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जनज्वार विशेष

नये भारत की पुरानी इमारत हुमायूँ के मकबरे में आप क्या इतिहास बताएंगे ये सरकार तय करेगी, असिस्टेंट कजर्वेटर ने कर डाला दावा

Janjwar Desk
31 Jan 2024 7:03 PM IST
नये भारत की पुरानी इमारत हुमायूँ के मकबरे में आप क्या इतिहास बताएंगे ये सरकार तय करेगी, असिस्टेंट कजर्वेटर ने कर डाला दावा
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आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के असिस्टेंट कंजर्वेटर कार्की ने भी वही बात दोहराई जो उमेश ने कही थी कि यदि आप गाइड नहीं हैं तो आप इतिहास के बारे में कोई बात विदेशियों को नहीं बता सकते....

अपने विदेशी मित्रों के साथ हुमायूं के मकबरे में घूमने पहुंचे पत्रकार विवेक कुमार से जानिये उनकी आपबीती कि किस तरह लाइसेंसी और गैर लाइसेंसी गाइड के नाम पर आरकोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के कर्मचारी दे रहे भ्रष्टाचार को बढ़ावा...

Humayun Tomb : '...सर वो एक्चुअली आप हिस्ट्री के बारे में बात कर रहे थे न, उसी से हमारे एमटीएस उमेश को शक हुआ कि कहीं आप गाइड तो नहीं।'

'अच्छा, और अगर मैं गाइड हूँ ही तो क्या?'

‘तो सर आप किसी भी विदेशी से हिस्ट्री के बारे में बात नहीं कर सकते...’ हुमायूँ के मकबरे के असिस्टेंट कंजर्वेटर राजेश कार्की ने कहा। नए भारत के पुराने मकबरे हुमायूँ के मकबरे में ये नया कानून कब लागू हो गया, मुझे समझ ही नहीं आया। जो करने के लिए इंदिरा गांधी को देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी, और जिस दिल की बात कहते मोदी सरकार व आरएसएस की फिलहाल हिम्मत नहीं हो रही, वो बात अपने दफ्तर में बैठे इस सरकारी अधिकारी ने दांत में फंसे गुटके के दानों को जीभ से ढूँढ-ढूँढकर निकालते हुए ऐसे ही कह दी। है तो ये नया भारत ही।

26 जनवरी की परेड के मुख्य अतिथि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जयपुर में रोड शो करवाया और फिर आमेर फोर्ट व जंतर-मंतर के दर्शन कराये। ऐतिहासिक काल से राजनीतिक विदेशी भारत की जेब काटने ही आता रहा है और काट भी लेता है। वहीं आम भारतवासी रेलवे स्टेशन और ऐतिहासिक धरोहरों के बाहर ऑटो, दुकान में फालतू पैसा लेकर या मंदिरों में आने वाले विदेशी सैलानियों को लाल धागा बांधकर थोड़े अधिक पैसे वसूल कर सोचता है, उसने अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत कर ली। पर वह भूल जाता है कि इस क्रम में उसने अपनी साख गंवा दी। पहले अपनी साख आम आदमी ही गँवाता था, पर अब यही काम पहले से अपनी साख गंवा चुकी सरकार की संस्थाओं ने व्यवस्थित रूप से संभाल लिया है, जिसका फर्स्ट हैंड एक्सपीरिएंस मैंने और मेरे तीन विदेशी दोस्तों ने किया।

11 जनवरी की सुबह फ्रांस से अपनी माँ के साथ आई मेरी दोस्त ऐनिक और पूर्वी अटलांटिक कोस्ट पर स्थित अफ्रीकी देश कैमरुन से आई लियो ने मुझे लगभग ताना मारते हुए कहा कि मैं उनके साथ आज तक किसी ऐतिहासिक स्थल पर नहीं गया। बैठे-बैठे इतिहास की कहानी बेशक सुनाता रहता हूँ, पर कभी जाकर नहीं बताया। आज जबकि रात को वे जाने वाली हैं तो कम से कम मैं एक जगह तो उनको दिखाऊं। अपनी साख बचाने के लिए और इतिहास के मुताबिक समृद्ध जगह के नाम पर दिल्ली में मुझे हुमायूँ का मकबरा सबसे उचित स्थान लगा।

