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चुनावी पड़ताल 2019

चुनावी सभाओं के बीच बिगड़ते बोलों से चढ़ता सियासी पारा

Prema Negi
19 Dec 2019 1:22 PM IST
चुनावी सभाओं के बीच बिगड़ते बोलों से चढ़ता सियासी पारा
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झारखंड में चुनाव से काफी पहले से राजनेताओं के दरम्यान तल्ख शब्दों के प्रयोग ने चुनावी तापमान को रखा है बढ़ाकर, मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी जोहार जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान कांग्रेस को चोट्टा और चिरकुट जैसे शब्दों से नवाज चुके हैं, तो उसके राहुल गांधी और अब हेमंत सोरेन अपने बिगड़े बोलों के लिए ट्रोल...

रांची से अनिमेश बागची की रिपोर्ट

झारखंड के गोड्डा जिले में राहुल गांधी की एक चुनावी सभा के दौरान की गयी टिप्पणी जहां राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गयी थी, वहीं हेमंत सोरेन द्वारा भाजपा नेताओं पर गेरुआ वस्त्र पहनकर बहू-बेटियों की इज्जत लूटने वाली बात ने राज्य में सियासी भूकंप ला दिया है। हेमंत सोरेन ने झारखंड में चुनाव प्रचार कर रहे योगी आदित्यनाथ को जमकर लताड़ लगाते हुए कहा था कि गेरूआ वस्त्र पहने भाजपाई शादी नहीं करते मगर रेप जरूर करते हैं।

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले राहुल गांधी मेक इन इंडिया की तर्ज पर रेप इन इंडिया शब्द का इस्तेमाल अपनी चुनावी सभा के दौरान करके विवादों में आ चुके हैं। इसके लिए भाजपा ने उन्हें कटघरे में खड़ा किया था। रांची से दिल्ली तक यह मामला सुर्खियों में रहा। अब हेमंत के बयानों ने इसी कड़ी में आग में घी डालने का काम कर दिया है।

भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के अलावा प्रदेश भाजपा के आला नेताओं समेत भाजपा के तमाम नेता-कार्यकर्ता अपने चुनावी दौरों के दौरान राहुल की इस टिप्पणी के लिए जमकर लानत-मलामत करने से नहीं चूके। अब हेमंत पर भी चुनाव आयोग से शिकायत दर्ज की गयी है। पार्टी ने चुनाव आयोग को दिये गये अपने आवेदन में यह मांग की है कि चूंकि हेमंत की इस टिप्पणी से करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है, इसीलिए उन पर प्रभावी कार्रवाई की जाये।

संबंधित खबर : हेमंत सोरेन बोले गेरूआ धारण कर इज्जत लूटते हैं भाजपाई

गौर करने की बात है कि हेमंत सोरेन गोड्डा जिले की जिस रैली में भाजपा और उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर बरस रहे थे, उसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा के अलावा कांग्रेस के कई आला नेता भी मौजूद थे। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी रैली में मौजूद थीं। ऐसे में उनको लपेटे में लेते हुए भाजपा के नेता प्रचार कर रहे हैं कि प्रियंका ने हेमंत को ऐसा बोलने के लिए रोकने की कोई कोशिश नहीं की। ऐसे में प्रियंका पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए।

हेमंत के बयान पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने जनज्वार के साथ बातचीत में कहा कि ऐसा कहकर हेमंत ने अपनी लुटिया खुद ही डुबोने का काम किया है और अंतिम चरण के चुनाव में उनको इस बयान की कीमत चुकानी पड़ेगी। उन्होंने कांग्रेस को भी आगाह किया कि वह इसके लिए माफी मांगे। हालांकि रांची विधानसभा से इस बार महागठबंधन की प्रत्याशी और झामुमो की प्रमुख नेता महुआ मांझी इस बारे में बातचीत करने पर कहती हैं कि हेमंत ने कोई विवादास्पद बयान नहीं दिया है। वे तो महज भाजपा के शासन तले उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति को ही बयां कर रहे थे। ऐसे में उन पर लांछन लगाना भाजपा के द्वारा वास्तविकता को झुठलाना भर है।

