लागू हुई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तो 28 हजार उच्च शिक्षण संस्थानों पर लटक जायेगा ताला
ऊपरी तौर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 का प्रारूप है लोक लुभावन, मगर जब इसकी कड़ियों को जोड़कर देखेंगे तो भयावहता आएगी सामने, इसमें की गई है अमीरों और गरीबों के लिए अलग-अलग शिक्षा की सिफारिश…
मुनीष कुमार, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 का प्रारूप देश के सामने है। वैज्ञानिक व पूर्व राज्यसभा सांसद कस्तूरी रंजन की अध्यक्षता वाली कमेटी द्वारा देश की शिक्षा प्रणाली में बदलाव के लिए जारी की गयी 648 पृष्ठों वाली सिफारिश पर केन्द्र की मोदी सरकार ने 31 जुलाई 2019 तक सुझाव आमंत्रित किए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि मामूली फेरबदल के बाद सरकार इन सिफारिशों को लागू कर देगी।
ऊपरी तौर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 का प्रारूप लोक लुभावन है, परन्तु जब इसकी कड़ियों को जोड़कर देखा जाएगा तो इसकी भयावहता सामने आएगी। इसमें अमीरों और वंचित-गरीब लोगों के लिए अलग-अलग शिक्षा की सिफारिश की गयी है।
आजादी के 88 वर्ष बाद 2035 तक देश की 50 प्रतिशत आबादी को उच्च शिक्षा के दायरे में लाने का शर्मनाक लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जानकर हैरानी होगी कि यदि सरकार प्रस्तुत प्रारूप पर अमल करेगी तो देश के लगभग 28 हजार उच्च शिक्षण संस्थान बंद कर दिये जाएंगे। 2022 तक शिक्षा मित्रों को बाहर निकाल दिया जाएगा। शिक्षक बनना आईएएस बनने से भी ज्यादा कठिन हो जाएगा।
आने वाले सप्ताह में देश की शिक्षा व्यवस्था में जो बदलाव मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे हैं, उन पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। प्रस्तुत लेख में हम शिक्षा में बदलाव को लेकर जो सिफारिशें की गयी हैं, उन्हें उनके मूल रूप में ही, संक्षेप में जानने का प्रयास करेंगे।
648 पृष्ठों में जारी की गयी सिफारिशों को मुख्यतः 4 भागों में बांटा गया है। प्रथम भाग में स्कूली शिक्षा, दूसरे भाग में उच्च शिक्षा, तीसरे भाग में अतिरिक्त प्रमुख फोकस क्षेत्र व चौथे भाग में शिक्षा में बदलाव पर बात की गयी है। इसके अतिरिक्त प्रारुप में प्रस्तावना, विजन, परिशिष्ट के तौर पर क्रियान्वयन व अनुबंध भी शामिल किया गया है।
स्कूली शिक्षा
प्रारूप में निःशुल्क और अनिवार्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दायरे को विस्तारित किया गया है। बाल्यावस्था शिक्षा के अंतर्गत 3 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों व कक्षा 9-12 के उच्च माध्यमिक शिक्षा कक्षा बच्चों को भी इसमें शामिल किया गया है। 3 से 18 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों और किशोरों के लिए मुफ्त व अनिवार्य सरकारी शिक्षा की वकालत की गयी है।
देश में 4 तरह के शिक्षण संस्थान- सरकारी, निजी, धार्मिक व दान-दक्षिणा पर चलने वाले शिक्षण संस्थान पहले की ही भांति चलते रहेंगे।
स्कूली शिक्षा का वर्तमान ढांचा प्राथमिक कक्षा 1 से 5, कक्षा 6 से 8 उच्च प्राथमिक, कक्षा 9-10 माध्यमिक और 11-12 उच्च माध्यमिक को बदलकर शिक्षा का नया ढांचा बनाया जाएगा।
नये ढांचे में 5 वर्ष की बुनियादी अवस्था घोषित की गयी है। इसमें बच्चों को 3 वर्ष बुनियादी अवस्था (प्री प्राइमरी स्कूल) व कक्षा 1 व 2 की शिक्षा दी जाएगी।
इसके बाद बच्चे को 3, 4 व 5वीं कक्षा में प्राइमरी अवस्था की शिक्षा दी जाएगी। कक्षा 6, 7 व 8 की शिक्षा को मध्य विद्यालय शिक्षा घोषित किया गया है। माध्यमिक शिक्षा (9,10,11,12) 4 वर्ष की होगी, जिसमें प्रत्येक वर्ष दो तथा कुल मिलाकर 8 सेमस्टर होंगे। इसमें छात्रों को विषयों के चुनाव में लचीलापन होगा।
