राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट पर समाजवादी लोक मंच के सुझाव
जिस तरह के परिवर्तन देश की शिक्षा में किए जाने की सिफारिशें की गयी हैं, उसे लेकर देश को उबल पड़ना चाहिए था, परन्तु पसरा हुआ है सन्नाटा, सरकार ने प्रारूप में अपना मत स्पष्ट कर दिया है कि देश में शिक्षा बाजार में बिकने वाला माल होगी, जिसकी जेब में पैसा हो वह उसे खरीद ले....
जनज्वार। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के प्रारूप पर देशवासियों से सुझाव एवं संशोधन 31 जुलाई 2019 तक आमंत्रित किए गये हैं। इस पर समाजवादी लोक मंच द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्री को सुझाव एवं संशोधन ज्ञापन के रूप में प्रेषित करने का निर्णय लिया है।
शिक्षा प्रत्येक नागरिक, परिवार, समाज व देश के विकास के साथ सीधे जुड़ा हुआ मसला है। किसी भी राष्ट्र का मूल्यांकन वहां के निवासियों की शिक्षा व जीवन स्तर की उन्नति के आधार पर ही किया जाना सम्भव है। आजादी 72 वर्षों बाद भी हमारे देश की शिक्षा व बहुलांश जनता का जीवन स्तर बद से बदतर है। गाय, पाकिस्तान, राष्ट्रवाद के छद्म मुद्दों में देश को इतना अधिक उलझा दिया गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 का प्रारूप देश में बहस का मुद्दा ही नहीं बन पाया है।
जिस तरह के परिवर्तन देश की शिक्षा में किए जाने की सिफारिशें की गयी हैं, उसे लेकर तो देश को उबल पड़ना चाहिए था, परन्तु देश में सन्नाटा पसरा हुआ है। देश की सत्ता ने प्रारूप में अपना मत स्पष्ट कर दिया है कि देश में शिक्षा बाजार में बिकने वाला माल होगी, जिसकी जेब में पैसा हो वह उसे खरीद ले। देश के 100 प्रतिशत लोगों को उच्च शिक्षा के दायरे में लाए जाने के मुकाबले विदेशी पूंजी निवेश व विदेशी छात्रों को पढ़ने के लिए देश में बुलाया जाना ज्यादा जरूरी बना दिया गया है।
मंच इस ज्ञापन को 30 जुलाई, 2019 को प्रेषित करेगा। इस ज्ञापन को लेकर आपके पास कोई राय है अथवा संशोधन है तो हमें 29 जुलाई तक अवश्य प्रेषित कर दें। हमें इंतजार रहेगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के प्रारूप पर सुझाव एवं संसोधन के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री के नाम समाजवादी लोकमंत्र का ज्ञापन
महोदय,
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा पिछले 1 जून, 2019 को जारी किए गये राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 के प्रारूप पर देशवासियों से सुझाव व संशोधन 31 जुलाई, 2019 तक आमंत्रित किए गये हैं, जिसके सम्बन्ध में हम कहना चाहते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 का प्रारूप देश में सभी को पूर्व प्राथमिक से उच्च शिक्षा प्रदान करने की चुनौतियों को स्वीकार करने में सक्षम नहीं है। इस प्रारूप के लागू किये जाने से 1 लाख से अधिक सरकारी स्कूल व 30 हजार से भी अधिक उच्च शिक्षण संस्थान बंद हो जाएंगे।
इस प्रारूप में देश के सभी नागरिकों को निःशुल्क, समान व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिये जाने का लक्ष्य प्राप्त करने की जगह शिक्षा के बाजारीकरण को महत्ता दी गयी है। भारत सरकार की नवउदारवादी विध्वंसकारी नीतियों की स्पष्ट छाप प्रस्तुत प्रारूप में देखी जा सकती है।
भारतीय शिक्षा व्यवस्था को बदलकर, उसे देश में पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक, सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण, अनिवार्य, सुगम, बराबरी के साथ दिये जाने व उसे रोजगारपरक बनाए जाने हेतु हम निम्नलिखित सुझाव/संशोधन किये जाने की मांग करते हैं :
