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चुनावी पड़ताल 2019

झारखंड चुनावों में कितना मायने रखेगा सरयू फैक्टर, कितना गड़बड़ायेगा भाजपा का वोट का गणित

Prema Negi
22 Dec 2019 2:08 PM GMT
झारखंड चुनावों में कितना मायने रखेगा सरयू फैक्टर, कितना गड़बड़ायेगा भाजपा का वोट का गणित
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जब भाजपा सरयू राय को टिकट देने में देरी कर रही थी, तभी उन्होंने इस बात को भांपकर पार्टी नेतृत्व को खुलेआम कह दिया था कि पार्टी अब उनके नाम पर विचार न करे और वे भाजपा के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ेंगे...

रांची से सुधांशु की रिपोर्ट

चुनावी मतगणना से ठीक पहले झारखंड के विपक्षी दलों को मतगणना केंद्र में भाजपा के द्वारा गड़बड़ी किसी प्रकार की गड़बड़ी किये जाने की आशंका भी सता रही है। ऐसे में सभी दल अपने कार्यकर्ताओं को सतर्क रहने की सलाह देते दिख रहे हैं। गौर करने की बात है कि कुछ दिनों पूर्व भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे सरयू राय भी भाजपा की इसी तरह की साजिशों की ओर इशारा कर चुके हैं। इसके बाद बैग्लुरु से जांच के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम भी झारखंड आयी और जांच-पड़ताल के बाद राज्य सरकार को इस बारे में क्लीनचिट दे दी गयी थी।

बावजूद इसके सरयू इस बारे में एक बड़ी साजिश के मुतल्लिक इशारा कर चुके हैं। उन्होंने तकनीकी विशेषज्ञों की टीम की रांची के एक बड़े होटल में हुई खातिरदारी और विशेष तवज्जो के मामले में प्रेस कांफ्रेंस में खुलासा किया है। सरयू की बातों को हल्के में लेने की गलती शायद ही कोई कर सकता है। ऐसे में राज्य की राजनीतिक फिजा में मतगणना के ठीक पहले कई तरह की अफवाहों का बाजार गर्म होने लगा है।

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समें कोई दो राय नहीं कि झारखंड की चुनावी फिजा में इस बार रघुवर सरकार में मंत्री रहे सरयू राय ने एक सनसनी तो पैदा कर ही दी थी। अंतिम चरण के 20 दिसंबर को संथाल में हुए मतदान के कुछ दिनों पूर्व से ही राय इस क्षेत्र में कैंप कर रहे थे। इससे महागठबंधन की भी बांछें खिली हुई दिखी। अंतिम चरण में राज्य के संथालपरगना क्षेत्र की कई महत्वपूर्ण सीटों पर चुनाव हुआ।

समें हेमंत सोरेन के अलावा महागठबंधन के कई दिग्गज सियासतदानों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी थी। हेमंत को विपक्ष ने मुख्यमंत्री पद के तौर पर प्रोजेक्ट कर रखा है। उन्हीं के नेतृत्व में इस बार सूबे में झामुमो, भाजपा और राजद राज्य में भाजपा से लोहा लेने के लिए दो-दो हाथ कर रहे हैं। संथाल वैसे भी झामुमो का पुराना गढ़ रहा है। इस बार भी संथाल के अपने गढ़ को कायम रखने और भाजपा को करारी शिकस्त देने के लिए महागठबंधन कोई कोर-कसर छोड़ने के मूड में नहीं था।

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से में सरयू राय उसके लिए तुरुप का पत्ता साबित हुए। सरयू पर हाल ही में रांची में जमीन हड़पने का आरोप एक महिला ने लगाया था। इस मामले को महिला आयोग के पास ले जाया गया था। जनज्वार से बातचीत के दौरान राय ने साफ तौर पर कहा था कि जिस तरह उन्होंने हाल के दिनों में भाजपा के खेमे में हलचल पैदा कर दिया है, उससे पार्टी में हड़कंप की स्थिति है। इसी के चलते दुर्भावना से ग्रसित होकर भाजपा के शीर्ष स्तर के नेतागण उसके खिलाफ साजिश कर रहे हैं और उनको जबर्दस्ती किसी मामले में फंसाने की कोशिश की जा रही है।

रयू के मुताबिक, रांची के नामकुम क्षेत्र में जिस महिला की 86 डिसमिल जमीन उनके द्वारा हड़पने की बातें की जा रही है, उसे कुल पांच लोगों ने आज से अठारह साल पहले खरीदा था। बाद में उन्होंने आपसी विचार-विमर्श और सहमति के आधार पर दूसरे लोगों की जमीनें खरीद ली थीं। इसमें कोई जोर-जबर्दस्ती या असहमति वाली बात नहीं थी। मामले को महिला आयोग के पास जाने वाले मामले को लेकर भी सरयू राय ने शिकायतकर्ता की खिंचाई की है।