11 बजे हम चारों वहाँ पहुंचे तो पाया कि हुमायूँ के मकबरे के बाहर होटल और एम्पोरियम वालों की भीड़ मुझे गाइड समझकर अपने ठीये पर बुलाने को आतुर है। इसके बदले वे मुझे कुछ कमीशन भी ऑफर करते रहे। विनम्र भाव से मैं सबको मना करता रहा। टिकट काउन्टर पर 600 रुपयों के हिसाब से तीन टिकट विदेशियों के और भारतीय के लिए 40 रुपये की टिकट लेकर अंदर जाने का रुख किया ही था कि दर्जनों गाइड अपनी सेवा देने के लिए उतारू हो गए। टालने के लिए मेरी दोस्त ऐनिक ने सबको शुक्रिया करते हुए कहा कि विवेक ही हमारा गाइड है।

इसके बाद हम मकबरे के अंदर आ गए और मकबरे से जुड़े तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक काल खंडों को समझाने के लिए मैं मुगलों के इतिहास से शुरू किया।

अभी शेरशाह सूरी और हुमायूँ को निबटाकर कुछ सांस ले ही रहा था कि अचानक मेरी नज़र मकबरे के मुख्य द्वार पर लगे प्रधानमंत्री मोदी के सेल्फ़ी पॉइंट वाले कट-आउट पर पड़ी। नीचे लिखा था कि ‘यह है नया भारत’। थोड़ा विस्मित भाव से लियो ने पूछा “who is this fellow and what is this new India stands for’? मैंने बताया कि ये हमारे प्रधानमंत्री हैं, जो पुरानी इमारतों के आगे आजकल अपनी तस्वीर लगा कर नया भारत बताते हैं। वैसे नए भारत में तो काफी कुछ नया है पर मकबरे में नया क्या है ये हमे मकबरे के अंदर जाकर पता चला।

बाहर हम जिस गाइड नाम की भीड़ से पीछा छुड़ाकर अंदर आए, उनका एक रहनुमा भीतर भी टकरा गया और दबी आवाज में पूछा, ‘गाइड? मैंने जवाब दिए बिना आगे का रुख किया। थोड़ा अजीब लगा कि अंदर तो ये नहीं होना चाहिए था। पीछे मुड़कर उस आदमी को देखा तो सफेद कपड़ों पर काली जैकेट पहले उसने एक आइकार्ड भी लटकाया हुआ था। मुझे लगा शायद लाइसेन्स होल्डर गाइड हो, इसलिए पूछा हो।

अपने गौरवमयी इतिहास के ज्ञान को बघारते हुए अब मैंने मकबरे के सदर्भ में शाहजहाँ के बेटे दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच हुए युद्ध और उसके परिणाम की चर्चा कर ही रहा था कि वही सफेद कपड़े वाले आदमी ने गौरवमयी इतिहास की जगह शर्मिंदगी से भरे वर्तमान के दर्शन करवा दिए। वो मेरे पास आया और बोला अपना गाइड लाइसेंस दिखाओ। मैंने कहा मैं गाइड नहीं हूँ। उसने तुरंत मेरी विदेशी दोस्त से पूछा कि क्या ये आपके गाइड हैं? 25 साला ऐनिक ने बात को टालने के लिए कह दिया हाँ, पर इसमें क्या दिक्कत है? इतनी देर में मुझे माजरा समझ आ गया और मैंने उस आदमी को अपने स्वभाव के विपरीत मुस्कुराते हुए कहा कि मैं जानता हूँ कि वो क्या करने यहाँ आये हैं, इसलिए कृपया करके आप अब चले जाओ, पर उसने अपना आइकार्ड दिखाते हुए विदेशियों को बताया कि वे एएसआई (आरकोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) का कर्मचारी है और उसका यह काम है कि वो विदेशियों को किसी भी फ्रॉड गाइड के चक्कर में पड़ने से बचाए। इसलिए बताइए कि आपने इस आदमी को गाइड के लिए कितने पैसे दिए हैं? इस पर मेरे दोस्तों ने कहा कि आपका बहुत शुक्रिया पर विवेक हमारा दोस्त है और हमारी ही जिद से वो हमारे साथ आया है। पेशे से जज होते हुए भी 40 वर्षीय लियो लगभग डरे होने की मुद्रा में ही उस आदमी से बात कर रही थी, जो कि मुझे नागवारा गुजरा।

