- Home
- /
- चुनावी पड़ताल 2019
- /
- संथाल परगना पर टिकी...
संथाल परगना पर टिकी हैं सभी पार्टियों के बड़े नेताओं की नजरें!
संथाल परगना में हेमंत को चारों ओर से घेरने के लिए रघुवर और बाबूलाल दोनों एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वजह साफ है। हेमंत को पटखनी देकर जहां महागठबंधन को तगड़ी चुनौती दी जा सकती है, वहीं दूसरी ओर झामुमो को संथाल में परास्त कर उसकी ताकत को कुंद किया जा सकता है...
रांची से अनिमेष बागची
जनज्वार। राज्य में अंतिम चरण के कल 20 दिसंबर को होने वाले चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। भले ही मुख्यमंत्री रघुवर दास संथाल परगना की किसी भी सीट से बतौर भाजपा उम्मीदवार न लड़ रहें हो, लेकिन क्षेत्र में रघुवर बनाम हेमंत के बीच यहां की लड़ाई इन दोनों के दरम्यान मूंछों की लड़ाई के तौर पर चर्चित हो रही है।
रघुवर दास काफी समय से ही संथाल में अपनी नजरें गड़ाये हुए हैं। समय-समय पर संथाल को राज्य सरकार की ओर से सौगातें देना रघुवर सरकार की प्राथमिकताओं में षुमार रहा। यह क्षेत्र झारखंड मुक्ति मोर्चा के गढ़ के तौर पर चर्चित रहा है और महागठबंधन में मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किये गये हेमंत सोरेन यहां की दो सीटों, दुमका और बरहेट से चुनाव लड़ रहे हैं।
साल 2014 में भी वे इन्हीं दो सीटों से चुनाव लड़े थे, जिसमें बरहेट में उनको जीत मिली, जबकि दुमका में भाजपा की लुईस मरांडी ने उनको शिकस्त दी थी। लुईस को इसका ईनाम रघुवर दास की सरकार में मंत्री के तौर पर भी मिला था। दुमका में इस बार जहां लुईस ही मैदान में हैं, वहीं बरहेट में इस बार भाजपा ने अनुभवी नेता सिमोन मालतो को टिकट दिया है।
निश्चित तौर पर झामुमो का इस क्षेत्र में वर्चस्व साफ नजर आता है, लेकिन इसके बाद से स्थिति बदली और भाजपा भी इस क्षेत्र की चुनावी जंग में तीसमारखां के तौर पर उभरी। इसके बाद राज्य में हुए सभी चुनावों में कभी भाजपा, तो कभी झामुमो का पलड़ा भारी रहा।
जब बाबूलाल मरांडी भाजपा में थे, तो संथाल में उन्होंने भाजपा की साख जमाने में काफी मशक्कत की थी। बाद में भाजपा से अलग होने के बाद बाबूलाल ने यहां अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को खड़ा करने का भरसक प्रयास किया है। वे संथाल क्षेत्र से ही आते हैं। यहां की सभी सीटों के गणित के बारे में बाबूलाल को अच्छी समझ है। झारखंड मुक्ति मोर्चा से उनके व्यक्तिगत टकराव के पीछे भी यही तथ्य काम कर रहा है। भाजपा के अलावा बाबूलाल झामुमो के वर्चस्व को संथाल परगना में चुनौती देने में सक्षम हैं। झामुमो से उनके खटराग के पीछे यह एक बड़ा मसला है।
संथाल परगना में हेमंत को चारों ओर से घेरने के लिए रघुवर और बाबूलाल दोनों एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वजह साफ है। हेमंत को पटखनी देकर जहां महागठबंधन को तगड़ी चुनौती दी जा सकती है, वहीं दूसरी ओर झामुमो को संथाल में परास्त कर उसकी ताकत को कुंद किया जा सकता है। झामुमो को भी इस बात की पूरी समझ है। ऐसे में सभी अपना पूरा जोर लगाने में लगे हैं। हेमंत सोरेन कहते हैं, दिल्ली से भाजपा की पूरी फौज संथाल परगना के चुनावी रण में उतर चुकी है। ऐसा लगता है मानो केंद्र सरकार ने यहां अपना डेरा ही डाल दिया है।
इस बार यहां कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, भूपेश बघेल, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे दिग्गजों को चुनाव प्रचार में देखा गया। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन ने पार्टी के प्रचार की कमान संभाली। शिबू सोरेन जनसभाओं में दिख जरूर रहे हैं, लेकिन उनकी सक्रियता पहले के मुकाबले अब काफी कम हो चुकी है।
बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते शिबू सोरेन को कई परेशानियां हैं। वे अगर बोलते भी हैं, तो इसकी समय सीमा काफी कम होती है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य इस बारे में बताते हैं कि शिबू की उपस्थिति ही श्रोताओं में जोश संचार करने का काम करती है। वे जनप्रिय नेता हैं। लोग उनको सुनने और देखने के लिए एकत्रित होते हैं। कई दशकों से जनता के बीच उनकी जो छवि है, वह अब भी जस की तस बनी हुई है। भले ही वे सभाओं में बोलें अथवा न बोलें, लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे बस उनको देखना चाहते हैं।