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बच्चों को कक्षा से अतिरिक्त पढ़ाने व स्कूल से बाहर रह गये व स्कूल न जाने वाले बच्चों को स्कूल में लाने के लिए राष्ट्रीय ट्यूटरस कार्यक्रम व रेमेडियल शिक्षण सहायता कार्यक्रम चलाया जाएगा। इसके लिए शिक्षण सहायकों की स्थानीय स्तर पर नियुक्ति की जाएगी। इनमें महिलाओं को वरीयता दी जाएगी। योग्य स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं को भी गैर लाभकारी तरीके से इसमें शामिल किया जाएगा। जो लोग शिक्षण सहायक के रुप में कार्य करेंगे उन्हें बीएड व शिक्षक नियुक्ति में इनके अनुभव को वरीयता दी जाएगी।
बच्चों को शिक्षा व संवाद उनकी मातृ भाषा/घर की भाषा/स्थानीय भाषा में किए जाने की बात कही गयी है। बच्चों को एक से अधिक भाषा सीखने पर जोर देते हुए त्रिभाषा फार्मूले की वकालत की गयी है। जिसके तहत बच्चों को अपनी मातृ भाषा के साथ हिन्दी अंगेजी व अन्य भाषा सीख सकते हैं। विज्ञान के छात्रों को अपनी मातृ भाषा के साथ अंग्रेजी भाषा भी सीखनी होगी।
सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में कक्षा 5 तक बागवानी व मिट्टी के बर्तन बनाना आदि सिखाया जाएगा। 6,7,8 के बच्चों को बढ़ईगिरी, धातु कर्म व बिजली आदि के कार्य सिखाए जाएंगे। कक्षा 9 से 12 के बच्चों को अकादमिक शिक्षा के साथ व्यवसायिक शिक्षा के कोर्स भी सिखाए जाएंगे। मध्याहन भोजन के दायरे को कक्षा 8 से बढ़ाकर 12 वीं कक्षा तक किया जाएगा। 3 वर्ष से 18 वर्ष के बच्चों को दोपहर के भोजन के साथ सुबह का नाश्ता भी दिया जाएगा।
एनसीईआरटी व एससीईआरटी देश व राज्यों की जरुरतों के अनुसार सस्ती पुस्तकों का प्रकाशन करेगा। शिक्षा के विषयवस्तु के भार को कम करने के लिए एनसीआरटी द्वारा पाठ्य पुस्तकों में बदलाव किया जाएगा। एनसीईआरटी द्वारा विकसित पुस्तकों व सुझाई गयी सीखने सिखाने की सामग्री को सभी मुख्य भारतीय भाषाओं उपलब्ध कराया जाएगा। ज्ञान के क्षेत्र में भारतीय प्रयासों के योगदान को भी पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाएगा। सरकारी स्कूलों को कम्यूटर, इंटरनेट आदि की आधुनिक तकनीक से जोड़ा जाएगा।
एक माध्यमिक स्कूल (कक्षा 12 तक) व उसके आसपास 5 से 10 मील के दायरे में स्थित कक्षा 1 से 8 तक के स्कूलों को मिलाकर एक स्कूल काम्पलैक्स गठित किया जाएगा। आंगनवाड़ी, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र व व्यवसायिक शिक्षा की सुविधाएं आदि भी इससे सम्बद्ध होंगी।
शिक्षकों की नियुक्ति स्कूल काम्पलैक्स स्तर पर की जाएगी। काम्पलैक्स के शिक्षकों को सभी स्कूलों में पढ़ाने की जिम्मेदारी होगी। उनका ट्रांसफर 5-वर्ष से पहले नहीं किया जाएगा। इसमें पुस्तकालय, कम्यूटर व विज्ञान प्रयागशालाओं व खेल सुविधाओं आदि का सांझा उपयोग किया जाएगा।
12वीं तक के शिक्षण संस्थानों को सम्बद्धता व मान्यता के लिए कई विकल्प उपलब्ध होंगे। केन्द्रीय स्तर पर सीबीएसई, आईसीएसई व एनआईओएस का विकल्प होगा। केम्ब्रिज व अन्य अंतरराष्ट्रीय बोर्ड से सम्बद्ध विद्यालय भी देश में खोले जाएंगे। राज्य स्तर पर भी राज्य शिक्षा बोर्ड के अतिरिक्त दूसरे बोर्ड गठित करने का विकल्प भी उपलब्ध होगा।
निजी स्कूलों को राज्य एवं केन्द्र द्वारा तय पाठ्यक्रम के अनुरुप अपने लिए पाठ्यक्रम चुनने व विकसित करने की स्वतंत्रता होगी तथा वे फीस के निर्धारण के लिए भी स्वतंत्र होंगे। निजी स्कूल अपने नाम के आगे ‘पब्लिक’ शब्द का प्रयोग नहीं कर पाएंगे।