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वे बेबाकी से कहते हैं कि चूंकि यह मामला राजस्व से जुड़ा है, इसीलिए इसे महिला आयोग के पास ले जाने का कोई तुक ही नहीं बनता। बकौल सरयू, अगर शिकायतकर्ता महिला को किसी तरह की कोई शिकायत दर्ज करनी थी, तो उन लोगों के खिलाफ दर्ज करनी चाहिए, जिनसे उन्होंने जमीन खरीदी है। ऐसे में साफ तौर पर यह राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित मामला प्रतीत होता है।

राज्य महिला आयोग की चेयरपर्सन कल्याणी शरण के मुख्यमंत्री के करीबी होने और उनके द्वारा जमशेदपुर पूर्व सीट पर मुख्यमंत्री रघुवर दास के पक्ष में चुनाव प्रचार करने को भी सरयू पूरे मामले से जुड़ा हुआ बता रहे हैं। इशारों में इसे सरयू राय सरकार प्रायोजित मामला बता रहे हैं। दरअसल सरयू राय की मुख्यमंत्री से अदावत सूबे के लोगों के लिए कोई दबी-छुपी बात नहीं रही है। जब जमशेदपुर पश्चिम से सरयू का टिकट भाजपा ने आखिरी वक्त पर काफी ना-नुकुर करते हुए काटने की घोषणा की थी, उसी वक्त ऐसे कयासों को बल मिला था कि खुद मुख्यमंत्री उनके खिलाफ हैं और टिकट काटने में उनकी अहम भूमिका रही है।

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वैसे सरयू को इस बात का भान काफी पहले से ही हो चला था कि उनके खिलाफ किसी षड्यंत्र को मूर्त रूप दिया जा सकता है। जब भाजपा उनको टिकट देने में देरी कर रही थी, तभी उन्होंने इस बात को भांपकर पार्टी नेतृत्व को खुलेआम कह दिया था कि पार्टी अब उनके नाम पर विचार न करे और वे भाजपा के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ेंगे।

न्होंने जमशेदपुर पश्चिम के अलावा जमशेदपुर पूर्व से भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। इस सीट पर मुख्यमंत्री रघुवर दास लंबे समय से बतौर विधायक निर्वाचित होते आये हैं। लेकिन बाद में राय ने अपना फैसला बदलते हुए सिर्फ मुख्यमंत्री को ही उनकी सीट पर चुनौती देने का फैसला लिया। इससे इस सीट पर पसोपेश में पड़े पार्टी कार्यकर्ता दो खेमों में बंट गये।

राय ने राज्य की कई दूसरी सीटों पर भी कुछ उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार कर भाजपा के खेमे में खलबली पैदा करने की कोशिश की। रोमांच की बात यह है कि हेमंत सोरेन ने जमशेदपुर पूर्व सीट पर कांग्रेस का प्रत्याशी होने के बावजूद सरयू का खुलेआम समर्थन करने का ऐलान कर दिया।

जसू प्रमुख सुदेश महतो ने भी उनके पक्ष में बयान देकर भाजपा को असहज करने का काम किया। कुछ दिनों पूर्व सरयू राय के रांची एयरपोर्ट पर हेमंत सोरेन के साथ गलबहिया वाली तस्वीर सूबे के कई अखबारों में प्रमुखता के साथ छपी। इसके कुछ समय बाद सरयू ने हेमंत के पक्ष में राज्य की उपराजधानी कही जाने वाली दुमका और बरहेट सीट से प्रचार करने का ऐलान कर भाजपा को परेशान कर दिया।

रयू संथाल में भाजपा के स्थानीय नेतृत्व के खिलाफ खूब आग उगलते देखे गये। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में भी कई मोर्चों पर कहा कि भले ही प्रधानमंत्री उनको अपना मित्र कहते फिरते थे, लेकिन घटनाक्रम यह बताने के लिए काफी है कि उनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फर्क है। सरयू ने अपनी सभाओं में मुख्यमंत्री रघुवर दास के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ भी काफी कुछ कहा।

जाहिर है कि विपक्षी महागठबंधन को इससे अच्छा मसाला मिला। राय भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार रहे हैं और वे रघुवर सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री भी थे। इस मंत्रालय में उनके काम की तारीफ विपक्षी भी करते आये हैं। उनकी पहचान धीर-गंभीर नेता और राज्य की राजनीति के एक महत्वपूर्ण चेहरे के तौर पर रही है। बेबाकी के अलावा उनकी बेदाग छवि भी रही है।

विभाजित बिहार से लेकर झारखंड में भी भ्रष्टाचार के कई अहम मामलों को उजागर करने के मामले में उनकी अहम भूमिका रही। उनकी बातों को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता। ऐसे में राज्य की राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों के अलावा आम लोग भी आपसी बातचीत में मतगणना के ठीक पहल भाजपा को उनसे होने वाले नुकसान का आकलन करने में लग गये हैं।

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