पिछले 13 वर्षों से केरल में महिलाओं को ऐसे लाभ दे रहा घरेलू हिंसा अधिनियम

Update: 2020-04-14 01:30 GMT

प्रत्येक जिले में घरेलू हिंसा के मामलों से निपटने के लिए एक महिला सुरक्षा अधिकारी (WPO) को जिम्मा सौंपा गया है। एक महिला सुरक्षा अधिकारी पीड़ितों से मिलने और सेवाओं की पेशकश करने और घरेलू घटना रिपोर्ट (DIR) तैयार करने और संबंधित मजिस्ट्रेट के साथ संवाद करने के अपने अधिकारों के बारे में जागरूक करने तक सबकुछ करती है...

जनज्वार। वकील जे. संध्या ने अपने मातृत्व अवकाश (मैटरनिटी लीव) को कम कर दिया था और उस दिसंबर माह में वह काम पर आ गईं थी। उनके बच्चे का जन्म अक्टूबर में हुआ था। दो महीने से भी कम समय के बाद संध्या ने घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत अपनी पहली याचिका दायर की।

क महिला ने तब संध्या की मदद मांगी थी, जब उसके पति (जो एक शीर्ष पायलट था) ने उसे गाली देना शुरू कर दिया और अपनी शादी से अचानक पीछे हट गया। यह एक अंतर-धार्मिक विवाह का मामला था और इसने उसे अपने परिवार से अलग कर दिया था। महिला के पास देखभाल करने के लिए एक बच्चा था और उसके पास एक छात्रावास के किराए का भुगतान करने के लिए पैसे भी नहीं थे। वह भूख से मर रही थी और आत्महत्या के कगार पर थी। लेकिन उसी दिन दायर की गई याचिका पर अदालत ने आदेश दिया कि उसका पति पांच दिन के भीतर उसे 25,000 रुपये दे और उसके बाद हर महीने उतनी ही रकम चुकाते रहे। इससे महिला की जान बच गई।

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11 साल बाद तिरुवनंतपुरम में अपने ऑफिस में बैठी संध्या कहती हैं, इन दो मामलों मेंके बाद घरेलू हिंसा अधिनियम पर मेरा भरोसा वापस आ गया। हालांकि घरेलू हिंसा अधिनियम का क्रियान्वयन आसान नहीं है। लेकिन अगर इस अधिनियम को ठीक से लागू किया जाए तो यह समाज पर क्या असर कर सकता है। इस स्टोरी में हम यही जानने की कोशिशख करेंगे कि पिछले तेरह वर्षों में यह घरेलू हिंसा अधिनियम केरल में कितना प्रभावी रहा है।

इतिहास

रेलू हिंसा अधिनियम 2005 से महिलाओं का संरक्षण ( संक्षेप में घरेलू हिंसा अधिनियम) का मसौदा प्रसिद्ध वकील और महिला अधिकार कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंग के द्वारा तैयार किया गया था। यह 26 अक्टूबर 2006 को लागू हुआ।

संध्या कहती हैं, 'इसके पीछे का इतिहास बहुत मजबूत है। 1983 में जब दिल्ली में स्टोव फटने लगे तब यह शुरु हुआ। इससे पहले घरेलू हिंसा को एक मुद्दा भी नहीं माना जाता था। लेकिन तब सभी स्टोव जलने की घटनाओं में एक सामान्य तत्व थी - नव विवाहित जवान महिला। कानून में बदलाव का ही असर हुआ कि दहेज से होने वाली मौत को आखिरकार एक वास्तविकता माना गया।

Full View 498 ए में यह कहते हुए संशोधन किया गया था कि यदि विवाहित महिला को उसके पति या उसके ससुराल वालों द्वारा दहेज या किसी अन्य मामले के लिए परेशान किया जाता है, तो तीन साल की सजा होगी। लंबे समय तक धारा 498-ए कानूनी रूप से घरेलू हिंसा से निपटने का एकमात्र प्रावधान बन गया।

संध्या कहती है, 'पहले समस्या यह थी कि कई महिलाओं को वो राहत नहीं मिलती थी जो वे चाहती थी। अधिकांश महिलाएं नहीं चाहती थीं कि उनके पति जेल जाएं, वे चाहती थीं कि बस उनका दुख बस किसी तरह कम हो जाए। इसलिए पुलिस पति को को गिरफ्तार करने के लिए आती भी थी तो महिला उन्हें न ले जाने की गुहार लगाती थीं।

कानून को अपराधी की तत्काल गिरफ्तारी की आवश्यकता थी और जब पति जेल गया तो दुश्मनी बढ़ जाती थी। जिन पुरुषों को जेल में डाल दिया जाता था वो अक्सर पत्नियों के खिलाफ हिंसक होजाते थे और उन्हें घर छोड़ने की माांग करते थे। यह उन महिलाओं के लिए एक समस्या बन गई थी जिनके पास कहीं जाने का कोई रास्ता नहीं था।

संध्या उस एक टीम का हिस्सा थीं जिसने घरेलू हिंसा अधिनियम 2010 में लागू होने के बाद में यह जांचने के लिए एक सर्वेक्षण किया कि क्या यह संशोधित कानून महिलाओं की मदद कर रहा है। उन्होंने पांच साल की फाइलों को देखा और केवल एक ही दोषी पाया।