झारखंड विकास मोर्चा की ओर से संथाल में भी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ही इसके स्टार प्रचारक हैं। वे यहां एक दिन में चार से पांच सभाओं तक संबोधित कर चुके हैं। पिछले दो चुनावों में बाबूलाल मरांडी की पार्टी को संथाल से दो-दो सीटें मिली थीं। लेकिन साल 2014 के चुनाव के बाद उनका एक विधायक दल बदल कर भाजपा में चला गया। ऐसे में मौजूदा समय में पोड़ैयाहाट से प्रदीप यादव ही उनकी पार्टी में हैं। प्रदीप बाबूलाल के काफी विश्वस्त सिपहसालार माने जाते हैं। हाल तक बाबूलाल के साथ उनके मतभेदों की खबरों ने खासी सुर्खियां बटोरी थीं और उनके पार्टी छोड़ने की अटकलें जोरों पर थीं, लेकिन प्रदीप बाबूलाल के खेमे से टस से मस नहीं हुए।
5वें चरण की कुल सोलह सीटों में से छह पर झामुमो का कब्जा है। दूसरी ओर छह सीटें भाजपा के पास हैं। कांग्रेस के पास तीन और झाविमो के पास एक सीट है। प्रत्येक चुनाव की तरह ही इस बार भी यहां भाजपा और झामुमो में कड़ी टक्कर दिखायी दे रही है, लेकिन बाबूलाल मरांडी की पार्टी सभी सीटों पर होनेवाले मुकाबलों को तिकोणीय बनाने के लिए पूरा जोर लगा रही है। इस बार आजसू भी चुनावी मैदान में है। आजसू की भी कई सीटों पर चुनौती है। भाजपा के दिग्गज रहे ताला मरांडी को इस बार आजसू ने गले लगा लिया है। वे आजसू के टिकट पर बोरियो से चुनावी मैदान में ताल ठोंककर खड़े हैं।
संथाल परगना का इतिहास कई सीटों पर नजदीकी चुनावी परिणामों वाला रहा है। पिछले बार के चुनाव में तो राजमहल सीट से भाजपा के अनंत ओझा ने 702 और बोरियो से इसी पार्टी के ताला मरांडी ने महज 712 वोटों से अपने नजदीकी प्रत्याशियों पर जीत हासिल किया था। इस चुनाव में संथाल परगना की 16 सीटों में से 11 पर हार-जीत के अंतर में वोटों का प्रतिशत 10 फीसदी से भी कम रहा था।
क्षेत्र में वाम दल अब हाशिये पर दिख रहे हैं। गौर करने की बात है कि झारखंड बनने के बाद से हुए चुनावों में संथाल से वाम दल अपना खाता तक खोल नहीं पाये हैं। इस दरम्यान राष्ट्रीय जनता दल इस क्षेत्र में कभी एक, तो कभी दो सीटें जीतकर अपनी साख बचाने में कामयाब होता आया था, हालांकि पिछले बार वर्ष 2014 के चुनाव में यहां से राजद को किसी भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली है। इस बार राजद महागठबंधन के बैनर तले चुनावी मैदान में है। राजद के संजय यादव गोड्डा से चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले बार की तरह इस बार भी उनका मुकाबला भाजपा के अमित मंडल से होगा। अमित पिछले चुनाव में यहां से जीते थे।
जामा में इस बार पिछले चुनाव में झामुमो के टिकट से जीत चुकीं सीता सोरेन हालांकि फिर से मैदान में हैं, लेकिन पिछले दफे काफी कम मतों से पराजित हुए भाजपा के सुरेश मुर्मू इस बार अपनी पुरानी गलतियों को सुधारने की फिराक में लगे हैं। आजसू की स्टेफी टेरेसा मुर्मू और झाविमो के अर्जुन मरांडी भी रेस में हैं।
अल्पसंख्यक बहुल पाकुड़ में कांग्रेस के आलमगीर आलम के वोट बैंक में झाविमो के कमरुद्दीन अंसारी और आजसू के अकील अख्तर जगड़ी सेंध लगा रहे हैं। बीच से भाजपा के बेनी गुप्ता अपना रास्ता निकालने की फिराक में हैं। दूसरी ओर जामताड़ा में भाजपा के बीरेंद्र मंडल के सामने भाजपा से नाराज पुराने भाजपायी रहे विष्णु भैया ने अपनी पत्नी चमेली देवी को आजसू के टिकट से चुनाव मैदान में उतार दिया है। इससे भाजपा के वोट बैंक में सेंध लग रहा है। कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी इस सीट से फिर से विधायक बनने की जुगत में हैं।
महेशपुर विधानसभा क्षेत्र से झामुमो के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे स्टीफन मरांडी पिछली बार की तरह इस बार भी जीतने की कोशिश में हैं। इस बार भाजपा ने उनके सामने मिस्त्री सोरेन को उतारा है। मुकाबले को आजसू के सुफल मरांडी और झाविमो के कषवधन हेम्ब्रोम चतुष्कोणीय बना रहे हैं।