Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

Alo Rani Sarkar: बीजेपी और तृणमूल से चुनाव लड़ चुकीं निकलीं बांग्लादेशी, सोया रहा चुनाव आयोग?

Janjwar Desk
22 May 2022 5:38 PM GMT
Alo Rani Sarkar: बीजेपी और तृणमूल से चुनाव लड़ चुकीं निकलीं बांग्लादेशी, सोया रहा चुनाव आयोग?
x

Alo Rani Sarkar: बीजेपी और तृणमूल से चुनाव लड़ चुकीं निकलीं बांग्लादेशी, सोया रहा चुनाव आयोग?

Alo Rani Sarkar: बॉलीवुड की एक हिट फिल्म में फर्जी एनकाउंटर मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष का वकील एक ऐसा गवाह पेश करता है, जिसके पास आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी जैसे सारे प्रमाण होते हुए भी आखिर में वह पाकिस्तान का एजेंट निकलता है, जो एक साधु के वेश में रह रहा था।

सौमित्र रॉय की रिपोर्ट

Alo Rani Sarkar: बॉलीवुड की एक हिट फिल्म में फर्जी एनकाउंटर मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष का वकील एक ऐसा गवाह पेश करता है, जिसके पास आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी जैसे सारे प्रमाण होते हुए भी आखिर में वह पाकिस्तान का एजेंट निकलता है, जो एक साधु के वेश में रह रहा था। ठीक ऐसा ही एक मामला बंगाल में भी सामने आया है। फर्क सिर्फ इतना है कि आरोपी महिला बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस दोनों के टिकट पर दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उन्हें बांग्लादेश का नागरिक करार दिया।

बात हो रही है तृणमूल नेता आलो रानी सरकार की, जो 2016 में बीजेपी के टिकट से और 2021 में तृणमूल के टिकट से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। शुक्रवार को हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद बीजेपी कहीं बचाव में तो कहीं तृणमूल पर ही हमलावर दिखी, लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं दे पाई कि आखिर बांग्लादेश में पैदा हुई एक महिला के पास आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी जैसे प्रमाण पत्र कैसे आ गए और बिना छानबीन के उन्हें चुनाव लड़ने का टिकट कैसे मिल गया ?

कोर्ट ने क्या कहा ?

एक साल तक चली अदालती कार्यवाही के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने साफ कहा कि आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी जैसे प्रमाण पत्र होने का यह मतलब नहीं है कि कोई भारत का नागरिक माना जाएगा। आलो रानी सरकार का जन्म बांग्लादेश में हुआ और वे बचपन में अपने चाचा के साथ भारत आईं और यही रहने लगीं। उनका नाम अभी भी बांग्लादेश की मतदाता सूची में शामिल हैं और इस नाते वे एक विदेशी नागरिक हैं। आलो रानी के वकील का कहना था कि उनके मुवक्किल का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में 1969 में हुआ। 1980 में आलो रानी की शादी बांग्लादेशी नागरिक डॉ. हरेंद्रनाथ सरकार से हुई, जो बाद में टूट गई और वे भारत वापस आ गईं। 2012 में आलो रानी ने गलती से अपना नाम बांग्लादेश की मतदाता सूची में जुड़वा लिया था, जिसे हटाने के लिए उन्होंने आवेदन किया था।

बीजेपी की मान्यता क्यों न रद्द हो ?

हाईकोर्ट के इस खुलासे के बाद आलो रानी की वह चुनावी याचिका खारिज हो गई है, जिसमें उन्होंने 2021 के विधानसभा चुनाव में बंगाव दक्षिण सीट से बीजेपी के स्वपन मजूमदार के चुनाव जीतने को चुनौती दी थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि बीजेपी ने आलो रानी को बीजपुर सीट से 2016 का चुनाव किस आधार पर लड़वाया था, जबकि हाईकोर्ट का कहना है कि दोहरी नागरिकता रखने वाला चुनाव नहीं लड़ सकता और आलो रानी पहला चुनाव लड़ने के समय भी बांग्लादेशी नागरिक ही थीं। इस मसले पर अब बीजेपी और तृणमूल दोनों ही आपस में एक-दूसरे दल की मान्यता रद्द करने की मांग करने लगे हैं।

बीजेपी के टिकट पर 2016 के विधानसभा चुनाव में उतरीं आलोरानी तृणमूल के शुभ्रांशु रॉय से हार गई थीं। उसके अगले ही साल जब शुभ्रांशु रॉय के पिता मुकुल रॉय बीजेपी में शामिल हो गए और आलो रानी सरकार ने पाला बदलकर तृणमूल का दामन थाम लिया।

जुबानी जंग से अब क्या फायदा ?

पश्चिम बंगाल बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य कहते हैं- हां हमने आलो रानी को 2016 के चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन तब हमें उनकी नागरिकता के बारे में पता नहीं था। वहीं बीजेपी के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने ट्वीट कर तृणमूल कांग्रेस की मान्यता रद्द करने की ही मांग कर दी। तृणमूल नेता और ममता बनर्जी सरकार में मंत्री तापस रॉय का कहना है कि जब बीजेपी ने खुद आलो रानी को 2016 में टिकट दिया था तो वे तृणमूल पर बांग्लादेशी नागरिक को चुनाव लड़वाने का आरोप कैसे लगा सकते हैं ?

सियासी बहस में अधूरे छूटते सवाल

भारत में अवैध रूप से रह रहे नागरिकों की पहचान के लिए लाए गए नागरिकता संशोधन कानून के बरक्स सबसे पहला सवाल तो यही पैदा होता है कि देश में कोई विदेशी नागरिक, जिसका जन्म पड़ोसी राज्य में हुआ है, भारत में रहते हुए पासपोर्ट समेत वे सारे दस्तावेज कैसे हासिल कर लेता है, जिन पर केवल भारतीय नागरिकों का अधिकार है ? इससे भी बड़ा सवाल चुनाव आयोग की छानबीन प्रक्रिया पर भी उठता है, क्योंकि कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि 2021 के विधानसभा चुनाव में नामांकन दाखिल करते समय भी आलो रानी सरकार बांग्लादेशी नागरिक थीं। फिर उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति कैसे मिली? और वह भी एक नहीं, बल्कि दो बार ?

लेकिन सियासी शोर-शराबे के बीच ये सवाल जिस तरह से दब रहे हैं, उनसे भारत के वास्तविक नागरिकों की पहचान पर भी बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है, जो यही मानते हैं कि आधार, वोटर आईडी और पासपोर्ट जैसे कागज ही उनकी नागरिकता साबित करते हैं।

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story

    विविध