मोदी सरकार का अल्पसंख्यकों को कुचलने का घोषित एजेंडा है 'न्यू इंडिया', अंग्रेजों को भी पछाड़ा

पुलिस और योगी प्रदेश की व्यवस्था ने तो अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया है, अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाया जरूर, पर शायद ही कभी हाथरस जैसा सलूक अंग्रेज अधिकारियों और पुलिस ने किया हो....

Update: 2020-10-01 07:26 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

प्रधानमंत्री मोदी जिस भारत को कुचलकर न्यू भारत की नीव रख चुके हैं, उसमें अल्पसंख्यकों के साथ कैसा सलूक किया जाएगा इसका खाका यहां की व्यवस्था ने 30 सितम्बर को खींच दिया। इस तारीख के शुरू होते ही हाथरस से पुलिसिया और व्यवस्था के आतंक की खबर आती है और फिर दोपहर तक बाबरी मस्जिद का फैसला, जिसके बारे में सबको पहले से पता था, आता है। दोनों घटनाओं से पूरे देश को या फिर दुनिया को शायद ही आश्चर्य हुआ हो, क्योंकि दोनों ही घटनाएं न्यू इंडिया की पहचान बन चुकी हैं। जिस गुजरात मॉडल की बड़े जोर-शोर से चर्चा की जाती है, यह उसका परिचय है।

पुलिस और योगी प्रदेश की व्यवस्था ने तो अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया है। अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाया जरूर, पर शायद ही कभी हाथरस जैसा सलूक अंग्रेज अधिकारियों और पुलिस ने किया हो। योगी प्रदेश की पुलिस का तो अदना सा सिपाही भी जालियांवाला बाग में गोली चलाने का आदेश देने वाले जनरल डायर को भी पछाड़ने में लगा है। दूसरी तरफ जब, एक परिवार का सबकुछ ख़त्म हो गया उसके घंटों बाद प्रधानमंत्री मोदी की नींद खुली। गृह मंत्री जिसे केवल कंगना रानौत ही देश की बेटी नजर आती है, खामोश हैं।

दूसरी तरफ बाबरी मस्जिद मामले में जांच एजेंसियों और न्याय व्यवस्था ने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया कि देश में जांच घटना की नहीं की जाती बल्कि सरकार को खुश करने के लिए की जाती है, और न्याय व्यवस्था भी बार बार यही साबित करती जा रही है। यह एक ऐसी घटना थी, जिसका उदाहरण पूरे स्वतंत्र भारत के इतिहास में इकलौता था। यह समाज के लिए भोपाल के यूनियन कार्बाइड से मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव की टक्कर का मामला था। भोपाल में एक गैस से करोड़ों प्रभावित हुए थे और अयोध्या के बाबरी काण्ड से सामाजिक द्वेष जैसा राक्षस पैदा हुआ, जिसका असर समाज पर आज तक है और आगे भी रहेगा।

Full View

पूरे 28 वर्षों तक एक ऐसी जांच चलती रही जिसके न्यायाधीश महोदय को कोई सबूत ही नहीं मिले। बेशर्मी की कोर कसर इस एक वाक्य ने पूरी कर दी, वहां मौजूद बड़े नेता तो मस्जिद तोड़ने वालों को रोक रहे थे। उमा भारती अनेक वर्षों से लगभग सभी समाचार चैनलों पर जाकर स्वयं बताती रहीं कि हां, हमने ऐसा किया है, पर जज साहब को कोई सबूत नहीं मिले। अब तो जज साहब को देश को बताना चाहिए कि एक बिना सबूत के मामले में उन्हें इतने वर्ष क्यों लगे?

बाबरी मस्जिद को तोड़ना देश में किसी इमारत की लिंचिंग की घटना थी, तोड़ कर एक विशेष रुझान वाले समूह को लिंचिंग की आदत पड़ गई है और नेताओं को लिंचिंग को भड़काने की। इमारत की लिंचिंग के बाद सरकार की नज़रों में प्रतिष्ठित यह समूह जनता की खुले आम लिंचिंग करता जा रहा है। जैसे पुलिस में निर्दोष के तथाकथित एनकाउंटर के बाद आउट-ऑफ़-टर्न प्रमोशन पक्का हो जाता है, वैसे ही लिंचिंग के बाद राजनीति में प्रवेश का द्वार खुल जाता है।

हाथरस के मामले में समाज, प्रशासन, पुलिस, अस्पताल प्रबंधन और यहां तक कि कुख्यात महिला आयोग की अध्यक्ष तक केवल झूठ और अफवाह फैलाने में व्यस्त हैं। इन्ही सारे लोगों को अपशब्दों की झड़ी लगाने वाली कंगना रानौत अबला नजर आ रही थी और अब सरकारी सुरक्षा कवच में वीरांगना नजर आ रही है। राजनीति में लोग गिरते तो पहले भी थे, पर राजनीति में अंधे होते हुए नेता पहली बार नजर आ रहे हैं। संजय सिंह जब योगी के उच्च-जाति प्रेम की चर्चा करते हैं तब खलनायक बना दिए जाते हैं। पर, इसका जीवंत उदाहरण बार-बार योगी अपने साम्राज्य में निहायत ही बेशर्मी से पेश करते रहते हैं। प्रधानमंत्री ने भी हाथरस की घटना के बाद साबित कर दिया कि उनकी सरकार को आम-जन से कोई मतलब नहीं है, और अल्पसंख्यकों से तो कतई नहीं। उनका एजेंडा स्पष्ट है, यदि इस एजेंडा पर कभी धूल जमती भी है, तो उसे तुरंत साफ़ कर दिया जाता है।

हमेशा आपदा को अवसर में बदलने वाली कुख्यात मीडिया को फिर से एक मसाला मिल गया जिससे अगले कुछ दिन गुजर जायेंगें। अब इस मीडिया में बताया जाएगा कि ना तो हाथरस में उस लड़की से सामूहिक बलात्कार किया गया और ना ही उसे पीटा गया। इस समय देश एक भयानक स्थिति में पहुँच गया है, जहां इस सरकार के सामने हिटलर और ट्रम्प भी बौने पड़ने लगे हैं। लोकतंत्र के इतने घिनौने स्वरुप को पूरी दुनिया ने कभी नहीं देखा होगा।

योगी का प्रशासन और पुलिस लगातार बता रही है कि रेप नहीं हुआ, उस लड़की की जीभ नहीं कटी, उसकी रीढ़ की हड्डी नहीं टूटी। जब कुछ हुआ ही नहीं तो फिर किस आधार पर 25 लाख रुपये और नौकरी दी जा रही है। एक नुख्यामंत्री जो 14 सितम्बर से लेकर 29 सितम्बर तक किसी घटना पर चुप्पी साधे रखते हैं, अचानक मौत और फिर जबरन अंतिम संकार के बाद अचानक जागते हैं और परिवार का मुँह बंद रखने की कीमत लगा देते हैं। शायद यही राम-राज्य की परंपरा हो। विश्व पटल पर न्यू इंडिया पधार चुका है, जिसमें अल्पसंख्यकों का दमन सरकार का घोषित एजेंडा है और प्राथमिकता भी।  

Tags:    

Similar News