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विमर्श

Rabindranath Tagore Biography: गांधीजी को महात्मा का नाम देने वाले और फटकार लगाने वाले नोबल विजेता रविंद्रनाथ टैगोर की अनसुनी कहानी

Janjwar Desk
7 Aug 2022 6:15 AM GMT
Rabindranath Tagore Biography: गांधीजी को महात्मा का नाम देने वाले और गांधी को फटकार लगाने वाले नोबल विजेता रविंद्रनाथ टैगोर की अनसुनी कहानी
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Rabindranath Tagore Biography: गांधीजी को महात्मा का नाम देने वाले और गांधी को फटकार लगाने वाले नोबल विजेता रविंद्रनाथ टैगोर की अनसुनी कहानी

Rabindranath Tagore Biography: क्या आप जानते हैं कि गांधीजी को महात्मा का नाम किसने दिया? क्या आप जानते हैं आजादी से पहले गांधीजी की बात को जब सभी लोग सरमाथे पर लगाते थे। उस समय एक ऐसा शख्स भी था जिसने उनके बयान पर महात्मा गांधी को जमकर फटकार तक लगाई थी।

मोना सिंह की रिपोर्ट

Rabindranath Tagore Biography: क्या आप जानते हैं कि गांधीजी को महात्मा का नाम किसने दिया? क्या आप जानते हैं आजादी से पहले गांधीजी की बात को जब सभी लोग सरमाथे पर लगाते थे। उस समय एक ऐसा शख्स भी था जिसने उनके बयान पर महात्मा गांधी को जमकर फटकार तक लगाई थी। अंग्रेजों ने उस शख्स को सबसे बड़ी उपाधि से नवाजा था। लेकिन अंग्रेजों की हरकत जब उन्हें बुरी लगी तो वही तमगा ब्रिटिश हुकूमत को लौटा दिया। आज से करीब 81 साल पहले उस शख्स ने तारीख 7 अगस्त 1941 को आखिरी सांस ली थी। ठीक उसी हवेली में जहां पर उनका जन्म हुआ था। उस महान शख्सियत का नाम है रविंद्र नाथ टैगोर। 7 अगस्त को उनकी पुण्यतिथी है।

रविंद्रनाथ टैगोर, कवि, संगीतकार, आयुर्वेद शोधकर्ता और कलाकार थे। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इसलिए उन्हें पॉलीमैथ यानी सभी विद्या और कलाओं में निपुण भी कहा जाता था। रविंद्रनाथ टैगोर ने 19वीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में भारतीय कला, बंगाली साहित्य और संगीत को नए सिरे से तैयार किया। 1913 में रविंद्रनाथ टैगोर को साहित्य में नोबेल पुरस्कार मिला था। वह नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले गैर यूरोपियन थे।

रविंद्रनाथ टैगोर का जीवन

रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर जोरासॉन्को हवेली में हुआ था। यह हवेली वर्तमान के कोलकाता पश्चिम बंगाल में है। वे अपने माता पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। इसलिए उनका पालन पोषण ज्यादातर नौकरों के हाथों हुआ था। टैगोर ने अपने घर पर ही बड़े भाई से शरीर रचना विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी की शिक्षा ली। 11 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता के साथ भारत भ्रमण किया था।

1882 में उन्होंने अपनी पहली बंगाली लघुकथा 'भिखारिणी' लिखी। 1878 में टैगोर को बैरिस्टर बनने के लिए लंदन भेजा गया। वहां उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से कानून की पढ़ाई की, लेकिन उन्हें औपचारिक शिक्षा पद्धति रास नहीं आई तो वह स्वतंत्र रूप से शेक्सपियर एंटनी और क्लियोपेट्रा और थॉमस ब्राउन का अध्ययन किया। 1880 में वे बिना किसी डिग्री के बंगाल लौट आए। बंगाल में उन्होंने कविता कहानियों और उपन्यासों का प्रकाशन शुरू किया। कुछ समय में ही वे पूरे बंगाल में मशहूर हो गए। 1913 में रविंद्रनाथ टैगोर को उनके साहित्य में महान योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें उनके द्वारा लिखी हुई 'गीतांजलि' के लिए मिला था। गीतांजलि बंगाली गीतों का संग्रह है। 1915 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 'नाइट' की उपाधि दी, लेकिन जलियांवाला हत्याकांड के बाद उन्होंने यह उपाधि ब्रिटिश सरकार को वापस कर दी थी।

महात्मा गांधी दोस्त या दुश्मन?