1- शिक्षा पर सरकार सकल घरेलु उत्पाद (जी.डी.पी) का 10 प्रतिशत खर्च करे।
देश में आज भी 75 प्रतिशत विद्यार्थी चाहकर उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। देश के 6 करोड़ से भी अधिक बच्चे ऐसे हैं जिन्हें स्कूलों में पढ़ना चाहिए परन्तु वे स्कूल से बाहर हैं। पर्याप्त बजट व बुनियादी सुविधाओं व संसाधनों के अभाव के कारण ये स्थिति उत्पन्न हुयी है। देश में आजादी के बाद से अब तक, सरकार का शिक्षा पर कुल खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4 प्रतिशत से भी कम रहा है। 1968, 1986 की शिक्षा नीति व 1992 की कार्य योजना में शिक्षा पर कुल खर्च बढ़ाकर जीडीपी का 6 प्रतिशत करने की अनुसंशा की गयी थी जिसे आज तक किसी भी सरकार ने पूरा नहीं किया है।
केन्द्र सरकार ने इस वर्ष के बजट में शिक्षा पर खर्च बढ़ाने की जगह उसे कम कर दिया है। वर्ष 2017-18 में केन्द्र सरकार ने शिक्षा पर कुल बजट का 3.74 प्रतिशत खर्च किया था जिसे इस वर्ष घटाकर 3.4 प्रतिशत से भी कम कर दिया गया है। शिक्षा के खर्च को जीडीपी के 10 प्रतिशत किए जाने पर देश के पास शिक्षा पर खर्च करने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक धनराशि उपलब्ध होगी।
इससे नये विद्यालय खोलने, उनकी गुणवत्ता बढ़ाने व सभी को शिक्षित किए जाने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निजी व विदेशी पूंजी निवेश की आवश्यकता नहीं पडे़गी तथा सभी के लिए निःशुल्क, गुणवत्तापूर्ण, समान शिक्षा का रास्ता प्रशस्त होगा। अतः देश में शिक्षा पर कुल सरकारी खर्च जीडीपी का न्यूनतम 10 प्रतिशत किया जाना अनिवार्य किया जाए।
2- पूर्व प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा सभी के लिए निःशुल्क उपलब्ध हो व दोहरी-तिहरी शिक्षा प्रणाली समाप्त की जाये।
देश में शिक्षा को बाजार में बिकने वाली वस्तु के रुप में तब्दील कर दिया गया है। जिसके कारण शिक्षा अपने उद्देश्य से भटक चुकी है तथा मुनाफा कमाने के औजार में तब्दील हो चुकी है। देश के कुल 15.22 लाख स्कूलों में 3.35 लाख स्कूल प्राइवेट हैं। जिनमें मिलाकर देश के प्राइमरी से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर के 25.7 करोड़ बच्चे पढ़ते हैं। प्राइवेट स्कूलों में कुल 44 प्रतिशत (11.43 करोड़) बच्चे पढ़ते हैं।
इस दोहरी शिक्षा प्रणाली के कारण शिक्षा में असमानता बढ़ रही है जो कि देश के संविधान में दर्ज समानता के अधिकार का उल्लंघन है। देश में अमीर लोगों के लिए अलग स्कूल हैं, मध्यम वर्ग के लिए अलग तो गरीबों के लिए सरकारी स्कूल हैं। इस दोहरी-तीहरी शिक्षा व्यवस्था को तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए।
देश के सभी निजी, धार्मिक व दान-दक्षिणा पर चलने वाले शिक्षण संस्थानों का राष्ट्रीयकरण कर सरकार सभी शिक्षण संस्थानों को चलाने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले। बच्चों को वैज्ञानिक, तर्कपरक, श्रम का सम्मान करने वाली, रोजगारपरक शिक्षा उनको उनकी मातृ भाषा में बराबरी के साथ दी जाए। ऐसी शिक्षा दी जाए जो व्यवहार से जुड़ी हो, जो छात्रों को जातिगत, धार्मिक व लैंगिक भेदभवाव और पूर्वाग्रहों से मुक्त बनाए।
