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राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में सरकार को चाहिए मुफ्त के शिक्षक से लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तक

Prema Negi
9 July 2019 7:35 AM GMT
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में सरकार को चाहिए मुफ्त के शिक्षक से लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तक
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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट के मुताबिक मुफ्त की महिला सहायक अनुदेशक बच्चों को लाएंगी स्कूल तक और पढाएंगी भी, मगर उन्हें इसके लिए नहीं दिया जाएगा कोई मेहनताना, कुछ समय काम करने के बाद इनमें से किसी को नौकरी मिल भी गयी तो वह होगी आंगनबाड़ी वर्कर की...

मुनीष कुमार, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता

र्ष 2022 तक देशभर में पैरा टीचर्स (शिक्षाकर्मी, शिक्षामित्र आदि) व्यवस्था को बंद कर दिया जाएगा। (राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के प्रारूप का पेज-172)

प्रारूप में पैरा टीचर्स के समायोजन व सेवा शर्तों में सुधार की बात कहीं भी नहीं कही गयी है, जिसका मतलब है कि लाखों पैरा टीचर्स को स्कूलों से निकाला जा सकता है। उनकी जगह मुफ्त में पढ़ाने वालों का जुगाड़ भी प्रारूप में प्रस्तुत कर दिया गया है।

शिक्षा अनुदेशक, पैरा टीचर, स्वैच्छिक अध्यापक और वे छात्र जो बी.एड करेंगे, स्कूलों में जाकर मुफ्त में बच्चों को पढ़ाएंगे। यदि वे किसी तरह से अध्यापक के लिए सेलैक्ट कर लिए गये तो भी वे कम से कम 3 वर्ष तक प्रोबेशन काल में बहुत कम वेतन पर स्थाई नौकरी की उम्मीद में शिक्षण कार्य करेंगे।

हा गया है कि यदि समुदाय का प्रत्येक साक्षर सदस्य किसी एक छात्र/व्यक्ति को पढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हो सकता है, तो इससे देश का परिदृश्य बहुत जल्दी बदल जाएगा।

जो बच्चे पढ़ने में पीछे रह जाएंगे तथा स्कूल में उपस्थित नहीं होंगे, उनकी सहायता के लिए रेमेडियल इन्सट्रक्संन एड्स प्रोगाम चलाने की सिफारिश की गयी है। इसके लिए स्थानीय समुदाय से स्नातक या इंटर पास सहायक अनुदेशकों की भर्ती की जाएगी। ये अनुदेशक स्कूल के समय के दौरान तथा लम्बे अवकाश के दिनों में विशेष कक्षाओं का आयोजन करेंगे। ये सहायक अनुदेशक अधिकांश महिलाएं होंगी।

प्रारूप में इन्हें वेतन आदि के भुगतान का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है तथा उनके आगे गाजर लटका दी गयी है। कहा गया है कि ये सहायक अनुदेशक यदि बीएड करना चाहते हैं तो उन्हें उचित प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसके बाद अगर वो शिक्षक बनना चाहते हैं तो उन्हें अनुदेशक के रूप में किए गये कार्य के अनुभव को चुनाव में वरीयता दी जाएगी। इसके साथ ही आंगनबाड़ियों और पूर्व प्राथमिक विद्यालयों में चाइल्डहुड एजुकेशन शिक्षक बनने के लिए भी इनको प्रशिक्षित किया जाएगा।

अपने अधिकारों के लिए संसद मार्च कर रहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का फाइल फोटो

ये मुफ्त की महिला सहायक अनुदेशक बच्चों को स्कूल तक लाएंगी और पढाएंगी भी, परन्तु उन्हें इसके लिए कोई भी वेतन नहीं दिया जाएगा। कुछ समय काम करने के बाद यदि इनमें से किसी को नौकरी मिल भी गयी तो वह होगी आंगनबाड़ी वर्कर की, जिन्हें सरकार देश में न्यूनतम वेतन तक नहीं देती, जो कि बेहद कम मानदेय पर काम करने को विवश हैं।

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली हमारे देश की सरकारें महिलाओं का शोषण करने में नम्बर वन हैं। देश का निजी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि देश की केन्द्र व राज्य सरकारें भी महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाकर उनसे बेहद कम वेतन पर काम लेती हैं। इसका मुख्य कारण है कि हमारे देश में महिलाओं की आय को आज भी समाज व परिवारों में मुख्य नहीं, सहायक आय माना जाता है।

ह माना जाता है कि परिवार को चलाने के लिए के लिए आर्थिक संसाधन जुटाने की जिम्मेदारी पुरुष की है। परिवार की आय में कुछ बढ़ोत्तरी हो जाए, इसके लिए महिलाएं पुरुषों के मुकाबले बेहद कम वेतन पर काम करने के लिए तैयार हो जाती हैं और इसी का फायदा सरकारें लगातार उठा रही हैं।

ध्याहन भोजन योजना के अंतर्गत खाना पकाने वाली भोजनमाताओं को सरकार मात्र 2 हजार रुपए का मासिक वेतन देती है, वह भी 11 माह का, जबकि सरकार ने न्यूनतम वेतन 8200 रुपए प्रतिमाह घोषित किया हुया है। यह काम केवल भाजपा की सरकारें ही नहीं कर रही हैं। कांग्रेस से लेकर सपा, बसपा व आप जैसे सभी राजनीतिक दलों की सरकारें इस मामले में महिला कर्मचारियों का इसी तरह से शोषण करती हैं।

file photo

भोजन माता, आंगनबाड़ी कार्यकत्री व आशा वर्कर आदि आज भी न्यूनतम वेतन दिये जाने व स्वयं को सरकारी कर्मचारी घोषित किये जाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। सरकार ने इस शिक्षा नीति में मुफ्तखोरी के कई और भी इंतजाम किए हुए हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके साथ वाले बच्चे जो बड़ी कक्षाओं में पढ़ते हैं, उन्हें भी नेशनल ट्यूटरस कार्यक्रम के तहत एक प्रमाणपत्र के बदले में पढ़ाने की योजना प्रस्तुत की गयी है।