रविंद्रनाथ टैगोर ने सबसे पहले गांधीजी के लिए 'महात्मा' शब्द का प्रयोग किया था। वह एक नेता और व्यक्ति के रूप में गांधीजी के प्रशंसक थे। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कभी भी गांधी जी की आलोचना नहीं की, लेकिन उनके विचार राष्ट्रवाद, सामाजिक, आर्थिक विकास और देशभक्ति के मामले में गांधीजी से पूरी तरह अलग थे। 1934 में जब बिहार भूकंप में हजारों लोगों की मृत्यु हुई थी, उस समय गांधीजी ने उस वाकये को लोगों का कर्मफल कहा था। इस बात से रविंद्रनाथ काफी खफा हुए थे। तब रविंद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को उनकी इस टिप्पणी के लिए उन्हें फटकार लगाई थी।

रविंद्रनाथ टैगोर का विवाह और शांति निकेतन की स्थापना

1883 में रविंद्र नाथ टैगोर की शादी मृणालिनी देवी से हुई थी। वह उस समय मात्र 10 वर्ष की थी। बाद में इस दंपति के 5 बच्चे हुए। 1901 में रविंद्र नाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में प्रारंभिक स्कूल की स्थापना की, जो आगे चलकर विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। वे गुरु शिष्य परंपरा और शिक्षा की गुरुकुल पद्धति के समर्थक थे। वह भारत में गुरुकुल या आश्रम पद्धति की शिक्षा का विकास करना चाहते थे। शांतिनिकेतन में पेड़ के नीचे कक्षाएं चलतीं थीं। गुरुदेव सुबह कक्षाओं में पढ़ाते थे और दोपहर और शाम को पाठ्य पुस्तकें लिखते थे। वहां बगीचे और पुस्तकालय भी थे। शांतिनिकेतन में हर प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था है। उन्होंने नोबेल पुरस्कार से मिले पैसों से इस व्यवस्था को आगे बढ़ाया था। वर्तमान में भी शांतिनिकेतन शिक्षा का ऐसा केंद्र है जहां साहित्य, नाट्य, पेंटिंग, समेत हर प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था है।

टैगोर ने 2230 गीतों की रचना की

रविंद्रनाथ टैगोर ने लगभग 2230 गीतों की रचना की। और अधिकतर को संगीत भी दिया। इन गीतों को रविंद्र संगीत के नाम से जाना जाता है। 1905 में उन्होंने बंगाल विभाजन के विरोध स्वरूप 'अमार सोनार बांग्ला' गीत की रचना की जो वर्तमान में बांग्लादेश का राष्ट्रगान है। उन्होंने भारत के राष्ट्रगान 'जन गण मन' की रचना 1911 में की। इसे राष्ट्रगान के रूप में 1950 में अपनाया गया। उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रगान 'श्रीलंका मठ' की भी रचना की। उनके द्वारा रचित गीतांजलि बांग्ला महाकाव्य के रूप में अमर है।

कलाकृतियां

रविंद्रनाथ टैगोर ने 60 वर्ष की उम्र में चित्रकारी की शुरुआत की थी। कहा जाता है कि वह कलर ब्लाइंड थे इसलिए उनकी चित्रकारी कुछ अलग तरह की ही थी। टैगोर की 102 कलाकृतियां भारत के नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में सुरक्षित है।

जब रविंद्रनाथ टैगोर ने रोका बंगाल का विभाजन

19वीं शताब्दी की शुरुआत में बंगाल में राष्ट्रवादी आंदोलन अपने पूरे उफान पर था। और राष्ट्र के लिए यह एकता ब्रिटिश शासन के लिए खतरे की घंटी थी। इससे बचने के लिए अंग्रेजों ने 'फूट डालो और राज करो की' नीति अपनानी शुरू की। और धर्म के आधार पर बंगाल के विभाजन का फैसला किया। यह निर्णय जून 1905 में असम में लार्ड कर्जन और मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई बैठक में लिया गया था। इस फैसले का रविंद्र नाथ टैगोर समेत कई बड़े नेताओं ने विरोध किया। अंग्रेजों ने विभाजन का आदेश अगस्त 1905 को पारित कर दिया। उसी समय रक्षाबंधन के त्यौहार पर टैगोर ने हिंदू और मुस्लिमों का आह्वान रक्षाबंधन के जरिए अंग्रेजों को अपनी एकजुटता साबित करने के लिए किया। रविंद्रनाथ टैगोर के आह्वान पर कोलकाता, ढाका और सिलहट में सैकड़ों की संख्या में हिंदू और मुसलमान राखी बांधने और बंधवाने के लिए बड़ी संख्या में आगे आए। और धार्मिक धर्मनिरपेक्षता साबित कर बंगाल विभाजन का विरोध किया। पश्चिम और पूर्वी बंगाल के हिंदू मुस्लिम समुदाय के 6 साल के कड़े विरोध के बाद अंग्रेजों ने 1911 में बंगाल विभाजन का आदेश वापस ले लिया। इस घटना का जिक्र ए. मजूमदार ने अपनी पुस्तक 'टैगोर बाय फायरसाइड' में किया है। हालांकि, फिर 1947 में बंगाल का विभाजन हो ही गया।

टैगोर का निधन और उनके नाटक

रविंद्र नाथ टैगोर ने कई नाटक रचनाएं भी लिखी हैं। जैसे बाल्मीकि, प्रतिमा ,विसर्जन डाकघर, चांडालिनी उनके प्रमुख नाटक हैं। हालांकि, टैगोर 1937 में लंबी बीमारी के बाद कोमा में चले गए थे। कुछ समय के लिए होश में आने के बाद वे 1940 में फिर से कोमा में चले गए। उसके बाद फिर कभी वह होश में नहीं आ पाए। लंबे समय की बीमारी के बाद 80 वर्ष की आयु में टैगोर का निधन 7अगस्त 1941 को जोरासंको हवेली में हो गया। इसी हवेली में उनका जन्म और पालन-पोषण भी हुआ था।

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