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राजनीति

Amarinder Singh Biography In Hindi : 52 साल के सियासी सफर में पहली बार खुद ही हार गए कैप्टन अमरिंदर सिंह

Janjwar Desk
1 Oct 2021 7:33 AM GMT
Amarinder Singh Biography In Hindi : 52 साल के सियासी सफर में पहली बार खुद ही हार गए कैप्टन अमरिंदर सिंह
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Amarinder Singh Biography In Hindi: कैप्टन का राजनीतिक करियर जनवरी 1980 में शुरु हुआ जब उन्हें सांसद नियुक्त किया गया लेकिन उन्होंने वर्ष 1984 में स्वर्ण मंदिर में सेना के घुसने के विरोध में कांग्रेस और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था....

Capt Amarinder Singh Biography In Hindi। अपने विरोधियों को कमजोर करके साइड लाइन करने में माहिर कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) 52 साल के राजनीतिक सफर में पहली बार खुद ही हार गए। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही कई कमजोरियां रहीं, जिनको मुद्दा बनाकर विरोधियों ने उनकी कुर्सी पर संकट खड़ा करने की पटकथा तैयार की। अकाली दल (Shiromani Akali Dal) के प्रति नरमी समेत बेअदबी केसों, नशाखोरी और अफसरशाही के राज में कांग्रेस विधायकों (Congress MLAs) की नाराजगी इस कदर बढ़ी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।

1963 में भारतीय सेना में हुए शामिल

अमरिंदर सिंह पटियाला के दिवंगत महाराजा यादविंदर सिंह (Yadvinder Singh) के बेटे हैं। लॉरेंस स्कूल सनावर और देहरादून स्थित दून स्कूल (Doon School) में प्रारंभिक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Acadamy), खडकवासला में जुलाई 1959 में दाखिला लिया और दिसंबर 1963 में वहां से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्हें 1963 में भारतीय सेना (Indian Army) में शामिल किया गया और दूसरी बटालियन सिख रेजिमेंट (Sikh Regiment) में तैनात किया गया। इसी रेजीमेंट में उनके पिता और दादा ने सेवाएं दी थी।

अमरिंदर ने फील्ड एरिया- भारत तिब्बत सीमा पर दो साल तक सेवाएं दी और उन्हें पश्चिमी कमान के जीओसी इन सी लेफ्टिनेंट जनरल हरबक्श सिंह (Harbaksh) का ऐड डि कैम्प नियुक्त किया गया था। सेना में उनका करियर छोटा रहा। उन्होंने उनके पिता को इटली (Italay) का राजदूत नियुक्त किए जाने के बाद 1965 की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया था क्योंकि घर पर उनकी आवश्यकता थी लेकिन वह पाकिस्तान (Pakistan) के साथ युद्ध छिड़ने के तत्काल बाद सेना में शामिल हो गए और उन्होंने युद्ध अभियानों में हिस्सा लिया। उन्होंने युद्ध (Indo Pak War) समाप्त होने के बाद 1966 की शुरुआत में फिर से इस्तीफा दे दिया।

राजनीतिक करियर की शुरुआत

उनका राजनीतिक करियर जनवरी 1980 में शुरु हुआ जब उन्हें सांसद नियुक्त किया गया लेकिन उन्होंने वर्ष 1984 में 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' (Operation Blue Star) के दौरान स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) में सेना के घुसने के विरोध में कांग्रेस और लोकसभा (Loksabha) से इस्तीफा दे दिया। अमरिंदर अगस्त 1985 में अकाली दल में शामिल हुए। इसके बाद उन्हें 1995 के चुनावों में अकाली दल ने लोंगोवाल की टिकट से पंजाब विधानसभा में चुना गया। वह सुरजीत सिंह बरनाला (Surjeet Singh Barnala) की सरकार में कृषि मंत्री रहे।

अमरिंदर ने पांच मई 1986 में स्वर्ण मंदिर में अर्द्धसैन्य बलों (Paramilitary Forces) के प्रवेश के खिलाफ कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने पंथिक अकाली दल का गठन किया जिसका बाद में 1997 में कांग्रेस में विलय हो गया। अमरिंदर में 1998 में पटियाला से कांग्रेस के टिकट पर संसदीय चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

अरुण जेटली को लाखों वोटों से हराया

उन्होंने कांग्रेस (Congress) की पंजाब इकाई के प्रमुख के रुप में 1999 से 2002 के बीच सेवाएं दीं। इसके बाद वह 2002 में पंजाब के मुख्यमंत्री (Punjab CM) बने और उन्होंने 2007 तक इस पद पर सेवाएं दी। भूमि हस्तांतरण मामले में अनियमितताओं के आरोपों को लेकर एक राज्य विधानसभा समिति ने सितंबर 2008 में उन्हें बर्खास्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में उन्हें राहत देते हुए उनके निष्कासन को असंवैधानिक करार दिया। वह 2013 तक फिर से कांग्रेस के राज्य प्रमुख रहे। वर्ष 2013 तक कांग्रेस कार्यकारी समिति में स्थायी रुप से आमंत्रित किए जाने वाले अमरिंदर ने अमृतसर से 2014 लोकसभा चुनाव जीता और भाजपा नेता अरुण जेटली को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से शिकस्त दी।