सभी बच्चे चाहे वह किसी भी वर्ग, जाति व धर्म से हैं, उनका दाखिला उनके नजदीकी स्कूल में ही किया जाना अनिवार्य किया जाए। अधिकारी हो या चपरासी, हिन्दू हो या मुस्लिम, सवर्ण हो या अवर्ण, अमीर हो या गरीब सभी बच्चों को एक ही स्कूल में निःशुल्क शिक्षा बराबरी के साथ प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार अपने हाथों में ले।
इस बात का विशेष ख्याल रखा जाए कि देशभर के स्कूलों में उपलब्ध सुविधाएं व तकनीक का मानक लगभग एक ही जैसा हो। देश के गरीब व वंचित बच्चों के लिए भोजन, आवास, वस्त्र व इलाज आदि का विशेष इंतजाम किया जाए।
3-पूर्व प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा व रोजगार की गारन्टी को मौलिक अधिकार घोषित किए जाने हेतु संविधान में संशोधन किया जाए।
देश में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या 40 हजार से अधिक है जिसमें मात्र 22 प्रतिशत संस्थान ही सरकारी हैं। देश के 78 प्रतिशत उच्च शिक्षण संस्थानों में कुल नामांकित लगभग 3.5 करोड़ छात्रों में 67 प्रतिशत से अधिक छात्र निजी संस्थानों में पढ़ते हैं। इनमें कुछ छात्र तो बैंकों से कर्जा लेकर पढ़ने को मजबूर हैं। सरकारी संस्थानों में मात्र 33 प्रतिशत (लगभग 1.15 करोड़) छात्र ही पढ़ते हैं। इस तरह देश के कुल 18 से 23 वर्ष की आयु के 14 करोड़ से भी अधिक युवाओं में से सरकार मात्र 8 प्रतिशत छात्रों को ही उच्च शिक्षा दे रही है। जो कि उच्च शिक्षा की भयावह तस्वीर पेश करता हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 के प्रारूप में वर्ष 2035 तक 50 लाख की आबादी पर एक टाइप 1 कालेज, 5 लाख की आबादी पर एक टाइप 2 व 2 लाख की आबादी पर एक टाइप 3 उच्च शिक्षण संस्थान चलाए जाने की अनुसंशा की गयी है, जिसे लागू करने पर 30 हजार से भी अधिक उच्च शिक्षण संस्थान बंद हो जाएंगे।
प्रारूप में 2035 तक देश के मात्र 50 प्रतिशत छात्रों को ही उच्च शिक्षण संस्थान में दाखिले का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। शिक्षा के निजीकरण के कारण यह बौना लक्ष्य भी पूरा हो पाना सम्भव नहीं है।
इन 30 हजार उच्च शिक्षण संस्थानों को बंद करने की जगह इनकी गुणवत्ता में सुधार की नीति अपनायी जानी चाहिए तथा सभी निजी उच्च शिक्षण संस्थानों का भी राष्ट्रीयकरण कर सरकार द्वारा उच्च शिक्षा में 100 प्रतिशत छात्रों को नामांकन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
प्रारूप में पूर्व प्राइमरी से लेकर उच्च माध्यमिक तक की शिक्षा को शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे में लाए जाने हेतु सिफारिश की गयी है। परन्तु साथ ही निजी स्कूलों व कालेजों को और अधिक स्वायत्ता देने का प्रस्ताव किया गया है। इससे देश में दोहरी व तिहरी शिक्षा व्यवस्था जारी रहेगी।
देश को एक शिक्षित, समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए जरुरी है कि सरकार दोहरी-तिहरी शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करे। सरकार देश के संविधान में संशोधन कर सभी देशवासियों के लिए पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा (केजी से पीजी तक) निःशुल्क व बराबरी के साथ दिया जाना व प्रत्येक नागरिक को सम्मानजनक रोजगार की गारन्टी मौलिक अधिकार घोषित किया जाए।
4- शिक्षा में विदेशी पूंजी निवेश प्रतिबंधित किया जाए।
