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विमर्श

97th Tansen Ceremony-2: जब वे गाते थे तो दिये जल जाते थे, बारिश होने लगती थी और पत्थर पिघल जाता था...

Janjwar Desk
23 Jan 2022 12:50 PM IST
97th Tansen Ceremony-2:  जब वे गाते थे तो दिये जल जाते थे, बारिश होने लगती थी और पत्थर पिघल जाता था...
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97th Tansen Ceremony-2: जिस दौर में जब सारा देश कोविड जैसी महामारी से जूझ रहा हो, तब संगीत सम्राट तानसेन की जन्मस्थली बेहट (ग्वालियर, मध्यप्रदेश )में हजारों किसान मजदूरों का तन्मय होकर शास्त्रीय संगीत सुनते हुए देखना साल का सबसे सुंदर दृश्य हो सकता है।

अजित राय की रिपोर्ट

97th Tansen Ceremony-2: जिस दौर में जब सारा देश कोविड जैसी महामारी से जूझ रहा हो, तब संगीत सम्राट तानसेन की जन्मस्थली बेहट (ग्वालियर, मध्यप्रदेश )में हजारों किसान मजदूरों का तन्मय होकर शास्त्रीय संगीत सुनते हुए देखना साल का सबसे सुंदर दृश्य हो सकता है। यह दृश्य पूरे भारत में और कहीं नहीं दिखाई देता। आमतौर पर शास्त्रीय संगीत की सभाओं में पढ़ा लिखा शहरी भद्रलोक ही दिखाई देता है। यह मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन ( 1493-1586) के संगीत का जादू है जो उनके जाने के 436 साल बाद भी बरकरार है। पिछले 97 साल से इस महान संगीतकार की याद में हर साल दिसंबर के अंतिम सप्ताह में होने वाले तानसेन समारोह(26-30 दिसंबर, 2021) में ऐसे दृश्य आम है।

तानसेन का असली नाम रामतनु पांडे था जिनका जन्म ग्वालियर के पास बेहट गांव में 1493 से 1500 ईसवी के बीच हुआ था। वे रीवा नरेश राजा रामचंद्र सिंह के दरबारी थे। उनके गायन की शोहरत से प्रभावित होकर मुगल बादशाह अकबर ने 1562 में उन्हें अपने दरबार के नौ रत्नों में शामिल किया था। अकबर की बेटी मेहरून्निसा से प्रेम विवाह करने के कारण उन्हें इस्लाम कबूल करना पड़ा और अकबर ने उनका नाम मियां तानसेन रखा।वे वृंदावन मथुरा के स्वामी हरिदास के शिष्य थे और बाद में सूफी संत मोहम्मद गौस की सोहबत में आए। इसीलिए उनके संगीत में वैष्णव और सूफी परंपरा का मिश्रण है।


पापुलर कल्चर में भी तानसेन की जबरदस्त लोकप्रियता रही है। उनपर 1943, 1958 और 1962 में तीन तीन बार फिल्में बन चुकी है। अस्सी के दशक में उनपर पाकिस्तान में एक टीवी सीरियल बहुत सफल रहा था। विजय भट्ट की फिल्म " बैजू बावरा "(1952) सुपर हिट रही थी जिसमें भारत भूषण और मीना कुमारी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। इस फिल्म के गीत शकील बदायूंनी ने लिखा था और नौशाद ने संगीत दिया था। इस फिल्म में मोहम्मद रफी द्वारा गाए गए एक भजन के बारे में नौशाद ने कहा था कि यह हिंदुस्तानी संगीत की गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है कि एक हिंदू भजन को लिखने वाले, गाने वाले और संगीतबद्ध करने वाले तीनों लोग मुसलमान है। वह भजन है, " मन तड़पत हरि दर्शन को आज....।."

जब तानसेन दीपक राग गाते थे तो दीये जल जाते थे, जब वे राग मेघ मल्हार गाते थे तो बारिश होने लगती थी । कहा जाता है कि जब वे गाते थे तो पत्थर पिघल जाता था और हिंसक जंगली जानवर भी शांत हो जाते थे। उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में कई नये रागों की रचना की। उनके गांव के लोगों के पास उनसे जुड़ी कई कहानियां हैं जिसे वे लोग बड़े चाव से सुनाते हैं। ग्वालियर के माधव शासकीय संगीत महाविद्यालय में ध्रुपद गायन में एम ए पास वासुदेव वर्मा और उनकी पत्नी लगभग अंधेपन के करीब है जबकि बेहट में बैठकर वे आसानी से इन संगीत सभाओं का आनंद उठा रहे हैं। यहां के ग्रामीण श्रोताओं को शास्त्रीय संगीत की बारिकियों के बारे में कुछ नहीं पता, पर वे यहां घंटों बैठे रहते हैं और ध्रुपद गायकों को सुनते रहते हैं। उनका कहना है कि यहां गानेवालों में तानसेन की आत्मा उतर आती है।

पिछले दिनों उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत और कला अकादमी भोपाल द्वारा आयोजित तानसेन संगीत समारोह ( 26-30 दिसंबर 2021) में हर सभा में सभागार युवा संगीत प्रेमियों से भरा हुआ था और पांव रखने की भी जगह नहीं थी। कोरोनावायरस से जूझ रही हमारी दुनिया में पिछले साल के आखिरी हफ्ते में इस समारोह ने गायकों, संगीतकारों और रसिकों को शास्त्रीय संगीत का नायाब तोहफा दे दिया।

