Political News : चिराग के कारण JDU बन गई तीसरे नम्बर की पार्टी उनपर आरसीपी सिंह हुए मेहरबान, क्या है इनसाइड स्टोरी ?

Political News : केंद्रीय इस्पात मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति का पुनर्गठन किया गया है, इस समिति में कई नए चेहरों को शामिल किया गया है, इन्हीं में से एक चौंकाने वाला नाम है चिराग पासवान का..

Update: 2021-10-13 06:07 GMT

(नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच छतीस का आंकड़ा है लेकिन आरसीपी सिंह ने उन्हें कमिटी में जगह दे दी है )

Political News : जिन चिराग पासवान (Chirag Paswan) के कारण जेडीयू बिहार (Bihar) में तीसरे नम्बर की पार्टी बन गई, उन्हीं चिराग को पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (RCP Singh) ने अपने मंत्रालय की समिति में जगह दे दी है। केंद्रीय इस्पात मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति का पुनर्गठन किया गया है। इस समिति में कई नए चेहरों को शामिल किया गया है। इन्हीं में से एक चौंकाने वाला नाम है चिराग पासवान।

चिराग लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (Lok Janshakti Party) के अध्यक्ष हैं। हिंदी सलाहकार समिति (Hindi Salahakar Samiti) में नए चेहरों में चिराग पासवान का नाम आते ही यह यह चर्चा तेज हो गई कि जदयू के राजनीतिक दुश्मन होने के बावजूद भी जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने आखिर उन्हें अपने मंत्रालय की समिति में जगह क्यों दी है?

माना जाता है कि बिहार में पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Elections) में जेडीयू को चिराग पासवान की पार्टी के कारण खासा नुकसान हुआ था। साल 2015 के विधानसभा चुनावों में जीते 72 सीटों से घटकर जेडीयू महज 43 सीटों पर आ गया था। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण चिराग पासवान को माना गया।

चिराग ने एनडीए (NDA in Bihar) का हिस्सा रहते हुए भी विधानसभा चुनाव में उन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे, जो सीटें तालमेल के तहत एनडीए की ओर से जदयू (Janta Dal United) को मिलीं थीं। चिराग ने इन सीटों पर अपने उम्मीदवारों के पक्ष में धुंआधार प्रचार किया। चुनावी सभाओं में वे सीधे नीतीश कुमार के प्रति खूब हमलावर रहे और सरकार बनने पर उन्हें जेल भेजने के बयान तक दिए।

हालांकि, उन चुनावों में चिराग की पार्टी लोजपा को किसी सीट पर जीत तो नहीं मिली लेकिन उन्होंने लगभग ढाई दर्जन सीटों पर जदयू की हार जरूर सुनिश्चित कर दी। परिणाम यह हुआ कि जदयू महज 43 सीटों पर सिमटकर राज्य की तीसरे नम्बर की पार्टी बन गई। यह बात और रही कि नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए।

सियासी गलियारों में इस बात की खूब चर्चा होती है कि नीतीश कुमार इस एपिसोड को भूले नहीं हैं। स्वर्गीय रामविलास पासवान की पुण्यतिथि पर चिराग ने देश के तकरीबन सभी बड़े नेताओं को आमंत्रित किया। कई बड़े नेता कार्यक्रम में शामिल भी हुए लेकिन चिराग ने खुले तौर पर कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो जब उन्होंने निमंत्रित करने के लिए मुलाकात का वक्त मांगा तो उन्हें नहीं दिया गया।

आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार के बीच तालमेल गड़बड़ होने की खबरें भी इन दिनों लगातार सुर्खियां बन रहीं हैं। हालांकि, दोनों इस बात से इंकार करते रहे हैं। लेकिन आरसीपी के केंद्रीय मंत्री बनने के एपिसोड के दौरान जितनी बातें हुईं उनका इशारा साफ था। पार्टी में एक तरह से आरसीपी युग का अंत माना जा रहा है और नीतीश कुमार के खास ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी सौंप दी गई है। आरसीपी समर्थकों का कहना है कि उन्हें अब पार्टी की कमिटियों से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।

ऐसे में जिस चिराग की वजह से जदयू पहले नंबर की पार्टी से तीसरे नंबर की पार्टी बन गई उसके लिए नीतीश के केंद्रीय नेता और मंत्री आरसीपी सिंह की ओर से ऐसी दरियादिली क्यों दिखाई जा रही है, यह सवाल मौजूं बन जाता है। सियासी गलियारों में इस बात के अब कई निहितार्थ लगाए जा रहे हैं।

बता दें कि भारत सरकार द्वारा इस्पात मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति का पुनर्गठन करने के बाद इस्पात मंत्री हिंदी सलाहकार समिति के अध्यक्ष और इस्पात राज्य मंत्री उपाध्यक्ष हैं। इसमें बिहार के पांच लोग समिति के सदस्य बनाए गए हैं।

समिति में संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा लोकसभा से सांसद संजय सिंह और सुनील कुमार सोनी जबकि राज्यसभा से दिनेश चंद्र विमल भाई अनावाडिया और नरेश गुजराल को सदस्य बनाया गया है। संसदीय राजभाषा समिति द्वारा नामित सांसद चिराग पासवान और दिनेश चंद्र यादव भी समिति के सदस्य बनाए गए हैं। इस कमेटी में कुल 15 सदस्य, एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष बनाए गए हैं।

राज्य के सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि आरसीपी सिंह अब किसी भी बात की परवाह नहीं कर रहे। वे किसी की नाराजगी की भी चिंता नहीं कर रहे हैं। पार्टी में साइड किए गए अपने समर्थकों को वे इस्पात मंत्रालय से जुड़े समितियों आदि में एडजस्ट करने की कोशिश भी कर रहे हैं। हाल में इसके कई उदाहरण देखने को मिले हैं। लेकिन चिराग न तो उनकी पार्टी से जुड़े हैं, न समर्थकों में आते हैं। अलबत्ता चिराग तो जेडीयू और नीतीश कुमार के धुर विरोधी बनकर उभरे हैं।

फिर उन्हें क्यों मंत्रालय की कमिटी में जगह दी गई। जानकार इसके पीछे एक वजह ये बता रहे हैं कि अब आरसीपी सिंह इन सबसे ऊपर उठ चुके हैं और शायद आगे भी किसी की परवाह नहीं करने वाले। हालांकि, अभी इस मामले को लेकर न तो आरसीपी की प्रतिक्रिया आई है, न चिराग की। जदयू की ओर से भी फिलहाल कोई बयान नहीं आया है।

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