शिक्षा के अधिकार कानून की समीक्षा की बात भी की गयी है तथा इस कानून की धारा 12(1) सी में सभी निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें निर्धन बच्चों के लिए आरक्षित करने के कानून को भ्रष्टाचार का कारण बताते हुए इस धन को सार्वजनिक शिक्षा में खर्च करने की अनुसंशा की गयी है।
वर्ष 2022 तक पैरा टीचर्स (शिक्षा मित्र,शिक्षा कर्मी आदि) के पद समाप्त कर दिये जाएंगे। बीएड का कोर्स 4 साल का होगा। स्नातक छात्र के लिए दो वर्ष का व स्नात्कोत्तर छात्र को बीएड के लिए एक वर्ष का कोर्स करना होगा। अध्यापक बनने के लिए दो तरह की परीक्षाएं व इंटरव्यू पास करना होगा। डेमो क्लास में पास हाने के बाद कम से कम तीन वर्ष का प्रोजिजन (अस्थाई नौकरी) करना होगी।
उच्च शिक्षा
देश में उच्च शिक्षा क्षेत्र में देश के मात्र 25 प्रतिशत छात्र ही दाखिला ले पाते हैं, जबकि चीन में 44 व ब्राजील में 50 प्रतिशत छात्रों की उच्च शिक्षा तक पहुंच है। वर्ष 2035 तक इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रस्तुत प्रारूप में कहा गया है कि उच्च संस्थानों में जो लोग काम कर रहे हैं, वे काफी अयोग्य दिखाई देते हैं। इन संस्थानों में शैक्षणिक मामलों जैसे पाठ्यचर्या पर अनेक प्रकार के बाहरी लोगो का नियंत्रण है।
उच्च शिक्षा को विशाल व बहु अनुशासनिक/बहुविषयक विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में हस्तांतरित करने की अनुसंशा की गयी है। इसके तहत प्रत्येक जिले में कम से कम एक बड़ा उच्च शिक्षण संस्थान खोला जाएगा।
उच्च शिक्षा संस्थान तीन तरह के संस्थानों में विकसित किए जाएंगे जिन्हें शैक्षणिक, प्रशासनिक व वित्तीय तौर पर पूर्ण स्वतंत्रता होगी।
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अगले 20 वर्षों में इसमें टाइप-1 संस्थान शोध विद्यालय होंगे, जिनमें अनुसंधान व शिक्षण पर समान रूप से ध्यान दिया जाएगा। वे अत्याधुनिक शोध के साथ परास्नातक, पीएचडी, व्यावसायिक व पेशेवर प्रोग्रामों के लिए उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रदान करेंगे। दो दशकों की अवधि में इनकी संख्या देश में 150 से 300 के बीच निर्धारित की गयी है। इस तरह के टाइप-1 संस्थान 5 से 25 हजार छात्रों का नामांकन होगा।
टाइप-2 विश्वविद्यालयों की संख्या का लक्ष्य 1 से 2 हजार के बीच रख गया है, जिसमें दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या 5 से 25 हजार होगी। इनमें स्नातक, परास्नातक, डाक्टरेट, पेशेवर/व्यवसायिक डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कार्यक्रमों के साथ आधुनिक शोध पर जोर होगा।
टाइप-3 कॉलेजों में परास्नातक कार्यक्रमों के साथ व्यावसायिक व पेशेवर शिक्षा के सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री पाठ्यक्रम चलाए जाएंगे, जिनकी संख्या 5 से 10 हजार के बीच होगी। इनमें पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 2 से 5 हजार के बीच होगी।
टाइप-1 संस्थान 50 लाख की आबादी में एक, टाइप-2 संस्थान 5 लाख व टाइप-3 संस्थान 2 लाख की आबादी में एक होगा। बड़े विश्वविद्यालय पूरी तरह से आवासीय होंगे।
उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा नामांकन संख्या बढाने के लिए ओपन एवं डिस्टेंस लर्निंग कार्यक्रम चलाए जाएंगे। डीम्ड यूनिवर्सिटी, सम्बद्ध विश्वविद्यालय, एकात्मक विश्वविद्यालय के रुप धीरे-धीरे समाप्त कर दिये जाएंगे। विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध कालेज अस्तित्व में नहीं रहेंगे। वे या तो विश्वविद्यालयों में परिवर्तित हो जाएंगे अथवा उनका विलय हो जाएगा अथवा बंद कर दिये जाएंगे।
