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शिक्षा

ये हैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दावे, असलियत तो समय ही बतायेगा

Prema Negi
6 July 2019 6:54 PM IST
ये हैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दावे, असलियत तो समय ही बतायेगा
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट में विदेशी छात्रों को देश में पढ़ने के लिए आमंत्रित करने के लिए 400 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया है, मोदी सरकार की मंशा साफ है कि वह शिक्षा में बदलाव देश को पढ़ाने के लिए नहीं, विदेशी मुद्रा कमाने के लिए लाना चाहती है...

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 का ड्राफ्ट ऊपरी तौर पर कैसे है लोक लुभावन, बता रहे हैं स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार

अतिरिक्त प्रमुख फोकस क्षेत्र

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारुप के तीसरे भाग में शिक्षा में प्रौद्योगिकी (तकनीक) के इस्तेमाल, व्यावसायिक शिक्षा व प्रौढ़ शिक्षा को लेकर सिफारिशें दी गयी है।

हा गया है कि भारत सूचना एवं संचार तकनीक अंतरिक्ष जैसे आधुनिक क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है। शिक्षकों की तैयारी, कक्षा-कक्षीय शैक्षिक प्रक्रिया व सीखने और मूल्यांकन में प्रौद्योगिकी (तकनीक) के प्रभावशाली इस्तेमाल की बात की गयी है। सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली के प्रबन्धन व वंचित समूहों तक शिक्षा की पहुंच बेहतर करने के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की बात कही गयी है।

इसके लिए सरकार निजी क्षेत्र द्वारा विकसित किए गये सोल्यूशन का भुगतान कर इनको इस्तेमाल करेगी। इसको स्टार्टअप इंडिया से जोड़ने व पीपीपी मोड पर चलाने की बात की गयी है।

प्रारूप में कहा गया है कि यह नीति ऐसे समय में आ रही है, जबकि चौथी औद्योगिक क्रांति शुरू हो चुकी है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी बेहद प्रभावशाली तकनीकें उभर चुकी हैं। जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित पूर्वानुमानों की लागत कम होती जाएगी, वैसे-वैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता कुशल पेशेवरों की बराबरी करने लगेगी और यहां तक उनसे आगे भी निकल जाएगी।

समें रोजगार को लेकर कहा गया है कि प्रभावी प्रौद्यागिकियां कुछ नौकरियों को निरर्थक बना देंगी। अतः रोजगार पैदा करने और उन्हें बनाए रखने के लिए स्किलिंग व डिस्किलिंग के प्रति प्रभावी और गुणवत्तापूर्ण दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होगा।

12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) के अनुमान के मुताबिक भारत के कामकाजी लोगों के 19 से 24 आयु वर्ग के 5 प्रतिशत से भी कम लोगों ने व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त की। इसकी तुलना में अमेरिका मेंयह 52 प्रतिशत, जर्मनी में 75 व कोरिया में 96 प्रतिशत है। यह आंकड़े भारत में व्यावसायिक शिक्षा की गति को बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

सके लिए सभी स्कूल व काॅलेजों में चरणबद्ध तरीके से व्यावसायिक शिक्षा कार्यक्रम को अन्य शिक्षा कार्यक्रमों के साथ एकीकृत कर लागू करने की बात कही गयी है। 2025 तक व्यावसायिक शिक्षा में नामांकन का लक्ष्य 50 प्रतिशत रखा गया है।

हीन काम वाले वस्त्रों और कशीदाकारी से लेकर ऐतिहासिक इमारतों के भव्य स्थापत्य तक, औषधियों की स्थानीय ज्ञान पद्धति से लेकर कला और शिल्पकारी की अनगिनत किस्मों तक व जल संरक्षण आदि के रुप में मौजूद लोक विद्या को व्यावसायिक शिक्षा के साथ एकीकरण कर लागों तक पहुंचाने की बात कही गयी है।

2030 तक युवा एवं प्रौढ़ साक्षरता दर को 100 प्रतिशत पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए स्कूलों (स्कूली समय के बाद व सप्ताह के अंत में) एवं सार्वजनिक पुस्तकालयों का इस्तेमाल किया जाएगा।