मैंने अपने दोस्तों को चुप रहने की सलाह देने के बाद उस आदमी से गुस्से में कहा कि हाँ ठीक है मैं हूँ गाइड, तो अब क्या? अपना सा मुंह लिए वो सोचकर बोला कि तो फिर तुमको बाहर जाना होगा या फिर तुम इनसे इतिहास के बारे में बात नहीं कर सकते। ऐसा सुनकर मैं अवाक रह गया कि चोरी और दलाली में आदमी इतना डूब जाता है कि क्या बोल रहा है वह भी नहीं समझ पाता। मैंने कहा दिखाओ वो आदेश जिसमे ऐसा लिखा है, तो उसने ऐसा आदेश ऑफिस में होने की बात कही और निकल गया। क्योंकि बात अब मौलिक अधिकारों के हनन तक आ गई थी तो मैंने 1857 के विद्रोह की कहानी, जो कि मकबरे का तीसरा चरण था, को थोड़ी देर के लिए होल्ड पर डाला।

दोस्तों को फोटो खींचने और बगीचे का आनंद लेने की सलाह देकर मैंने अपने विद्रोह की पताका उठाई और उस आदमी की तरफ लपक लिया। मुझे आता देख वो दायें—बाएं होने का प्रयास करने लगा, पर मैंने उसे पकड़ लिया और कहा कि अब मुझे वो आदेश दिखाए जहां मैं इतिहास की बात नहीं कर सकता, ऐसा लिखा है। वो टाल-मटोल करने लगा और वहाँ से गायब हो गया। थोड़ा दायें-बाएं देखने के बाद मैंने वहाँ खड़े गार्ड से चीफ कंजर्वेटर का दफ्तर पूछा और उसकी बताई जगह पर पहुंचा।

गार्ड की बताई जगह पर असिस्टेंट कंजर्वेटर राजेश कार्की मिले। मेरे आने से पहले ही वो आदमी जिसका नाम उमेश जो कि एमटीएस के पद (जैसा कि बताया गया) पर तैनात है, वहाँ पहले से सेटिंग के मुताबिक राजेश को अपडेट दे चुका था। मैंने भी जब सारा वाकया राजेश कार्की को बताया तो वे कहने लगे कि उसका अधिकार और ड्यूटी दोनों है कि वो देखे कि कहीं कोई फ्रॉड गाइड तो नहीं है। मैंने पूछा कि जब हमने उमेश को बता दिया कि मैं गाइड नहीं हूँ बल्कि हम दोस्त हैं तो फिर क्यों उमेश हमें परेशान करता रहा? और यदि मैं गाइड हूँ भी तो भी क्या प्रावधान हैं कि आप इस प्रकार का व्यवहार करें? कार्की ने भी वही बात दोहराई जो उमेश ने कही थी कि यदि आप गाइड नहीं हैं तो आप इतिहास के बारे में कोई बात विदेशियों को नहीं बता सकते। ये सुनते ही मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और मैंने कार्की को इस बात को लिखित में देने या ऐसा आदेश दिखाने के लिए कहा।

कार्की को आगाह करते हुए मैंने कहा कि एएसआई कर्मी के रूप में दलाली करने वाले एक चोर को आप जिस बेशर्मी से डिफेंड करने की कोशिश कर रहे हैं वो शर्मनाक है। यहाँ से आगे जो भी आप कहेंगे वो सोच समझ कर कहना, क्योंकि मैं पेशे से एक पत्रकार हूँ और ये सब बतौर रिपोर्ट मैं आपके डायरेक्टर को भेजूँगा। कार्की थोड़े सहम से गए। मैंने पूछा कि वो कौन सा गाइड है जिसे उमेश ने मुझे ऑफर किया था? क्या हुमायूँ का मकबरा खुद गाइड देता है? अगर देता है तो किस रेट से? अगर नहीं तो तो उमेश ने क्यों मुझे ये ऑफर दिया? क्यों इतने सारे लोगों में उमेश ने मुझे ही रोका और मेरा लाइसेंस दिखाने को कहा? और अगर लाइसेंस नहीं है तो क्या प्रावधान है? इनमें से किसी भी सवाल का जवाब देने के बजाय अपनी घबरायी सूरत में कार्की ने कहा कि ये सब तो मुझे भी नहीं पता, पर अब जब आपने ये सवाल उठा दिए हैं तो हम भी भविष्य के लिए जान जाएंगे कि ऐसे मामले में क्या करना चाहिए।

