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शिक्षा

Uttarakhand Open University के कुलपति पर फिर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, राज्यपाल के आदेश को ठेंगा दिखा भर्तियां जारी

Janjwar Desk
18 Nov 2021 11:50 AM GMT
Uttarakhand Open University के कुलपति पर फिर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, राज्यपाल के आदेश को ठेंगा दिखा भर्तियां जारी
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उत्तराखण्ड ओपन यूनिवर्सिटी में नियुक्ति महाघोटाले में मंत्री धन सिंह रावत और वीसी ओमप्रकाश सिंह नेगी पर लग रहा चहेतों को बैकडोर एंट्री देने का आरोप (file photo)

उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओम प्रकाश नेगी का कार्यकाल अब मात्र दो-ढाई महीने बचा है, कुलाधिपति और राज्यपाल ने उन्हें दीर्घकालिक और नीतिगत फैसले न लेने के निर्देश दिये हैं, मगर वे इन आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं...

Uttarakhand open university vice chancellor corruption : पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय (Uttarakhand Open University) के कुलपति ओम प्रकाश नेगी पर सारे नियम-कायदों को ठेंगा दिखाकर अपने चहेतों और भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं की भर्ती निरंतर करने के आरोप एक बार फिर लग रहे हैं।

जनज्वार के पास आयी जानकारी के मुताबिक एक बार फिर नई भर्तियों में कुलपति ओमप्रकाश नेगी के ​भ्रष्टाचार को लेकर कई पत्र राज्यपाल के पास पहुंच गये हैं। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओम प्रकाश नेगी का कार्यकाल अब मात्र दो-ढाई महीने बचा है। कुलाधिपति और राज्यपाल ने एक पत्र भेजकर उन्हें दीर्घकालिक और नीतिगत फैसले न लेने के निर्देश दिये हैं, मगर वे इन आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं।

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गौरतलब है कि विश्वविद्यालय में 16-17 नवंबर 2021 को शोध अधिकारियों, सहायक निदेशकों (कम्प्यूटर) और सिस्टम मैनेजर के कुल 8 पदों पर साक्षात्कार लिये गए थे। नियमों के मुताबिक़ कोई भी कुलपति अपने कार्यकाल के आख़िरी तीन महीनों में न ही बड़े नीतिगत फैसले ले सकता है और न ही भर्तियां कर सकता है। ये राज्य के विश्वविद्यालयों में पारदर्शिता बनाये रखने की लोकतांत्रिक परंपरा भी है और नियम भी, लेकिन परंपराओं की दुहाई देने वाले कुलपति ओम प्रकाश नेगी ख़ुद को परंपरा और नियमों से ऊपर समझते हैं। एक बार फिर नई नियुक्तियों में भ्रष्टाचार की पूरी पटकथा लिखी जा चुकी है।

कुलपति ओम प्रकाश नेगी का कार्यकाल 7 फरवरी 2022 को ख़त्म हो रहा है। उनका पूरा कार्यकाल 100 से ज़्यादा भर्तियों में तरह-तरह की धांधलियों के लिए चर्चा में रहा है। इससे पहले प्रोफेसर के विभिन्न पदों पर 25 नियुक्तियों का मामला सबसे ज़्यादा विवादों में रहा। बिना योग्यता के विश्वविद्यालय के पीआरओ राकेश रयाल को पत्रकारिता विभाग में और पीके सहगल को जंतु विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर बनाये जाने का मामला सबसे ज़्यादा सुर्खियों में रहा था। इन दोनों की ही नियुक्ति स्क्रीनिग कमेटी द्वारा अयोग्य पाये जाने के बावजूद कुलपति द्वारा मनमाने तरीके से करवाने के आरोप लगे थे।

राज्यपाल के सचिव रंजीत कुमार सिन्हा की तरफ़ से विश्वविद्यालय के कुलपति को 2 नवंबर 2021 को लिखे एक पत्र में कोई भी नीतिगत फैसले न लेने और कार्य परिषद की बैठक न बुलाने के निर्देश दिये गए थे। इसके बावजूद कुलपति द्वारा भर्तियां की जा रही हैं और इन भर्तियों पर मोहर लगाने के लिए 25 नवंबर को कार्य परिषद की बैठक बुलाई गई है, जबकि ऐसा किया जाना विश्वविद्यालय के नियमों और कुलाधिपति के आदेशों का खुला उल्लंघन है। राज्यपाल ऑफिस ने 23 अप्रैल 2010 के पत्र संख्या -255 का संदर्भ दिया है, जिसके मुताबिक़ आख़िरी तीन महीनों में कुलपति के अधिकार सीमित कर दिये जाने की व्यवस्था है।