100 प्रतिशत साक्षरता अभियान के लिए सामाजिक कार्यकर्ता, सामुदायिक संस्थाएं, गैर सरकारी संस्थायें, स्वयंसेवक व पंचायतों से मदद ली जाएगी। सभी प्रेरकों व प्रौढ़ शिक्षा प्रशिक्षकों को सरकार प्रमाण पत्र देगी जिसमें उनकी सेवा की भूमिका, कक्षा में पढ़ाए गये घंटे और अनके द्वारा साक्षर किए गये लोगों की संख्या का उल्लेख होगा।

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हा गया है कि यदि समुदाय का हर साक्षर सदस्य एक व्यक्ति को साक्षर बनाने की जिम्मेदारी ले तो देश का परिदृश्य बहुत जल्द बदल जाएगा।

भाषा के सवाल पर कहा गया है कि भारतीय भाषाओं के संरक्षण, विकास व जीवंतता को सुनिश्चित किया जाएगा। इसके लिए भारतीय भाषाओं के कार्यक्रम और उनकी क्षमताओं को स्थापित और पुनर्जीवित करने के लिए विश्वविद्यालयों को सहायता दी जाएगी। इसमें आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं के साथ आदिवासी भाषाएं भी शामिल करने की बात कही गयी है।

शिक्षा में बदलाव

मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पुनः शिक्षा मंत्रालय में तब्दील करने की सिफारिश की गयी है। शिक्षा के वर्तमान प्रशासनिक ढांचे की जगह एक नया ढांचा बनाने को प्रस्तावित किया गया है। इसके तहत राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन किया जाएगा, जो कि देश की सबसे बड़ी बाॅडी होगी, जिसके प्रधानमंत्री अध्यक्ष व शिक्षा मंत्री उपाध्यक्ष होंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा आयोग द्वारा 2020 तक देश में राष्ट्रीय उच्च शिक्षा नियामक प्राधिकरण गठित किया जाएगा। देश के मौजूदा नियामकों को दूसरी भूमिका दी जाएगी। यूजीसी व अन्य नियामकों को हायर एजुकेशन ग्रान्ट्स काउंसिल व प्रोफेशनल स्टैण्डर्ड सेंटिंग बाॅडीज का रूप दिया जाएगा।

र्ष 2020 तक आयोग द्वारा प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा को स्कूली शिक्षा के साथ एकीकृत कर दिया जाएगा। आयोग शिक्षा के अधिकार कानून की समीक्षा करेगा।

राष्ट्रीय शिक्षा आयोग की तर्ज पर प्रत्येक राज्य में राज्य शिक्षा आयोग का गठन किया जाएगा, जिसके अध्यक्ष राज्य के मुख्यमंत्री व उपाध्यक्ष शिक्षा मंत्री होंगे।

क्रियान्वयन

प्रारूप के अंतिम हिस्से में परिशिष्ट के रूप में क्रियान्वयन पर बात की गयी है। बताया गया है कि 2017-18 में शिक्षा पर कुल सरकारी खर्च जीडीपी का 2.7 प्रतिशत था। देश में केन्द्र व राज्य सरकारें मिलाकर अपने कुल सरकारी खर्च का 10 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती हैं। 1968, 1986 की शिक्षा नीति व 1992 कार्य योजना में इसे 6 प्रतिशत करने की अनुसंशा की गयी थी। भूटान, जिम्बाब्वे और स्वीडन 7.5 प्रतिशत, कोस्टारिका व फिनलैंड 7, साउथ अफ्रीका और ब्राजील 6, इंग्लैंड व फिलीस्तीन 5.5, अमेरिका व केन्या आदि मुल्क अपनी जीडीपी का 5 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करते हैं।

शिक्षा पर सरकारी धन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा गया है कि वर्तमान के शिक्षा पर सालाना खर्च 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने की जरुरत है। भारत के राज्य शिक्षा पर होने वाले खर्च का 75 प्रतिशत उपलब्ध कराते हैं। शिक्षा पर खर्च अगले 10 वर्षों में बढ़ाकर दोगुना करने की बात कही गयी है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का तेजी हो रहा विकास इसे 2030-32 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बना देगा, जो इस समय 2.8 ट्रिलियन डालर है। कहा गया है कि देश का कर संग्रह बढ़ रहा है। पिछले 4 वर्षों में यह 1.5 प्रतिशत बेहतर हुआ है।