प्रारूप में शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) बढ़ाने व विदेशी छात्रों को देश में पढ़ने के लिए आकर्षित करने पर जोर दिया गया है। विदेशी शिक्षण संस्थानों का देश में पूंजी निवेश का मकसद देशवासियों को शिक्षित करना नही बल्कि देश में आकर मुनाफा कमाना व अपना प्रभुत्व स्थापित करना है। विदेशी शिक्षण संस्थानों में वे ही छात्र दाखिला ले सकेंगे जिनके पास चुकाने के लिए मोटी फीस होगी।
एफडीआई को आकर्षित करने के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों को मनमानी करने की छूट देने का प्रस्ताव प्रारूप में किया गया है। निजी संस्थानों को डिग्री देने, सिलेबस व कोर्स तैयार करने, शिक्षकों की भर्ती करने व उनके वेतन की दरें व शर्तें निर्धारित करने तथा मनमानी फीस वसूलने की खुली छूट देने की सिफारिशें प्रारूप में की गयी हैं। ये सिफारिशें देश के लिए बेहद खतरनाक हैं तथा देश की सम्प्रभुता के खिलाफ है। देश में शिक्षा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर विकास के माॅडल को अपनाए जाने की जरूरत है।
सरकार को देश के शिक्षकों, वैज्ञानिकों व तकनीशियनों की मेधा, ज्ञान व कुशलता का भरोसा करना चाहिए न कि बहुराष्ट्रीय निगमों व शिक्षण संस्थानों का।
5- आंगनवाड़ी वर्कर, भोजनमाताओं, शिक्षा मित्रों व पैरा शिक्षकों को नियमित किया जाए व उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए।
3 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों को सिखाने-पढ़ाने में आंगनवाड़ी वर्कर व मध्यान भोजन योजना में भोजन माताओं की विशेष भूमिका है। परन्तु न तो इन्हें न्यूनतम वेतन दिया जाता है और न ही सामाजिक सुरक्षा। भोजनमाताओं को मासिक वेतन मात्र 2 हजार रु. ही दिया जाता है। जबकि सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन 8300 रु. प्रतिमाह घोषित किया गया है। देश में लाखों शिक्षा मित्र व पैरा टीचर का भी नियमितिकरण नहीं किया गया है। प्रारूप में 2022 तक इनके पद समाप्त करने की अनुसंशा की गयी है।
आंगनवाड़ी वर्कर, भोजनमाता, पैरा टीचर, व शिक्षा मित्रों के द्वारा नियमितिकरण की मांग हमेशा उठती रही है, जिसे पूरा किया जाना आवश्यक है। इससे न केवल इनकी जीवन परिस्थितियों में सुधार होगा बल्कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता भी बढ़ेगी।
6- प्रारूप का संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज सभी भाषाओं में अनुवाद जारी किया जाए व अनुवाद जारी करने के बाद जनता को राय देने के लिए 3 माह का समय दिया जाए।
पिछले मई माह में जारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 का प्रारूप मात्र अंग्रेजी व हिन्दी भाषा में ही जारी किया गया है। जबकि देश के संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं। प्रारूप को मात्र अंग्रेजी व हिन्दी भाषा में ही जारी करने के कारण देश की गैर हिन्दी व अंग्रेजी भाषी आधी से भी ज्यादा आबादी शिक्षा नीति में सरकार द्वारा किए जा रहे महत्वपूर्ण बदलावों से अनभिज्ञ है, जो कि देश की जनता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय तत्काल देश की आठवीं अनुसूची में दर्ज सभी भाषाओं में इसका अनुवाद जारी करे तथा अनुवाद जारी करने की तिथी के बाद 3 माह का समय लोगों को सुझाव, संशोधन व आपत्तियों के लिए उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे।
हम उम्मीद करते हैं कि उक्त ज्ञापन पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय गम्भीरता से विचार कर, गम्भीरता के साथ अमल करेगा तथा इस पर लिए गये निर्णयों से हमें भी अवगत कराया जाएगा।
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