विश्वविद्यालय के ही कई शिक्षक नाम न छापने की शर्त पर कह रहे हैं कि कुलपति ओमप्रकाश नेगी सरकार और शिक्षा मंत्री धन सिंह की शह पर लगातार फर्जी भर्तियां किये जा रहे हैं, और भर्ती होने वालों में उनके चहेते भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ता हैं। तमाम विवादों के बाद कोई जांच न होना उन्हें और बेलगाम करता जा रहा है। खबर यह भी है कि इससे पहले पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उनकी जांच के आदेश दिये थे तो उन्हें राज्य के बीजेपी नेताओं के दबाव में अपने पद से ही इस्तीफा देना पड़ा था। यही वजह है कि वर्तमान कुलाधिपति गुरमीत सिंह भी कुलपति पर जांच बिठाने से बच रहे हैं।

आम आदमी पार्टी ने फर्जी नियुक्तियों के ख़िलाफ़ राज्यभर में प्रदर्शन किये थे, तो कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी इन नियुक्तियों पर सवाल उठाये थे। छात्र संगठन एनएसयूआई ने राज्य के कई हिस्सों में प्रदर्शन किये थे। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी और भाकपा माले ने भी हाईकोर्ट के जज से मुक्त विश्वविद्यालय की नियुक्तियों की जांच कराने की मांग की थी, लेकिन राज्यव्यापी विरोध के बावजूद कुलपति अपनी मनमानी पर अब भी उतारू हैं। सत्ता के संरक्षण ने उन्हें ढीठ बना दिया है।

गौरतलब है कि विश्वविद्यालय में हुई सभी नियुक्तियों से पहले ही चयनित होने वाले लोगों के नाम बाहर आ जाने से भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया था। इस बार भी भर्तियों को लेकर भी पहले से ही कई नाम चर्चा में हैं। इनमें कुलपति के चहेतों के अलावा नेताओं और अधिकारियों के रिश्तेदार शामिल हैं।

भ्रष्टाचार के इतने सारे आरोपों में घिरने के बावजूद कुलपति ओम प्रकाश नेगी अपना कार्यकाल बढ़ाने की जोड़तोड़ में लगे हुए हैं। खबरों के मुताबिक उनकी नज़र सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा में कुलपति की खाली हुई सीट पर भी लगी हुई है। नेगी मूल रूप से इसी अल्मोड़ा कैंपस के अध्यापक हैं। हाल ही में इस विश्वविद्यालय के कुलपति को ज़रूरी योग्यता न होने की वजह से नैनीताल हाईकोर्ट ने हटा दिया था। नेगी ने भी मुक्त विश्वविद्यालय में बिना ज़रूरी योग्यता के कई नियुक्तियां की हैं, अल्मोड़ा वाले कुलपति के फैसले के आलोक में यहां भी फर्जी नियुक्ति पाये प्रोफेसरों की नौकरी जाना तय माना जा रहा है।

उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के ही एक शिक्षक जनज्वार से हुई बातचीत में कहते हैं, बीजेपी के शासनकाल में उत्तराखंड के विश्वविद्यालय सत्ताधारी पार्टी कार्यकर्ताओं की फर्जी भर्ती करने का अड्डा बन चुके हैं। सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय से पहले भी दून विश्वविद्यालय के कुलपति अयोग्य होने की वजह से हाईकोर्ट ने हटा दिये थे। कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति के ख़िलाफ़ भी उनकी अयोग्यता को लेकर मामला कोर्ट में चल रहा है। ये सभी नियुक्तियां राज्य की बीजेपी सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाली हैं।

कुलपति नेगी पर उत्तराखंड विश्वविद्यालय में जितनी भी फर्जी नियुक्तियां करने के आरोप लगे हैं अब वे सभी उनके प्रवक्ता की भूमिका निभाकर विश्वविद्यालय का माहौल ज़हरीला बना रहे हैं। ख़ुद की नौकरी बचाने के लिए हर राजनीतिक दल के नेताओं के साथ ही पत्रकारों और आंदोलनकारियों से संपर्क कर रहे हैं। इस काम में ये लोग ठाकुर-बामन, कुमाऊं-गढ़वाल, देसी-पहाड़ी जैसा हर हथकंडा अपनाये जाने के भी आरोप लग रहे हैं।

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