ग्वालियर शहर के हजीरा इलाके में तानसेन और उनके एक गुरु सूफी संत मोहम्मद गौस की मजार के पास दिसंबर महीने में हर साल आयोजित किया जाने वाला हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का यह समारोह अब अंतरराष्ट्रीय हो चुका है। इससे युवा श्रोताओं को दुनिया के हर देश के शास्त्रीय संगीत को सुनने और उससे परिचित होने का अवसर मिलता है। यह भी आश्चर्य जनक है कि किसी न किसी रूप में यह समारोह पिछले 97 सालों से अनवरत आयोजित किया जा रहा है । 1980 से इसे मध्य प्रदेश सरकार ने अपने सालाना कैलेंडर में शामिल किया और अब यह ग्लोबल म्यूजिक फेस्टिवल ( विश्व संगीत समागम) का रूप ले चुका है। देश के जाने-माने हर गायक और संगीतकार यहां अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत और कला अकादमी के प्रभारी निर्देशक राहुल रस्तोगी कहते हैं कि " पिछले आठ महीने से कोरोनावायरस समय में सभी कलाकार अपने घरों में कैद हो गए थे, तानसेन संगीत समारोह में पहली बार उन्हें घरों से बाहर आकर मंच पर श्रोताओं के बीच गाने का मौका मिला। यह उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। "

मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग की उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी ने तानसेन समारोह को एक बहुआयामी पैकेज में पेश कर विश्व स्तरीय बना दिया है जहां शास्त्रीय संगीत की कई पीढ़ियां एक मंच पर संवाद कर रहीं हैं। एक ओर जहां समारोह की पूर्व संध्या पर उप शास्त्रीय संगीत ( गमक) को जोड़कर सामान्य रसिकों का खयाल रखा गया तो दूसरी ओर हर संगीत सभा की शुरुआत मध्यप्रदेश के संगीत महाविद्यालयों की प्रस्तुति से करके युवा पीढ़ी को जोड़ा गया। इस बार गमक में पंजाब के सुप्रसिद्ध सूफी गायक पूरन चंद बडाली और उनके बेटे लखविंदर बडाली ने आधी रात तक रसिकों को बांधे रखा। पांच दिन में नौ संगीत सभाओं में देश विदेश के करीब पचास कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां दी। पंडित भजन सोपोरी, दिल्ली (2020), अभय नारायण मलिक , दिल्ली (2019), सुरेश तलवलकर, पुणे (2018), व्यंकटेश कुमार, धारवाड़ (2017), अश्विनी भिड़े देशपांडे, मुंबई (2016), अरूणा साईंराम, चेन्नई (2015), विक्कू विनायकरम, चेन्नई (2014) और कार्तिक कुमार, मुंबई (2013) को शास्त्रीय संगीत में उल्लेखनीय योगदान के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित कालिदास सम्मान से नवाजा गया। इन सम्मानित संगीतकारों ने अपनी प्रस्तुतियां भी दी। इस सम्मान की शुरुआत 1980 में हुई थी। तब से लेकर आज तक यह सम्मान लगभग सभी प्रमुख हस्तियों को मिल चुका है जिसमें मल्लिकार्जुन मंसूर, कुमार गंधर्व, पंडित जसराज, पंडित रविशंकर,एम एस सुब्बालक्ष्मी, किशन महाराज, छन्नूलाल मिश्र, जाकिर हुसैन, हरिप्रसाद चौरसिया आदि शामिल हैं।

जब तानसेन समारोह में दुनिया के अन्य देशों से शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को आमंत्रित करने की बात चली तो यहां के आम संगीत प्रेमियों के लिए इस बात पर विश्वास करना मुश्किल था कि भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर भी शास्त्रीय संगीत होता है। पहले तो सबको लगा कि उनको आमंत्रित करने की बात हो रही है जो विदेशों में बसे भारतीय है या ऐसे विदेशी कलाकार जो भारतीय शास्त्रीय संगीत गाते-बजाते है। मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग की उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी ने इन दोनों धारणाओं को खारिज करते हुए दुनिया के अलग-अलग देशों से उनके अपने शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को आमंत्रित कर तानसेन समारोह को सच्चे अर्थों में विश्व संगीत समागम बना दिया। मसलन इस बार की ही बात करें तो फ्रांस ( मार्टिन डबाइस), ब्राजील ( पाब्लो), अर्जेंटीना ( देसिएतों आनदंते), स्पेन ( अल्मुडेन डियाज ललानोस), रूस ( एकातेरिना अरिस्टोवा और तातियाना शांद्रकोवा) और इजरायल ( यूसुफ रूह अलौश) के कलाकारों ने अपने अपने देशों के शास्त्रीय संगीत को प्रस्तुत किया जिन्हें उतने ही ध्यान से सुना गया जितने ध्यान से भारतीय संगीत को सुना जाता है। फेसबुक और यूट्यूब पर सीधे प्रसारण से दुनिया भर के संगीत प्रेमियों ने तानसेन समारोह का आनंद उठाया।

तानसेन समारोह में वरिष्ठ और दिग्गज संगीतकारों के साथ इस बार बड़ी संख्या में युवा संगीतकारों को भी अवसर मिला। मसलन नीलाद्री कुमार, सुधा रघुरामन, शास्वती मंडल, राहुल देशपांडे, उदय भवालकर, तेजस एवं मिताली, रमाकांत गायकवाड़ आदि।

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