शिक्षा में निजी निवेश, दान-दक्षिणा के द्वारा शिक्षा को सहायता पहुंचाने, कार्पोरेट सोशियल रेस्पोंसबिलिटी के तहत किए जाने वाले खर्च को शिक्षा पर किए जाने, पूर्व छात्रों व स्थानीय समुदाय से चन्दा लेने की नीति अपनाकर शिक्षा के लिए संसाधन जुटाने की योजना प्रस्तुत की गयी है।

हा गया है कि हिन्दू मठ एवं आश्रम, क्रिश्चियन मिशनरी संस्थान, इस्लामिक ट्रस्ट, बौद्ध एवं जैन समुदाय के प्रयास गुरुद्वारा आदि ने राष्ट्रीय शैक्षिक प्रयासों में बढ-चढ़कर हिस्सा लिया है। इनके प्रयासों को मजबूत किया जाना चाहिए, ताकि इस नीति के उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।

शिक्षा नीति में परिवर्तन कब, क्या और कैसे होगा

- राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन एवं नियुक्तियां। (2019)

- मानव संसाधन मंत्रालय को पुनः शिक्षा मंत्रालय बना दिया जाएगा। (2019)

- समस्त उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए एकमात्र नियामक राष्ट्रीय उच्च शिक्षा नियामक प्राधिकरण का गठन। (2019)

- उक्त प्राधिकरण द्वारा मान्यता मिलने के बाद उच्च शिक्षण संस्थानों को संपूर्ण प्रशासनिक, अकादमिक, आर्थिक स्वायत्तता व स्वतंत्र संचालन बोर्ड के गठन का अधिकार व विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध होने की व्यवस्था की समाप्ति। (2030)

- घटिया प्रदर्शन व तय मानकों के अनुपालन नहीं करने वाले शिक्षण शिक्षा संस्थानों को बंद किया जाना। (2023)

- मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के मानक व दिशा निर्देश व रूपरेखा। (2023)

- प्रारम्भिक बाल शिक्षा का पूरी तरह से स्कूली शिक्षा के साथ एकीकरण।(2020)

- शिक्षा अधिकार कानून की समीक्षा व निःशुल्क व अनिवार्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दायरे में 9-12 तक की कक्षाओं को भी शामिल करना। (2020)

- उच्च शिक्षा की मुख्यधारा में व्यावसायिक व पेशेवर शिक्षा का समेकन/एकीककरण। (2020)

- देश के हर जिले में बहु अनुशासनिक/बहुविषयक लिबरल आर्ट के कार्यक्रम उपलब्ध कराने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना। (2025)

- मिशन नालंदा और तक्षशिला के माध्यम से 2035 तक उच्च शिक्षा में 50 प्रतिशत नामांकन दर की प्राप्ति। (2035)

- शोध क्षमताओं को मजबूती प्रदान करने व जीवंत शोध को उत्प्रेरित करने हेतु राष्ट्रीय शोध फाउन्डेशन की स्थापना। (2020)

- शिक्षा में तकनीक के इस्तेमाल को लेकर नेशनल एजुकेशन टेक्नोलोजी फोरम की स्थापना। (2020)

- गवर्नेंस व प्रबन्धन सुधार हेतु नेशनल रिपोजिटरी आफ एजुकेशन डाटा की स्थापना।(2020)

- कक्षा 10 व 12 में समग्र बोर्ड परीक्षा को समाप्त कर इसकी जगह मोड्यूल आधारित मूल्यांकन जिन्हें कक्षा 9 से 12 के दौरान कभी भी लिया जा सकता है को लागू किया जाना। (2025)

- नेशनल टेस्टिंग एजेन्सी द्वारा विभिन्न विषयों पर रुझान सम्बन्धी परीक्षा (एप्टीट्यूट टेस्ट) का आयोजन, जिसे वर्ष में कई बार दिया जा सकता है का आरम्भ। (2025)

राज्य स्तर पर उठाए जाने वाले कदम

- राज्य शिक्षा आयोग का गठन। (2020)

- स्कूल काम्प्लैक्स का गठन। (2020)

- स्वतंत्र एवं अर्ध न्यायिक निकाय के तौर पर राज्य स्कूल नियामक प्राधिकरण की स्थापना। (2020)

- स्कूल काम्प्लैक्स के बीच संसाधनों का सांझा इस्तेमाल व नीति के अनुरुप पर्याप्त साधनों की उपलब्धता।(2022)

