योगी सरकार के झूठ की पोल खुली संसद में

Update: 2017-07-26 09:03 GMT

यूपी के गन्ना किसानों के भुगतान का बड़ा—बड़ा विज्ञापन छापने वाली योगी सरकार की असलियत कुछ और ही है। सिर्फ एक जिले में 2 सौ करोड़ का गन्ना भुगतान नहीं हुआ है...

जनज्वार। अगर उत्तर प्रदेश में मीडिया का हाल देखें तो इस समय वह दो तरह के रोल में हैं। एक योगी गायन में व्यस्त है और दूसरी योगी को चिढ़ाने में। यह दोनों ही स्थितियां एक सरकार को गैरजिम्मेदार बनाने के लिए काफी हैं, क्योंकि ऐसी मीडिया सरकार से सवाल नहीं पूछती।

मीडिया सवाल करने के अपने बुनियादी रोल में बनी रहती तो ऐसा नहीं होता कि सरकार सौ प्रतिशत गन्ना भुगतान जैसे फर्जी दावे पर गुरूर में मृदंग नहीं बजा रही होती।

'जुलाई माह समाप्ति की ओर है, अक्तूबर में चीनी मिल गन्ना पैराई का कार्य शुरू कर देते हैं। पिछले वर्ष एक ओर तो गन्ने की फसल का रिकार्ड उत्पादन हुआ तथा चीनी की रिकवरी भी अप्रत्याशित रही। जहां पूर्व में 8.5-9 प्रतिशत होती थी गत वर्ष 13-14 प्रतिशत रही, बावजूद शामली जिले के किसानों का भुगतान मिल मालिकों ने नहीं किया।'

यह बात कोई और नहीं बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा के भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने पत्र लिखकर उठाया है। और कल इसी सवाल को उन्होंने संसद में भी उठाया।

लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष अपनी बात रखते हुए हुकुम सिंह ने कहा, 'अपवाद छोड़ दे तों प्रत्येक मिल मालिक ने अरबों रुपए का लाभ उठाया, परंतु इसके बाद भी गन्ना कृषकों का भुगतान अब तक रोककर बैठे हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि गन्ना कृषक का भुगतान चीनी मिलों की प्राथमिकता नहीं रह गई है।'

किसानों की यह हालत तब है जब योगी सरकार ने अपने गठन के मात्र 15 दिनों के भीतर ही गन्ना किसानों के पूर्ण भुगतान का दावा किया था। अभी यूपी का बजट पेश होने पर भी यही दावा दोहराया गया पर गन्ना किसानों के बकाए सवाल हाशिए पर ही रहा।

भाजपा सांसद हुकुम सिंह के मुताबिक, 'आप कल्पना कर सकते हैं कि अपने वर्षभर की कमाई का गन्ना मिलों की आपूर्ति करने के उपरांत भी किसान भुगतान से वंचित हैं। शामली सबसे छोटा जनपद है, यहां चीनी मिलें हैं जिनका 200 करोड़ से भी अधिक गन्ना भुगतान शेष है। सरकार की ओर से बार-बार आश्वासन के उपरांत भी गन्ना कृषकों का भुगतान न करना मालिकों की हठधर्मी है।'

पत्र के आखिरी पैरा में कैराना सांसद हुकुम सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा है, 'गन्ना कृषक को मजबूर होकर संघर्ष की राह पकड़नी पड़ रही है। मेरा अनुरोध है कि 15 के अंदर मय ब्याज के वर्ष 2016-17 का भुगतान सुनिश्चित किया जाए।'

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