अररिया में बेटी ने अकेले ही अपनी मां का किया था अंतिम संस्कार, मृत्यु भोज खाने पहुँच गये 150 लोग

एक तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से लड़ने के लिये कोई आधारभूत ढांचा तैयार नही किया गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं की ग्रामीणों तक कोई पहुँच नही है। दूसरी तरफ कोरोना संक्रमण को न्यौता देने वाले इन मृत्युभोजों पर कोई पाबंदी नही लगाई जा रही है।

Update: 2021-05-27 04:49 GMT

अररिया में बेटी ने अकेले ही अपनी मां का किया था अंतिम संस्कार, मृत्यु भोज खाने पहुँच गये 150 लोग

जनज्वार ब्यूरो, दिल्ली। घटना अररिया जिले के विशनपुर पंचायत के मधुलता गांव की है। मधुलता गांव के डॉक्टर वीरेन मेहता की कोरोना संक्रमित होने के कारण मौत हो गयी थी। डॉक्टर की मौत के 4 दिन बाद ही उनकी पत्नी प्रियंका ने भी दम तोड़ दिया था। प्रियंका की मौत के बाद गांव में कोरोना का डर ऐसा फैला कि कोई भी व्यक्ति प्रियंका के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुआ। प्रियंका की बड़ी बेटी ने अकेले ही पीपीई किट पहनकर शव को दफना दिया था। यह वीडियो सोशल मीडिया पर भी काफी वायरल हुआ था।

मृत्यु भोज खाने पहुँच गये 150 लोग

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार प्रियंका की मौत के 10 दिन बाद वीरेन और प्रियंका का श्राद्ध कर्म आयोजित किया गया। इस श्राद्ध कर्म में गांव के ही 150 लोग भोजन खाने पहुंचे। इस भोज में कई कोरोना संक्रमित भी शामिल हुए थे। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार इस गांव में 35 संक्रमित हैं। सर्दी-खांसी के भी कई मरीज हैं। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीणों ने बताया कि गांव में करीब 800 से 900 लोग मृत्यु भोज खाने आते हैं। ग्रामीणों के अनुसार डॉक्टर साहब के बच्चो को संबल देने के लिये गांव के 150 लोग भोज खाने पहुँचे थे।

गांवों में टीकाकरण का बुरा हाल-

गांव के उप मुखिया प्रतिनिधि के अनुसार 15 दिनों में 2 ग्रामीण चिकित्सक सहित चार लोगों की मौत कोरोना से हुई है। इसके अलावा अन्य बीमारियों से ग्रसित 3 बुजुर्गों की मौत सांस संबंधी परेशानी के चलते हुई है। 9000 वोटर वाले विशनपुर पंचायत के मुखिया सरोज के द्वारा भास्कर को दी गयी जानकारी के अनुसार अभी तक मात्र 200 लोगों को ही वैक्सीन लगी है। ग्रामीणों ने गांव में हर एक व्यक्ति की कोरोना जाँच की मांग की थी लेकिन ग्रामीणों के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार अब तक 10 से 20 फ़ीसदी ग्रामीणों की ही जांच हो पाई है।

एक तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से लड़ने के लिये कोई आधारभूत ढांचा तैयार नही किया गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं की ग्रामीणों तक कोई पहुँच नही है। दूसरी तरफ कोरोना संक्रमण को न्यौता देने वाले इन मृत्युभोजों पर कोई पाबंदी नही लगाई जा रही है। इस तरह की सामाजिक कुरूतियों के कारण गांवो में कोरोना संक्रमण और गम्भीर हालात पैदा कर रहा है। 

मृत्यु भोज बन्द होना चाहिए

यह समाज की विडंबना ही है कि लाशों को उठाने वाला कोई नहीं है और भोज में सैंकड़ों लोग पहुँच जाते हैं। मृत्यु भोज करना सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से उचित नही है। महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि जिस परिवार में मृत्यु जैसी विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी में तन, मन, धन से सहयोग करें परंतु 12 वीं या 13वीं पर मृतक भोज का पुरजोर बहिष्कार करें। यह भोज सामाजिक दृष्टि से भी अनुचित है। ऐसे समय में जब बीमारी के कारण असामयिक मृत्यु हो रही हैं, लोग अपनो को खो रहे हैं, इलाज में लोगों का इतना ज्यादा पैसा खर्च हो रहा है यहां तक कि आर्थिक रूप से कमजोर लोग कर्ज में डूब रहे हैं, अपनी संपत्ति को बेच रहे हैं ऐसे समय में मृत्यु भोज करना और उसमें शामिल होना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। इस तरह की मानव विरोधी प्रथाएं बंद होनी ही चाहिए।

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