झारखंड के चुनावी परिदृश्य में इस बार जिस कदर नेताओं के बोल बिगड़ रहे हैं, उसकी चर्चा राज्य के गली-मोहल्लों तक में हो रही है। बिगड़ी बोली के मामले में कोई भी दल पीछे नहीं रहना चाहता। नेता चुनावी रौ में जमकर अमान्य भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को छोड़ भी दें, तो पिछले चुनाव में जीतने वाले के अलावा हारने वाले प्रत्याशी भी इस अंधी दौड़ में शामिल नजर आ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ऐसा नहीं कि इसमें जनता-जनार्दन का कोई दोष नहीं। कई बार लच्छेदार और अमर्यादित भाषा के इस्तेमाल पर भीड़ की ओर से खूब तालियां बजायी जाती हैं और नेताओं की हौंसला अफजाई की जाती है। इससे वक्ताओं का उत्साहवर्धन भी हो जाता है। ऐसे में भला नेता कैसे चूक सकते हैं।

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेष बघेल ने भी राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास के छत्तीसगढ़ मूल के होने के बारे में अमर्यादित टिप्पणी कर दी। उन्होंने रघुवर दास को वापस अपने राज्य में ले जाने की भी बात की। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी रघुवर को बाहरी बताते हुए कहा है कि वे खुद बाहरी होते हुए राज्य के लोगों को असली और नकली का सर्टिफिकेट बांटने पर तुले हैं।

रअसल राज्य में चुनाव के काफी पूर्व से ही राजनेताओं के दरम्यान तल्ख शब्दों के प्रयोग ने चुनावी तापमान को बढ़ाकर रखा था। मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी जोहार जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान ही कांग्रेस को चोट्टा और चिरकुट जैसे शब्दों से नवाज चुके हैं। वे लगातार कांग्रेस को बरसाती मेंढक कहने से भी नहीं चूकते।

नागरिकता कानून के मसले पर देश के विभन्न हिस्सों में चल रही हिंसा पर प्रधानमंत्री मोदी ने सूबे की एक सभा में बेरोक-टोक यह बात कह दी कि टेलीविजन पर दिखने वाले वे लोग, जो संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, उनको उनके कपड़ों से ही पहचाना जा सकता है। उन्होंने कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों पर इस प्रकार की हिंसा को बढ़ावा देने का भी आरोप मढ़ दिया।

गृहमंत्री अमित शाह भी राज्य की कई रैलियों में इसी तरह की बातें करते फिर रहे हैं। उन्होंने भाजपा के राज में झारखंड के ’विकास’ को लकर राहुल गांधी की टिप्पणी पर उनको आड़े हाथों लिया। लगे हाथों उन्होंने राहुल गांधी को इटालियन चश्मा उतार फेंकने की सलाह भी दे डाली। घुसपैठियों के बारे में चर्चा करते हुए शाह राहुल से सवाल करते हैं कि क्या वे (घुसपैठिये) उनके चचेरे भाई लगते हैं?

मित शाह कहते हैं कि अब हमारी सीमा में कोई आलिया-मालिया-जमालिया नहीं घुस सकता। प्रधानमंत्री मोदी के बारे में बातें करते हुए वे अपनी शैली में बोलते हैं कि अब मौनी बाबा का जमाना नहीं, यह मोदी जी की सरकार है। नक्सलियों के बारे में वे बेबाकी से बोलते हैं कि मोदी और रघुवर ने उनको जमीन से बीस फीट नीचे दबाने का काम कर दिया है।

पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी अपनी एक सभा में उपस्थिति जनसमुदाय से पूछ लिया कि उनको लूटने वाला ठग चाहिए या खटने वाला मुख्यमंत्री। राहुल गांधी के रांची में भाजपा के बारे में दिये गये बयान, भाजपा बांटती, मारती और दबाती है पर खासा सियासी बवाल मच चुका है। जाहिर है कि वोटों की राजनीति में सियासतदानों के लिए मर्यादित शब्दों की महत्ता कम हो गयी है।

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, भले ही चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के रेप इन इंडिया वाले बयान पर काफी हाय-तौबा मचने के बाद सूबे के अधिकारियों से इस बारे में सवाल-जवाब किया है, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि सियासी दल आखिर राजनीतिक शुचिता का पालन करने में दिनोंदिन क्यों असमर्थ होते जा रहे हैं। जनता में उनकी भद्द पिट ही रही है। जाहिर है कि अगर चुनाव आयोग इस बारे में सख्ती से पेश आये, तो ऐसे मामलों में कमी आ सकती है। सभी पार्टियों को शीर्ष स्तर भी अमर्यादित और लांछनीय शब्दों के परहेज को लेकर मंथन करना होगा, वरना इसमें कोई शक नहीं कि इससे भारतीय राजनीति का स्तर लगातार गिरता जायेगा।

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