानत आदेश में मामले की मेरिट पर टिप्पणी या उसका विश्लेषण नहीं किया जाना चाहिए। इसके बावजूद फिर हाईकोर्ट ने यही किया है ।
हाईकोर्ट के जमानत आदेश में अभियोजन पक्ष पर सवाल उठाया गया है। आदेश के पैराग्राफ 30 में हाईकोर्ट ने मेडिकल साक्ष्यों की अपर्याप्तता का भी संज्ञान लिया है। साक्ष्यों की समीक्षा करना, अभियुक्त का दोष निर्धारण करना जमानत आदेश के लिए क़ानूनी रूप से अमान्य है। पैराग्राफ 32 में कहा गया है कि शिकायतकर्ता ने यह आशंका जताई है कि अभियुक्त चिन्मयानन्द उर्फ़ कृष्ण पाल सिंह शाहजहांपुर में एक जाना-माना और शक्तिशाली नाम है। ऐसी सम्भावना है कि वह कानून के साथ खिलवाड़ करते हुए गवाहों और साक्ष्यों को छेड़ने की कोशिश करे और इसलिए गृह क्षेत्र शाहजहांपुर में ट्रायल की निष्पक्षता पर प्रभाव पड़ेगा। शिकायतकर्ता के यह भय निराधार नहीं है। इसके बावजूद जमानत दे दिया गया ।
फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि यह दिख रहा है कि पीड़ित छात्रा के परिजन आरोपी व्यक्ति के उदार व्यवहार से लाभान्वित हुए। वहीं यहां कोई भी ऐसी चीज़ रिकॉर्ड में नहीं है, जिससे यह साबित हो कि छात्रा पर कथित उत्पीड़न की अवधि के दौरान उसने अपने परिजनों से इसका जिक्र भी किया हो। यह भी कहा गया कि छात्रा ने इस बीच आरोपी के खिलाफ अपने परिवार के सदस्यों से न तो कोई शिकायत की न ही किसी को इसकी आहट लगने दी। इसलिए अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि यह मामला पूरी तरह से किसी लाभ के बदले कुछ काम करने का है।
हालांकि एक समय के बाद अधिक हासिल करने के लालच में लगता है कि छात्रा ने अपने साथियों के साथ आरोपी के खिलाफ षड़यंत्र रचा और अश्लील वीडियो के जरिए उसे ब्लैकमेल करने का प्रयास किया। जमानत आदेश के पैरा 13 मेंजस्टिस चतुर्वेदी ने यह भी कहा है कि छात्र ने चिन्मयानंद के 'संरक्षण' और 'परोपकार' की मांग की थी और 'उनके साथ निजी क्षण साझा कर रहे थे' और उन्हें आरोपी से 'भौतिक लाभ' मिला था। जज का मानना था कि यह मुश्किल है कि किसने किसका इस्तेमाल किया' और टिप्पणी करता है कि यह क्विड प्रो क्वीन का मामला लगता है।
फैसले में हाईकोर्ट का कहना था कि पुलिस ने इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 सी का उल्लंघन किया है, जो बलात्कार का अपराध नहीं है, बल्कि 'एक व्यक्ति द्वारा संभोग' का अपराध है। आदेश के अनुसार यह अपराध धारा 376 के तहत 'बलात्कार' से अलग है और पांच साल की न्यूनतम कारावास के साथ दंडनीय है जो दस साल तक का हो सकता है।
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चिन्मयानंद को पिछले वर्ष 20 सितंबर को गिरफ्तार किया गया था। उसका न्यास शाहजहांपुर लॉ कॉलेज का संचालन करता है। उसी कॉलेज में पीड़िता पढ़ती थी। चिन्मयानंद ने कथित तौर पर उसका बलात्कार किया था। लॉ की 23 वर्षीय छात्रा ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर डाली थी, उसके बाद पिछले वर्ष अगस्त में कुछ दिन तक उसका कोई पता नहीं लगा था जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में दखल दिया था।
उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर गठित उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष जांच दल ने चिन्मयानंद को गिरफ्तार किया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तीन फरवरी को उसे जमानत दे दी थी। पीड़ित छात्रा के खिलाफ भी शिकायत मिली थी कि उसने और उसके दोस्तों ने कथित तौर पर चिन्मयानंद से पांच करोड़ रुपये की उगाही करने की कोशिश की थी। उसने पूर्व मंत्री के वीडियो सार्वजनिक करने की भी कथित धमकी दी थी। इसके बाद एसआईटी ने छात्रा को भी गिरफ्तार कर लिया था।