कार्की बस अपनी जान बचाने के लिए चुप्पी साधे रहे, क्योंकि उनके पास बचने का तार्किक रास्ता था नहीं। मैंने उन्हे यह बताने के लिए कि वे नंगे हो चुके हैं, बताया कि लाइसेंस और गैर लाइसेंस गाइड का अंतर बस यह है कि लाइसेंसधारी को टिकट लेने की जरूरत नहीं है, जबकि बिना लाइसेंस के किसी भी व्यक्ति को टिकट लेनी है जो कि मेरे पास भी थी। आप लाइसेंस न होने की सूरत में मेरी टिकट मांग सकते थे, जो कि पहले ही दो स्थानों पर दिखाई जा चुकी थी और अपना तथाकथित कर्तव्यनिर्वाहन कर सकते थे।

इसके बाद कार्की से पेपर लेकर मैंने अपनी शिकायत लिखित में देते हुए उसे मोहर करने और डायरी करने को कहा। दोनों ही काम न करने की असमर्थता जताते हुए वे टालते रहे, पर ज्यादा देर ऐसा कर नहीं सके वे। जाते-जाते मैंने उन्हे बताया कि कार्की जी जो बात आपने कही कि मैं क्या बात करूंगा और क्या नहीं ये आप तय करेंगे, ऐसा कहने कि हिम्मत अभी तक न आरएसएस की हुई न सरकार की और न ही तालिबान कभी आधिकारिक रूप से ऐसा कह पाया है। वे बस सर हिलाते रहे और किसी तरह मुसीबत जाए, का जाप करते रहे।

कार्की के दफ्तर से बाहर निकलते ही मैंने पाया कि मकबरे के बाहर खड़े कुछ लड़के जो खुद को गाइड बता रहे थे, वे उमेश के पैरों को छूकर गुरुजी के सम्बोधन के अपने मेहमानों को लेकर आगे बढ़ रहे थे। बाहर आकर जांच पड़ताल की तो मालूम चला कि अधिकतर लड़के बिना लाइसेंस वाले ही गाइड हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक युवक जो वहाँ गाइड का काम करता है, ने बताया कि गुरु जी (उमेश) के मार्फत अंदर जाने वाले सभी बिना लाइसेंस वाले गाइडों को टूरिस्ट से तय राशि में से कुछ पैसे देने पड़ते हैं। कितने पैसे? इस पर उसने कहा ये तय नहीं है पर सब देते हैं। कोई नया लड़का या गाइड आने पर अंदर एमटीएस उसे पकड़ता है तो उसे बहुत कुूछ देना पड़ता है और अधिकतर दे ही देते हैं। इस बात से मुझे समझ आ गया कि क्यों उमेश ने मेरी दोस्त से यह पूछा कि उन्होंने मुझे कितने पैसे दिए हैं। दिए गए पैसों के हिसाब से ही वो अपना कट मुझसे वसूलता।

शिकायत पत्र को दर्ज करवा कर डायरी करवाने के बाद आज तक कोई खोज खबर विभाग की तरफ से नहीं ली गई है। डीजी मोनुमेन्ट टी. जे. अलोन साहब से लेकर किसी भी फोन नंबर को कोई उठाने वाला तक नहीं मिला आज तक। खैर, विदेशियों ने देखा कि कैसे 1857 की क्रांति में आखिरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र के बेटों को इसी हुमायूँ के मकबरे से गिरफ्तार कर मौत के घाट उतारा गया। उस गौरवशाली इतिहास के सफर से आज के तथाकथित नए भारत की शुरुआत हुई, जो अब वहाँ पहुँच गया है, जहां अतिथि देवो भव: से अतिथि लूटो...का मार्ग प्रशस्त होने लगा है।

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