एक पूर्व विधायक ने ईमानदारी से कुछ बातें कहीं हैं, क्या आप वक्त निकालकर पढ़ेंगे?

जब मेहनत और ईमानदारी से कमाई हुई पूंजी की जगह लूट और जातिवादी जोड़-तोड़ से इकट्ठी की गई पूंजी का राज हो जाता है तो संविधान, जुडिशरी, चुनाव, आयोग, यूनिवर्सिटी और मीडिया सबकुछ खोखले होने लगते हैं। क्या असल में यही नहीं हो रहा है?

Update: 2020-08-22 12:08 GMT

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

दिल्ली के पूर्व विधायक पंकज पुष्कर की टिप्पणी 

राजनीति को लेकर मेरी जो कुछ समझ और अनुभव है उसके आधार पर आपका एक महत्वपूर्ण संवाद करना चाहता हूं। हमारे देश में 90% जनता सच्ची, अमनपसंद, मेहनतकश लेकिन डरपोक है। देश के 10% लोग टुकड़खोर, पाखंडी, जातिवादी लेकिन दुस्साहसी हैं। सारी मौज-मस्ती, लूट-खसोट, भ्रष्टाचार और राज-पाट यही 10 फ़ीसदी लोग करते हैं। 90% जनता अपने छोटे-छोटे डर और लालच, मेहनत और मजदूरी, मंदिर और मस्जिद के साथ जीती-मरती रहती है।

ब्राह्मणवादी भाजपा का कुनबा अपने कारपोरेटी बनिया बिरादरों को देश की रेल, हवाई अड्डे, कंपनियां, जमीन और जंगल औने-पौने दाम में बेच कर अकूत दौलत इकट्ठी कर रहा है। क्या इस अकूत दौलत की ताकत से बाकी 90% के वोट, फेसबुक, टीवी चैनल, विधायक , जूडिशियरी और कालेज-यूनिवर्सिटी सब कुछ खरीदे-बेचे नहीं जा सकते हैं?

जब मेहनत और ईमानदारी से कमाई हुई पूंजी की जगह लूट और जातिवादी जोड़-तोड़ से इकट्ठी की गई पूंजी का राज हो जाता है तो संविधान, जुडिशरी, चुनाव, आयोग, यूनिवर्सिटी और मीडिया सबकुछ खोखले होने लगते हैं। क्या असल में यही नहीं हो रहा है?

लेकिन इसकी एक काट है। काट यह है कि ठीक-ठाक संख्या में आम आदमी अपने छोटे-छोटे डर, लालच, मजबूरी और आलस को छोड़ दें। मैं आपको ध्यान दिलाऊं कि अंग्रेजों के निर्दयी शासन के खिलाफ भी पूरे देश में केवल कुछ हजार लोग ही आजादी की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे। उतने लोग आज भी जगे हुए हैं। बस आपस में एक दूसरे का हाथ थामने की जरूरत है। देश की 90% जनता इस लूट-पाट में शामिल नहीं है। अपनी किसी छोटी-मोटी मजबूरी की वजह से इन1% जातिवादी लुटेरों का पाप अपने सिर क्यों लिया जाए।

आम आदमी, औरत और नौजवान अपनी ताकत से, अपनी समझ से इस पाखंडी ब्राहमणवादी व्यवस्था के बारे में अपने से खोजबीन करके सोशल मीडिया कैंपेन चला रहे हैं। बनियावादी लूट-खसोट की मजाक उड़ायी जा रही है। याद किजिए किसान आंदोलन। बूढ़े लड़ने लगे है। बालक सवाल करने लगे हैं। इस झूठ के महल के पाए तमाम मरम्मत के बाद भी लचक-मचक रहे हैं।

खासतौर से दलित, आदिवासी, बहुजन के अंदर संघर्ष और निर्माण की अदम्य ताकत है। अनेक समूहों में इतनी लगन और सूझबूझ है कि वे भरपूर संघर्षों के बीच भी भारत के संविधान को अमल में लाने वाली व्यवस्थाओं के ब्लूप्रिंट/नक्शे/प्रोटोटाइप साथ साथ बना रहे हैं।

