एक मुस्लिम जिसने उन्नाव में शीतला माता का मंदिर बनवाकर नफरत की राजनीति करने वालों को दिखाया आईना
मोहम्मद आरिफ की बहादुरी की तारीफ करनी पड़ेगी, जबकि देश में साम्प्रदायिक राजनीति मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक माहौल बनाकर, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना कर उनका मनोबल लगातार गिराने का काम कर रही है, मोहम्मद आरिफ ने बिना किसी गिला शिकवा के पूरे उत्साह के साथ एक पहल ली और जो बीड़ा उठाया था उसे पूरा करके दिखाया....
कृष्ण मुरारी यादव और संदीप पाण्डेय की टिप्पणी
Lucknow news : मोहम्मद आरिफ एक सुन्नी मुसलमान हैं, जो लखनऊ में भवन निर्माण के कार्य से जुड़े हुए हैं। अपनी पत्नी और आठ बच्चों के साथ दुबग्गा, लखनऊ में रहते हैं। मूलतः रहने वाले उन्नाव के शेखपुर वार्ड संख्या 2 के हैं। शेखपुर में 80 प्रतिशत हिन्दू हैं और 20 प्रतिशत मुस्लिम रहते हैं।
तीन वर्ष पहले की बात है। मोहल्ले में ही एक चबूतरा था जिस पर शीतला देवी की मूर्ति रखी हुई थी। चबूतरे के बगल में ही रहने वाला राजेन्द्र तिवारी का परिवार इसकी देखरेख करता था। चबूतरे पर स्थिति खस्ताहाल थी। कभी जानपर आकर बैठ जाते थे तो कभी कोई शराबी जुआरी भी आ जाते थे। एक पाल परिवार ने इस चबूतरे पर दावा ठोक दिया। मामला न्यायालय में चला गया।
तब मोहम्मद आरिफ ने एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि यदि दोनों परिवार विवाद खत्म कर दें तो वे चबूतरे के स्थान पर शीतला देवी का एक मंदिर बनवा देंगे। पहले राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि सोच कर बताएंगे, लेकिन उनके पुत्र ने कहा कि कोई सोचने की जरूरत नहीं, यदि मोहम्मद आरिफ मंदिर बनवा सकते हों तो बनवाएं। देखते ही देखते मंदिर बन गया। मंदिर बनने के बाद जब उसपर पत्थर लगाने का समय आया तो मोहम्मद आरिफ ने राजेन्द्र तिवारी से कहा कि वे अपना ही नाम लिखवा दें, उनका नाम लिखना ठीक नहीं होगा। किंतु राजेन्द्र तिवारी ने पहले अपना नाम लिखवाकर फिर मोहम्मद आरिफ का भी नाम लिखवाया। उसके बाद तिवारी परिवार के अन्य सदस्यों के भी नाम हैं। किंतु मुख्य बात यह है कि मंदिर पर लगे पत्थर में बनवाने वालों में मोहम्मद आरिफ का नाम है। पूरा मोहल्ला जानता है कि पैसा और सामग्री तो सारी मोहम्मद आरिफ ने ही लगाई है।
मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक पुरानी जीर्ण शीर्ण अवस्था में मस्जिद भी थी। मोहम्मद आरिफ ने अपने समुदाय से चंदा इकट्ठर कर मस्जिद का भी जीर्णोद्धार करा दिया। मोहल्ले से बाहर एक और मंदिर था। उसके लिए भी जब मोहम्मद आरिफ से चंदा मांगा गया तो उन्होंने एक ट्राली मोरंग और एक ट्राली गिट्टी दी।
अब मोहम्मद आरिफ ने एक बारात गृह भी बनवा दिया है। खास बात यह है कि इसे किसी भी धर्म अथवा जाति के परिवार को शादी कराने के लिए निःशुल्क दिया जाता है। साफ-सफाई का काम मोहम्मद आरिफ के परिवार के सदस्य करते हैं।
मोहम्मद आरिफ अपने गांव में हिन्दू मुस्लिम एकता की एक मिसाल बने हैं। जहां देश में नफरत फैलाने वाली राजनीति हावी है और पिछले 11 वर्षों में हिन्दू व मुस्लिम समुदायों के बीच नफरत की राजनीति के कारण दूरियां बढ़ी हैं, एक दूसरे के सामाजिक-धार्मिक कार्यक्रमों में लोगों ने आना-जाना बंद कर दिया है, वहीं एक इंसान ऐसा भी है जो दोंनों समुदायों के बीच एक मजबूत पुल का काम कर रहा है।