वर्ष 1998 में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस में एंट्री हुई तो पंजाब में पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्ठल (Rajinder Kaur Bhatthal) और शमशेर सिंह दूलो (Shamsher Singh Dulo) का दबदबा था। सबसे पहले कैप्टन ने दोनों को पंजाब की सियासत से खत्म किया। वर्ष 2002 में कांग्रेस ने कैप्टन के नेतृत्व में प्रचंड जीत हासिल की और पांच साल सरकार चलाई।

सिद्धू की एंट्री के बाद कमजोर हुए कैप्टन

2007 के बाद मोहिंदर सिंह केपी प्रधान बने तो कैप्टन ने उनको भी फेल कर दिया और संगठन में अपना दबदबा कायम रखा। प्रताप बाजवा हों या शमशेर सिंह दूलो या राजिंदर कौर भट्ठल या फिर केपी, कैप्टन ने किसी विरोधी को सर उठाने का मौका तक नहीं दिया। नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस में एंट्री के बाद कैप्टन दिन प्रतिदिन कमजोर होते चले गए। हुआ ऐसा कि उनका अपना कुनबा ही बिखर गया।

पंजाब में सियासत की धुरी माने जाने वाले किसानों (Farmers) के लिए कैप्टन हमेशा ही खड़े रहे। वर्ष 2002 में सरकार बनने के बाद बतौर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कई फैसले किसानों के हित में लिए। इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण फैसला नदियों से पानी के बंटवारे के मामले पर लिया। हालांकि 2007 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई, इसके बाद भी आलाकमान ने कैप्टन को दो बार प्रधान बनाकर अपना विश्वास दिखाया। कैप्टन ने पानी के मुद्दे में अपनी हाईकमान की परवाह न करते हुए पंजाब में विधानसभा में प्रस्ताव पास कर पंजाब के पानी की रक्षा की।

वर्तमान में पंजाब कांग्रेस के हालातों के लिए कैप्टन की दिल्ली में कमजोर पैरवी को माना जा रहा है। दिल्ली (Delhi) में कैप्टन के कमजोर होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि कैप्टन की पैरवी करने वाले कांग्रेसी दिग्गज अब नहीं रहे। कैप्टन को सबसे बड़ा नुकसान सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की मौत से हुआ।

शिरोमणि अकाली दल पर नरमी

वर्ष 2017 से पहले कैप्टन स्टेज पर अकाली दल को बुरी तरह से ललकारते थे। रेत, बजरी, केबल, ड्रग के मामलों में अकाली दल के नेताओं को अंदर करने की बात करने वाले कैप्टन सीएम बनने के बाद अकाली दल के नेताओं के प्रति काफी नरम हो गए। इतना ही नहीं, अकाली दल के कई चहेते अधिकारियों को उन्होंने फील्ड में महत्वपूर्ण कुर्सी पर बैठाकर रखा।

कैप्टन हमेशा संगठन पर हावी रहे और नेताओं को सिर नहीं उठाने दिया। प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar) भी कैप्टन से मिलने के लिए तरसते थे और कई बार उनको घंटों इंतजार करना पड़ता था। विधायक भी खुलकर बोलने लगे। पंजाब में अफसरशाही हावी होने के आरोप लगाए गए। इस पर कैप्टन को विधायकों और नेताओं से मुलाकात कर फोटो तक जारी करनी पड़े। कैप्टन सिसवां फार्म हाऊस में रहे और कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी काफी बन गयी और पंजाब में कैप्टन विरोधी हवा अचानक तेज हो गई। कैप्टन की जनता के बीच सक्रियता भी न के बराबर थी, जिस कारण आम जनता में यह संदेशा जा रहा था कि कैप्टन फार्म हाउस में बैठकर सरकार चलाते हैं।

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amarinder Singh) नशे व बेअदबी के मुद्दे पर पूरी तरह से घिर गए। कांग्रेस के तमाम नेता जनता के बीच जाकर असहज महसूस कर रहे थे। अगले कुछ माह में पंजाब में विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022) होने जा रहे थे, ऐसे में तमाम विधायक व संगठन के नेता असहज महसूस कर रहे थे। चुनावों से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुटका साहब की सौगंध खाकर कहा था कि वह नशे का सफाया पंजाब से कर देंगे। बेअदबी के मामलों में भी सरकार की अदालत से लेकर जनता के बीच खासी किरकिरी हुई।

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