धारा 498 ए राहत देने में असफल होने के बाद इंदिरा जयसिंग और अन्य लोगों ने घरेलू हिंसा अधिनियम की तरह के एक अधिनियम की पैरवी की जो खासतौर पर एक दीवानी प्रकृति का है। संध्या कहती हैं, 'जब मामला अदालत में ले जाया जाता है तो यह एक सुरक्षा आदेश (प्रोटेक्शन ऑर्डर) देता है। अगर प्रतिवादी (पति या पुरुष साथी) इस आदेश का उल्लंघन करता है तो मामला आपराधिक हो जाता है। इस मामले में अगर एक संरक्षण आदेश का उल्लंघन किया जाता है तो सजा के रुप में 1 साल की कैद या 20 हजार रुपये का जुर्माना दोनों है।'

घरेलू हिंसा अधिनियम कवर क्या है?

इंदिरा जयसिंग द्वारा परिकल्पित घरेलू हिंसा अधिनियम पति या पुरुष लिव इन पार्टनर या उसके रिश्तेदारों के हर तरीके के उत्पीड़न से रक्षा करता है। केरल समाज कल्याण विभाग की एक मूल्यांकन रिपोर्ट में घरेलू हिंसा को 'शारीरिक, यौन, आर्थिक और भावनात्मक शोषण, अकेले या संयोजन में, एक अंतरंग साथी द्वारा अक्सर दूसरे साथी पर सत्ता और नियंत्रण स्थापित करने और बनाए रखने' के रुप में वर्णित किया गया है।

केरल के सामाजिक न्याय विभाग की वेबसाइट कहती है- घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत घरेलू हिंसा में वास्तविक दुर्व्यवहार या दुरव्यवहार की धमकी शामिल है, चाहे वह शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक हो। दहेज की मांग भी उत्पीड़न के अंतर्गत आता है और घरेलू हिंसा के रुप में परिभाषित होती है।

बसे पहले महिला शिकायतकर्ता महिला सुरक्षा अधिकारी या सेवा प्रदाता द्वारा सुनी जाती हैं, फिर उन्हें घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में जागरुक कराया जाता है कि वे इसका उपयोग कैसे कर सकते हैं। उन्हें काउंसलिंग की पेशकश की जाती है, जबकि अन्य संबंधित पक्षों को इसमें बुलाया जा सकता है। यदि मध्यस्थता और अन्य सभी विकल्प विफल हो जाते हैं तो मामला अदालत में चला जाता है, लेकिन पहले तो यह एक दीवानी मामला होगा। अदालत एक आदेश जारी करेगी जिसमें प्रतिवादी (अपमान करने वाला) से आदेश का पालन करने की उम्मीद की जाती है। लेकिन अगर प्रतिवादी आदेश का उल्लंघन करता है तो मामला आपराधिक हो जाता है और फिर उसे सजा दी जा सकती है।

Full View सुरक्षा अधिकारी और सेवा प्रदाता

प्रत्येक जिले में घरेलू हिंसा के मामलों से निपटने के लिए एक महिला सुरक्षा अधिकारी (डब्ल्यूपीओ) को जिम्मा सौंपा गया है। एक महिला सुरक्षा अधिकारी पीड़ितों से मिलने और सेवाओं की पेशकश करने और घरेलू घटना रिपोर्ट (DIR) तैयार करने और संबंधित मजिस्ट्रेट के साथ संवाद करने के अपने अधिकारों के बारे में जागरूक करने तक सबकुछ करती है। महिला सुरक्षा अधिकारी को सेवा प्रदाता केंद्रों, गैर सरकारी संगठनों द्वारा मदद प्रदान की जाती है। सेवा प्रदाता केंद्र महिलाओं को घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में जागरुक करने, परामर्श और कानूनी सेवाओं की व्यवस्था करने और आश्रय प्रदान करने में भी जुड़े हैं। वर्तमान में पूरे केरल में 87 सेवा प्रदान करने वाले केंद्र है।

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र्नाकुलम जिले में एक आधिकारिक स्रोत ने बताया कि महिला सुरक्षा अधिकारी पहले मामलों को परामर्श के माध्यम से समस्या को हल करने का प्रयास करती हैं। लेकिन यह तभी अदालत तक ले जाया जा सकता है जब कोई रास्ता नहीं निकलता है। अदालत मामले की गंभारता के आधार पर आदेश जारी कर सकती है। अदालत निवास का आदेश जारी कर सकती है जो एक महिला को साझा घर में रहने की अनुमति देता है या सुरक्षा आदेश जारी कर सकता है जो मांग करता है कि पीड़ित के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा (मानसिक, शारीरिक आदि) तुरंत बंद की जाए। इसी तरह बच्चों के मामले में हिरासत आदेश जारी कर सकती है। इसके अलावा अगर मजिस्ट्रेट मामले के बारे में आश्वस्त हो तो बिना प्रतिवादी का पक्ष को सुनने के लिए इंतजार किए बिना उसी दिन संरक्षण आदेश जारी कर सकती है।

(ये आलेख पूर्व में 'द न्यूज मिनट' पर प्रकाशित की जा चुकी है।)

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