- पाठ्यक्रम सुधार, नयी पाठ्यचर्या, शिक्षा शास्त्रीय मूल्यांकन और मूल्यांकनो के पालन को सुनिश्चित करना। (2023)

शिक्षा मंत्रालय व राज्य शिक्षा विभाग द्वारा उठाए जाने वाले कदम-

- 5 वर्ष का बुनियादी स्तर (3 वर्षों का पूर्व प्राथमिक स्तर और 1-2 स्तर) कक्षा 3-5 का 3 वर्षीय प्राथमिक स्तर, कक्षा 6-8 का 3 वर्षीय उच्च प्राथमिक स्तर, कक्षा 9-12 का 4 वर्षीय माध्यमिक स्तर का पुनर्गठन व कक्षा 9-12 के लिए सेमेस्टर आधारित व्यवस्था। (2022)

- उच्च शिक्षण संस्थानों में अकादमिक एवं गैर अकादमिक पदों को स्थाई व्यवस्था के तहत भरा जाना। (2023)

- शैक्षिक रूप से वंचित क्षेत्र में स्कूल व उच्च शिक्षा के विस्तार के विशेष शिक्षा क्षेत्र (सेज) की स्थापना व छात्रवृत्ति हेतु अनुदान की व्यवस्था। (2025)

- विविध प्रकार की शिक्षा सामग्री का आनलाइन संकलन की उपलब्धता, अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद और भारतीय और विदेशी भाषाओं के बीच अनुवादित सामग्री की उपलब्धता व मूल ग्रन्थों का भारतीय भाषाओं में विकास। (2030)

- शिक्षक शिक्षा (बी.एड) के दो वर्षीय कोर्स बंद कर 4 वर्षीय कोर्स की सिर्फ बहु अनुशासनिक विश्वविद्यालयों में उपलब्धता। (2030)

- व्यक्तिगत स्तर पर ऊंचे दर्जे की ईमानदारी, उत्कृष्ट अकादमिक रिकार्ड रखने वाले, प्रतिबद्धता व पारदर्शिता से काम करने वाले लोगों की नेतृत्व के पदों पर पारदर्शी नियुक्ति। (2020)

- सार्वजनिक निवेश में उत्तरोत्तर वृद्धि, जब जब तक यह सम्पूर्ण सार्वजनिक व्यय के 20 प्रतिशत तक न पहुंच जाए। (2030)

कथनी व करनी में फर्क

देश में शिक्षा को लेकर देश की जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने की अनुशंसा 1968 व 1986 की शिक्षा नीति व 1992 की कार्य योजना में की गयी थीं। इस दौरान कई सरकारें व गठबंधन (कांग्रेस, भाजपा, जनता पार्टी, समाजवादी जनता पार्टी, संयुक्त मोर्चा, संप्रग, राजग इत्यादि) सत्ता में आए और चले गये, मगर कभी भी शिक्षा पर किए जाने वाले खर्च को जीडीपी के 6 प्रतिशत करने की पहल नहीं की गयी।

देश की वर्तमान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 5 जुलाई को प्रस्तुत किए गये बजट में प्रस्तावित शिक्षा नीति को लेकर सरकार की मंशा जाहिर कर दी है कि देश में शिक्षा का खर्च जीडीपी का 6 प्रतिशत किया जाना अभी भी मात्र एक जुमलेबाजी ही है।

जट में स्कूली शिक्षा के लिए मात्र 56536.63 करोड़ व उच्च शिक्षा के लिए 38317.01 करोड़ रुपए का आवंटन किया है, जो कि केन्द्र सरकार के कुल खर्च का 3.4 प्रतिशत है।

प्रारूप के पेज नंबर 374 में कहा गया है कि राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन को सरकार द्वारा 20 हजार करोड़ (जीडीपी का लगभग 1 प्रतिशत) अनुदान दिया जाएगा। परन्तु बजट में इसका कहीं भी अता-पता नहीं है। विदेशी छात्रों को देश में पढ़ने के लिए आमंत्रित करने के लिए 400 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया है। सरकार की मंशा साफ है वह शिक्षा में बदलाव देश को पढ़ाने के लिए नहीं, विदेशी मुद्रा कमाने के लिए लाना चाहती है।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सह संयोजक हैं।)

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