जब मोहम्मद आरिफ से पूछा गया कि अपने मंदिर बनाया तो क्या आप पर मुसलमान, जो मूर्ति पूजा को नहीं मानते हैं, यह सवाल नहीं उठाते कि मूर्ति पूजा के काम में सहयोग कर आपने अपने धर्म के सिद्धांत का उल्लंघन किया है? मोहम्मद आरिफ बड़ी तसल्ली से बताते हैं कि मैं कोई पूजा नहीं करने जा रहा और न ही किसी मुसलमान से कहने जा रहा हूं कि तुम मूर्ति की पूजा करो, लेकिन यदि हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा की जाती है तो मैंने अपने हिन्दू भाई-बहनों के लिए एक मंदिर बनवाया है जिसमें जाकर वे शीतला देवी की मूर्ति की पूजा कर सकते हैं।
मोहम्मद आरिफ की बहादुरी की तारीफ करनी पड़ेगी, जबकि देश में साम्प्रदायिक राजनीति मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक माहौल बनाकर, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना कर उनका मनोबल लगातार गिराने का काम कर रही है, मोहम्मद आरिफ ने बिना किसी गिला शिकवा के पूरे उत्साह के साथ एक पहल ली और जो बीड़ा उठाया था उसे पूरा करके दिखाया। देश में जो लोग साम्प्रदायिक सद्भावना के विचार में विश्वास रखते हैं, लेकिन हिन्दुत्ववादी ताकतों के आगे आत्मसमर्पण कर बैठ गए हैं उन्हें मोहम्मद आरिफ से प्रेरणा लेनी चाहिए। साम्प्रदायिक राजनीति का यही जवाब है कि हम साम्प्रदायिक सद्भावना का काम करते रहें। जिस तरह से पहले हिन्दू मुस्लिम मिलकर रहते थे, एक दूसरे के त्योहारों में आते-जाते थे, कोई भेदभाव नहीं करते थे, एक दूसरे के रहन सहन का सम्मान करते थे, दूसरे को मजबूर नहीं करते थे कि वह हमारे अनुसार ही जिए, उसी संस्कृति को जिंदा रखने की जरूरत है। अभी भी देश में साम्प्रदायिक सद्भावना के विचार को मानने वाले ज्यादा हैं और साम्प्रदायिक सोच रखने वाले कम। इंसान स्वाभाव से सद्भावना प्रेमी है और नफरत तो कृत्रिम और अल्पकालिक होती है।
मोहम्मद आरिफ की तरह हमें भी हिम्मत दिखानी पड़ेगी। जो सही काम है वह करने से पीछे नहीं हटना होगा और यदि कोई गलत कर रहा है तो उसे रोकना होगा। यदि किसी मुस्लिम या इसाई को क्रमशः मुस्लिम या इसाई होने के कारण परेशान किया जा रहा है तो हमें हस्तक्षेप करना चाहिए और निर्दोष व्यक्ति के साथ खड़ा होना चाहिए। अल्पसंख्क क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कैसे अपने ईश्वर की पूजा करते हैं यह सब उनके निजी मामले हैं जिसमें किसी अन्य को अथवा सरकार को दखल देने का कोई अधिकार नहीं। यदि कोई हिन्दू मूस्लिम आपस में शादी करना चाहते हैं तो यह उनका सांविधानिक व कानूनी अधिकार हैं। हिन्दुत्वादियों को मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों से शादी करने पर आपत्ति होती है। लेकिन कई जोड़े ऐसे भी मिलेंगे, जिसमें हिन्दू लड़के ने मुस्लिम लड़की से शादी की है। यह भी दो शादी करने वालों का निजी मामला है। डाॅ. राम मनोहर लोहिया में अपनी सप्त क्रांति में एक बिंदू निजता का अधिकार बताया है जिसका पालन होना चाहिए।
बल्कि हिन्दुत्ववादी हमें सांविधानिक आदर्शों से दूर ले जा रहे हैं जो अत्यंत खतरनाक है, क्योंकि वह लोकतंत्र को ही खत्म कर देगा। हमारा लोकतंत्र हमारे संविधान से ही चलता है। यदि संविधान खत्म होगा तो लेकतंत्र पंगु बन जाएगा। अतः संविधान को बचाना जरूरी है। मोहम्मद आरिफ जो काम कर रहे हैं वह संविधान में बंधुत्व के मूल्य को मजबूत करने वाला है।