डिग्री प्रदान करने का अधिकार जो केवल विश्वविद्यालय को है, उसमें भी तब्दीली की जाएगी। स्वायत्त डिग्री कालेज भी अपनी डिग्री देने के लिए स्वतंत्र होंगे। सार्वजनिक व निजी संस्थान जो कि विश्वविद्यालय नहीं हैं, वे भी अपने नाम की डिग्री दे सकेंगे।
विश्व में कहीं किसी यूनिवर्सिटी द्वारा आफर किए जा रहे मैसिव ओपन आनलाइन कोर्स को देश में मान्यता दी जाएगी तथा देश के उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा भी इस तरह के आनलाइन कोर्स उपलब्ध रहेंगे।
प्रारूप में यह भी कहा गया है कि हमारे उच्च शिक्षा कार्यक्रमों में भागीदारी करने के लिए दूसरे देशों से भी छात्रों को आकर्षित करना चाहिए। 700 ईसा पूर्व में हमारे यहां विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला में स्थापित हुआ था। 7वीं शताब्दी में नालन्दा विश्वविद्यालय में चीन, जापान, पर्शिया, टर्की आदि देशों के आए छात्र अध्ययन करते थे। भारत में आज केवल 45 हजार (11250 प्रतिवर्ष) विदेशी छात्र उच्च शिक्षा में अध्ययनरत हैं। हमारे देश में विश्व के अपने देश से बाहर पढ़ रहे 50 लाख छात्रों में से 1 प्रतिशत से भी कम विदेशी छात्र पढ़ रहे हैं।
विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए विदेशी और भारतीय संस्थानों के बीच साझेदारी को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए वीजा प्रक्रियाओं आदि को सरल बनाया जाएगा। दुनिया के 200 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों को भारत में संचालन की अनुमति दी जाएगी।
सभी निजी व सार्वजनिक संस्थानों को अपने संकाय (फैकल्टी) व सदस्यों की नियुक्ति अपने हिसाब से करने की स्वायत्ता होगी। इनके प्रोविजन का समय 5 वर्ष को होगा, जिसे बढ़ाया अथवा घटाया भी जा सकता है।
अकादमिक स्टाफ के 3 स्तर- असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, व प्रोफेसर होंगे। इसका ढांचा बनाना व वेतन वृद्धि करना संस्थानों का विशेष अधिकार होगा। निजी व सरकारी संस्थान के प्रबन्धकों को फीस तय का अधिकार होगा। सामाजिक आर्थिक रुप से पिछड़े छात्रों को छात्रवृत्ति देने की बात कही गयी है।
प्रारूप में कहा गया है कि चैथी औद्योगिक क्रांति के आगाज के साथ जहां रोजगार के स्वरूप व इनकी उपलब्ध्ता की स्थिति तेजी से बदल रही है। लिबरल कला शिक्षा की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक बढ़ी है।
अगले 5 वर्षों में दुनिया के अग्रणी संस्थानों की तर्ज पर जैसे आई वी बाई लीग अमेरिका और नालन्दा आदि बहु अनुशासनिक व शोधविद्यालय खालने का प्रस्ताव किया गया है, जो विश्व स्तरीय लिबरल आर्ट्स शिक्षा उपलब्ध करवा सके। इसके लिए राज्य सरकार को 2 हजार का सुन्दर भूखंड व 50 प्रतिशत वित्तीय सहायता उपलब्ध करानी होगी।
भारत में एक लाख की जनसंख्या पर 15 शोधार्थी हैं। वहीं चीन में 111 अमेरिका में 423 व इजराइल में 825 हैं। वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी आर्गेनाइजेशन के अनुसार चीन द्वारा 13.38 लाख पेटेंट प्रस्तुत किए गये, अमेरिका ने 6.05 लाख और भारत ने मात्र 45 हजार पेटेंट प्रस्तुत किए, जिसमें 70 प्रतिशत अनिवासी भारतीयों के हैं। देश के 93 प्रतिशत विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले संस्थानों में अनुसंधान की सुविधा नहीं है।
देश में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का गठन किया जाएगा। इसके लिए 20 हजार करोड़ रुपये वार्षिक अनुदान देने की बात की गयी है। निजी व सरकारी संस्थानों के शोधार्थी फाउन्डेशन से वित्तीय मदद के योग्य होंगे। शोधार्थी द्वारा किए गये शोधों के प्रकाशन व पेटेंट पर शोधार्थी का अधिकार होगा।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सह संयोजक हैं।)