हा गया है कि स्वैच्छिक कार्यकर्ता- सेवानिवृत्त शिक्षक और सेना के अधिकारी, पड़ोसी स्कूल के योग्य छात्र इत्यादि भी बड़े पैमाने पर गैर लाभकारी तरीके से देश के लिए सेवाभाव से बच्चों को पढ़ाएंगे।

प्रारूप में बताया गया है कि देश में शिक्षकों के 10 लाख पद रिक्त हैं, परन्तु इन रिक्त पदों पर नियुक्ति की कोई भी कार्य योजना प्रस्तावित नहीं की गयी है।

स्कूल शिक्षक बनना किसी आईएएस बनने से ज्यादा दुरुह कार्य होगा

प्रारूप में कहा गया है कि शिक्षक शिक्षा व्यवस्था, भर्ती और पदस्थापन प्रणाली, सेवा की शर्तें, पेशेवर विकास और कैरियर मैनेजमेंट की भूमिकाओं में आमूल-चूल बदलाव करने होंगे।

शिक्षण के लिए 4 वर्षीय लिबरल एकीकृत बीएड डिग्री न्यूनतम योग्यता शर्त निर्धारित की गयी है। जिनके पास किसी खास विषय से स्नातक डिग्री होगी उनके लिए दो वर्षीय बीएड का कोर्स उपलब्ध होगा। जिनके पास किसी एक विषय की स्नातकोत्तर डिग्री होगी और वह उस विशेष विषय का शिक्षक बनना चाहते हैं, उनके लिए एक वर्ष का बीएड कार्यक्रम उपलब्ध होगा।

बी. एड. डिग्री बहु अनुशासनिक/बहुविषयक संस्थानों द्वारा ही उपलब्ध कराई जाएंगी। देश में मौजूद एकल शिक्षक शिक्षा संस्थानों को जल्द से जल्द बंद कर दिने की बात कही गयी है। देश में इस तरह के संस्थानों की संख्या पेज 159 पर 17 हजार बतायी गयी है, जिसमें 92 प्रतिशत निजी स्वामित्व वाले संस्थान हैं।

बीएड करने के बाद अध्यापक बनने के लिए व्यक्ति को टीईटी (टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट)की परीक्षा व एनटीए (नेशनल टेस्टिंग एजेन्सी) की परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा। कहा गया है कि लिखित परीक्षाओं से शिक्षक की स्थानीय भाषा व जोश और उत्साह को नहीं आंका जा सकता, इसलिए इच्छुक शिक्षक के लिए दूसरे चरण की स्क्रीनिंग (चयन प्रक्रिया) स्थापित की जाएगी। इस प्रक्रिया के तहत व्यक्ति को पहले साक्षात्कार देना होगा व कक्षा में जाकर शिक्षण प्रदर्शन (क्लास डेमो) करना होगा।

आंदोलनरत झारखंड के पारा शिक्षकों का फाइल फोटो

शिक्षकों को टेन्योर ट्रैक सिस्टम के तहत 3 वर्ष के लिए प्रोबेशन/कार्यकाल पर रखा जाएगा। इसके बाद उनके कार्य प्रदर्शन के आधार पर उनका स्थायीकरण किया जाएगा। उच्च शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों के लिए प्रोबेशन की अवधि कम से कम 5 वर्ष निर्धारित की गयी है।

शिक्षक बनने के लिए उक्त प्रक्रिया निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा भी अपनायी जाएगी। प्रारूप में देश में चल रहे 17 हजार एकल शिक्षा संस्थानों के बारे में टिप्पणी की गयी है कि ये व्यावसायिक दुकानों की तरह काम कर रही हैं। जहां न्यूनतम पाठ्यक्रम और कार्यक्रम की जरुरतों की भी पूर्ति नहीं की जाती और यहां सिर्फ डिग्रियों की खरीद-फरोख्त होती है।

देश में ऐसा कौन सा निजी शिक्षण संस्थान है, जो व्यावसायिक दुकानों की तरह से काम नहीं करता। निश्चित ही देश में शिक्षा के नाम पर चल रहीं सभी व्यावसायिक दुकानें नहीं चलने देनी चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि यदि व्यक्ति बीमार है तो उसका इलाज करने की जगह उसकी हत्या कर दी जाए।

17 हजार शिक्षा संस्थान यदि बीमार हैं तो उन्हें बंद करना रास्ता नहीं है। रास्ता है सरकार उनको अधिग्रहित कर ले और उन्हें स्वयं चलाए, उनकी गुणवत्ता में सुधार करे। परन्तु सरकार ऐसा करेगी नहीं क्योंकि वह एक निर्णय ले चुकी है कि शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) को बढ़ाने के लिए विदेशी संस्थानों को खुली छूट दी जाएगी। इसीलिए कहा जा रहा है कि शिक्षक शिक्षा मात्र बहुहुअनुशासनिक संस्थानों में ही दी जाएगी। ये सबकुछ देश के कोरपोरेट व साम्राज्यवादी लुटेरों के हितों के लिए किया जा रहा है। इसकी सच्चाई को समझने की जरूरत है।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सह संयोजक हैं।)

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