Punjab Political News : कैप्टन अपनी पार्टी बनाते हैं तो कांग्रेस के 6 फीसदी वोटों का करेंगे नुकसान

Punjab Political News : अब इस बात पर नजर टिक गई कि कांग्रेस को छोड़ कैप्टन के साथ कौन कौन आ सकता है? इससे कांग्रेस को क्या नुकसान हो सकता है? जो वोटर कैप्टन की वजह से कांग्रेस से अलग होगा, वह किधर जा सकता है?

Update: 2021-10-20 04:05 GMT

(कैप्टन ने अगर किसान आंदोलन का हल निकलवा लिया तो कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं) file pic.

Punjab Political News : जनज्वार ब्यूरो। गर्मी जा रही है और गुलाबी ठंड ने दस्तक दे दी है। पंजाब की सियासी फिजा (Punjab Politics) में अभी गर्मी बरकरार है। यहां नए नए समीकरण बन और बिगड़ रहे है। अब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी बनाने की कोशिश तेज कर दी है।

अब इस बात पर नजर टिक गई कि कांग्रेस (Congress) को छोड़ कैप्टन के साथ कौन कौन आ सकता है? इससे कांग्रेस को क्या नुकसान हो सकता है? जो वोटर कैप्टन की वजह से कांग्रेस से अलग होगा, वह किधर जा सकता है?

पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले समाजसेवी और राजनीतिक समीक्षक दिलबाग सिंह बाली (Dilbar Singh Bali) ने बताया कि कैप्टन चार फीसदी से लेकर छह फीसदी तक कांग्रेस के वोटों का नुकसान कर सकते हैं। यह वोटर्स कांग्रेस से हट जाएगा।

हालांकि, इस बात की गारंटी नहीं कि यह वोट कैप्टन के साथ जाएगा। क्योंकि कैप्टन यदि भाजपा (Captain with BJP) के साथ गए तो उनका पंजाब में कुछ नहीं हो सकता। यह वोटर्स फिर आम आदमी पार्टी और अकाली दल में बंट सकता है।

अकाली दल (Akali Dal) में वोटर्स का कम अनुपात जाएगा। आम आदमी पार्टी में वोटर्स ज्यादा संख्या में जा सकते हैं। क्योंकि अकाली दल का राज पंजाब के मतदाता देख चुके हैं। आम आदमी पार्टी के पक्ष में माहौल बनता नजर आ रहा है।

किसान आंदोलन का हल निकलवा लिया तो आ सकते हैं किंगमेकर की भूमिका में

अब नजर आम आदमी पार्टी के साथ साथ कैप्टन के अगले कदम पर टिकी हुई है। देखना यह होगा कि वह भाजपा के साथ कितना नजदीक तक जाते हैं। यदि इस वक्त तीन कृषि कानूनों का मामला सुलटाए बिना वह भाजपा के नजदीक जाते है तो किसान कैप्टन के हाथ से छिटक सकते हैं। क्योंकि किसान आंदोलन पंजाब में अब सिर्फ आंदोलन नहीं रह गया, यह धर्म से जुड़ गया है।

सिख अपने धर्म को लेकर बहुत ही संवेदनशील है। इसलिए कैप्टन सोच समझ कर ही कोई कदम उठाया तो फायदे में रह सकते हैं। अन्यथा उनके लिए पंजाब में स्थिति और ज्यादा मुश्किल हो सकती है।

पंजाब के सीनियर पत्रकार सुखबीर सिंह चहल ने बताया कि कैप्टन कभी जल्दबाजी में नहीं रहते। वह सोच समझ कर कदम उठाते हैं। वह भाजपा के साथ जा सकते हैं, लेकिन इस शर्त पर कि तीन कृषि कानूनों का तार्किक हल निकले।

बीच का रास्ता चाहती है बीजेपी

भाजपा भी चाहती है कि कोई बीच का रास्ता निकल जाए। कृषि कानून इस तरह से निपट जाए कि भाजपा को इसका नुकसान न हो। लखीमपुर घटना के बाद यूपी चुनाव को लेकर भाजपा खासी चिंतित है। पार्टी की कोशिश है कि अब आंदोलन को कोई हल निकल जाए। बस शर्त यह है कि समझौता सम्मानजनक होना चाहिए। क्योंकि भाजपा यह संदेश नहीं देना चाहती कि वह पीछे हट गई है।

 दिक्कत यह है कि किसान आंदोलन के नेता लंबे समय से आंदोलन चला रहे हैं। वह अब पीछे हटने को तैयार नहीं है। किसान नेता राजनीति लाभ भी लेना चाह रहे हैं। इस तरह से वह इस मांग पर अड़े रह सकते है कि तीन कृषि कानून वापस लिए जाए। इसके साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी भी मिले। यह बड़ा पेंच है। क्योंकि सरकार इसे मानने की स्थिति में ही नहीं है।

पंजाब में चुनाव को देखते हुए यूं भी किसान थोड़े मुखर तेवर अपनाए हुए हैं। उन्हें पता है कि अब यदि कृषि कानूनों पर अब सरकार बात कर रही है तो इसके मायने क्या है? वह आसानी से किसी को इसका सियासी फायदा नहीं उठाने देंगे।

पंजाब मे यूं भी भाजपा की सियासी जमीन बेहद कमजोर है। यदि कैप्टन भाजपा के साथ आते हैं या ज्वाइन करते है तो इसका कोई फायदा नहीं होगा। यह हो सकता है कि भाजपा का एक आध वोट प्रतिशत बढ़ जाए। लेकिन वह किसी को हराने या जीताने के नजदीक नहीं पहुंच सकती।

इसलिए कैप्टन को भाजपा के नजदीक जाने का ज्यादा फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस के रणनीतिकार तो चाहते यह है कि कैप्टन भाजपा ज्वाइन कर ले। क्योंकि इस सूरत में कांग्रेस को नुकसान कम होगा।

लेकिन कैप्टन ने जिस तरह से अभी तक जो गतिविधियां की, इससे कांग्रेस की यह चाह पूरी होती नजर नहीं आ रही है। अब यदि कैप्टन अपनी पार्टी बनाते हैं तो यह कांग्रेस के लिए भी तनाव की बात हो सकती है।

कैप्टन पहले भी छोड़ चुके हैं कांग्रेस

पहला मौका नहीं है, जब अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी बना रहे है। इससे पहले उन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में कांग्रेस से नाता तोड़ चुके हैं। वह कुछ समय के लिए अकाली दल में रहे। फिर पार्टी से अलग होकर 1992 में उन्होंने अकाली दल पंथिक पार्टी बनाई। 1998 में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था।

बहरहाल कैप्टन भले ही इस वक्त थोड़े कमजोर नजर आ रहे हो। फिर भी पंजाब में उनकी भूमिका को काम आंकना सही नहीं होगा। इस चुनाव में वह किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं। क्योंकि जो सियासी सर्वे आ रहे हैं, वह भी इस ओर इशारा कर रहे हैं कि पंजाब में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा। इस तरह से कैप्टन तक बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं।

पत्रकार सुखबीर सिंह चहल कहते हैं कि अभी कैप्टन का वक्त गया नहीं है। वह वापसी कर सकते हैं। बड़ी बात तो यह है कि किसान उनकी बात मानते हैं, कांग्रेस के बड़े लीडर उनके संपर्क में हैं। दूसरे दलों के असंतुष्टों की नजर भी कैप्टन पर टिकी है। इस सब के बीच कैप्टन आज कमजोर नजर आ सकते हैं, लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे वह मजबूत हो सकते हैं। यहीं उनकी वापसी का तरीका भी है।

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