आप और हम क्या कर सकते हैं? हमको-आपको सबसे पहले लोकल और नेशनल दोनों को समझना होगा। मीडिया, पुलिस, प्रशासन, जुडिशरी और भ्रष्ट कारपोरेटी मुनाफाखोरों के गठजोड़ को समझना पड़ेगा। चिड़िमार विरोधियों के जाल में फंसने से बचना होगा। बिना मतलब की बहसों में उलझने की जगह 'अपने ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ लगातार बात-बरताव करना होगा'। ठीक वैसे ही जैसे कभी बाबासाहब अंबेडकर, लोहिया और चौधरी चरण सिंह किया करते थे। जैसे बाद में कांशीराम जी और मुलायम सिंह यादव जी ने साइकिल लेकर गांव-गांव जाकर किया।

लूटेरे गठजोड़ को समझने के लिए एक उदाहरण देखें। 21 अगस्त 2020 को मेरठ में भाजपा के एक नेता सचिन गुप्ता एनसीईआरटी की किताबें फर्जी तरीके से छापते हुए रंगे हाथों पकड़े गए। मौके पर ही ₹35 करोड़ की किताबें बरामद की गईं। 

एक स्कूली बच्चा भी भविष्यवाणी कर सकता है कि इस मामले को दबा दिया जाएगा। एनसीईआरटी जैसी राष्ट्रीय महत्व की संस्था को बर्बाद करने का काम बीजेपी के नेता कर रहे हैं। भाजपा नेता लाला सचिन गुप्ता जी इस कांड में मुख्य अपराधी हैं। मामला आर्मी इंटेलिजेंस कोर के साथ साझे अभियान में खुल गया। नहीं तो मामला सामने ही नहीं आ पाता।

आश्चर्यजनक है कि खुल्लम-खुल्ला पकड़े जाने पर भी मुख्य अपराधी लाला सचिन गुप्ता पुलिस के सामने ही बीजेपी का झंडा लगी हुई क्रिटो गाड़ी में बैठ कर मौके से रवाना हो गया। बामन-बनिया-ठाकुर राज में उत्तर प्रदेश पुलिस और आर्मी इंटेलिजेंस कोर की अपराधी सचिन गुप्ता को रोकने की हिम्मत नहीं हुई।

इस मामले में क्या होगा? बहुत मुमकिन है कि यह मामला न केवल रफा-दफा कर दिया जाएगा बल्कि इसकी रिपोर्टिंग और चर्चा भी आपको देखने को न मिले। खासतौर से भाजपा और लाला सचिन गुप्ता जी का नाम रिपोर्टिंग से भी उड़ा दिया जाएगा।

याद कीजिए कि भाजपा में एक बार एक दलित बंगारू लक्ष्मण को अध्यक्ष बनाया गया। उन्हें ₹10 लाख की रिश्वत के नाम पर हमेशा के लिए बर्बाद कर दिया गया। आजादी के बाद से लगातार चल रहे चारा घोटाला में एकमात्र व्यक्ति जिसे जेल में बंद रखा गया है वे लालू प्रसाद यादव जी हैं। सभी मिश्रा, माल्या, मोदी सम्मानित हैं। लालूजी को चारा चोर कहा गया। उत्तर प्रदेश के भष्टाचार विरोधी मुहिम के अगुवा रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी को टोंटी चोर की उपमा दी गई। वाह मनुवादी मीडिया, वाह मनुपालिका।

हजारों करोड़ का लेनदेन करके पंडित नरसिम्हा राव से लेकर चायवाले बनिए तक की दसों सरकारें बनाई और गिराई गईं। लेकिन, बदनाम और बर्बाद किया गया शिबू सोरेन और मधु कोड़ा जैसे आदिवासी मुख्यमंत्रियों को। प्रखर विद्वान रतनलाल जी इसे जनेऊ लीला कहते हैं।

इस जनेऊ लीला की शिकायतों को आपस में करते रहने से कुछ नहीं होगा। मनुवादी गठजोड़ की काट निकालनी होगी। सवर्ण जातिवाद की अंतर्कथा को जानने वाले ईमानदार सवर्ण साथियों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। पुलिस, प्रशासन, न्यायपालिका, मीडिया, कॉलेज-यूनिवर्सिटी सब कुछ सवर्ण जातिवाद और भ्रष्टाचार में गहरे डूबा हुआ है। हमें एक ऐसे युवा राजनीतिक नेतृत्व का निर्माण करना है जो जातिवाद और भ्रष्टाचार से खुद भी मुक्त हो और व्यवस्था को भी कर सके।

सवर्ण समाज के अंदर भी बहुत-से इंसाफपसंद और जाति-विरोधी नौजवान हैं। दलित, बहुजन, आदिवासी और पसमांदा समाज के अंदर तो असीम ऊर्जा से भरे अनगिनत नौजवान छुपे हैं। इन सब को मिलना-मिलाना है। रणनीतिक तैयारी करनी है।

अपने माथे पर लिख लें कि यह देश किसी के बाप का नहीं हमारा-आपका है। यह पूरा देश आपको ही चलाना है। अपने देश को केवल आप-हम ही सजा-संवार सकते हैं। वे नहीं जिनके बच्चे अमरीका में पढ़ रहे हैं और जिनके खाते स्विट्जरलैंड में हैं। इस देश में सच्चे लोगों का राज लाना है। 10 परसेंट लुटेरे लोगों को भी कानून सम्मत सजा देकर माफ कर देना है। केवल देश की लूटी हुई संपत्ति को वापस लेकर देश को दे देना है।

इस बहुत बड़ी जिम्मेदारी के लिए आपको-हमको जीतोड़, अथक मेहनत करनी है। हमें मेहनत और सच्चाई का राज लाना है, चाहें इसके लिए संघर्ष और निर्माण की कितनी भी लंबी यात्रा करनी पड़े।

संघर्ष और निर्माण की इस यात्रा को हम हंसते-खेलते, झूमते-गाते हुए करेंगे। साथी सूरज येंगड़े अपनी पुस्तक 'कास्ट मैटर्स' में ध्यान दिलाते हैं कि सदियों के अन्याय और शोषण के बीच भी दलित, आदिवासी और शूद्र ने प्यार करना और बांटना, हंसना और गीत गाना बंद नहीं किया है। दलित, आदिवासी और बहुजन की जीवन से प्यार करने की, शोषण से लड़ने लेकिन शोषक को माफ कर देने की अटूट और बेजोड़ ताकत से ही भारतीयता और मनुष्यता का नया रास्ता निकलेगा।

अब आप एक नई नेतृत्वकारी भूमिका के लिए तैयार हो जाइए। आप चाहें किसी भी राजनीतिक पार्टी या संगठन में रहें लेकिन उसको जातिवादी शोषण, आर्थिक अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक औजार की तरह इस्तेमाल कीजिए। जी हां, दूसरों के हाथों में औजार नहीं बनिए। देश को तमाम औजार बनाना और चलाना दलित-बहुजन ने ही सिखाया है। आज बदलाव के लिए जरूरी राजनीतिक या स्ट्रेटेजिक औजार बनाने और चलाने का काम भी इंसाफपसंद सवर्ण को साथ में लेकर दलित-बहुजन को करना होगा। साथ ही मीडिया, टेक्नोलॉजी, नौकरशाही, सीबीआई, ईडी और मनुपालिका को नाथना और झेलना सीखना होगा।

पार्टियों में काम जरूर करें लेकिन ब्राह्मणवादी नेतृत्व की जय-जयकार और चापलूसी की जगह, युवा-बहुजन नेतृत्व को आगे बढ़ाना होगा। जनता को गुलाम और नेताओं को मालिक समझने की भूल कभी नहीं हो। जिस पार्टी में भी रहें उसे ही संविधान के रास्ते पर बढ़ने के लिए प्रेरित और मजबूर करें।

बाबासाहेब ने पूना पैक्ट का विरोध क्यों किया था? वे चाहते थे कि बहुजन प्रतिनिधि विभिन्न पार्टियों के वर्चस्ववादी नेतृत्व के सामने दुम हिलाने वाले ना बनें। वे चमचे न बने। बल्कि, मजबूत रीढ़ वाले केवल आम जनता के और संविधान के एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले नेता बनें। आपको-हमको-सबको कैसा नेता बनना है? हमें बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों को समझने वाले बनना है और ऐसे ही नेता बनाने हैं।

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